Kota News: चंबल नदी में लगातार बढ़ रही घड़ियालों की संख्या, केवल दो प्रतिशत बच्चे रहते हैं जिंदा, जानिए वजह
National Gharial Century: चम्बल नदी (Chambal River) में घड़ियालों की संख्या में नियमित रूप से वृद्धि हो रही है. इस नदी को सरकार द्वारा नेशनल घड़ियाल सेंचुरी घोषित किया गया था.
Kota News: घड़ियालों के लिए प्राकृतिक रूप से सबसे सुरक्षित स्थान चम्बल नदी (Chambal River) है. यहां घड़ियालों की संख्या में नियमित रूप से वृद्धि हो रही है. नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी (National Gharial Century) 600 किमी लंबा तीन राज्यों की सेंचुरी है. ये मप्र, यूपी और राजस्थान में हैं. 1973 में चंबल नदी के अधिकांश भाग को राज्य सरकार द्वारा नेशनल घड़ियाल सेंचुरी घोषित किया गया था. ये वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट ऑफ 1972 के तहत संरक्षित है. सबसे बड़ी बात है कि ये नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी दुनिया की सबसे बड़ी मगरमच्छ प्रजातियों में एक है. इनमें से कोटा के अनूठा एरिया है, जहां घड़ियाल की प्रजाति निरंतर फल फूल रही है. कोटा से घड़ियाल के बच्चे धौलपुर तक पहुंच जाते हैं, लेकिन ये एक नेचुरल प्रक्रिया है. पर्यावरण प्रेमी, वन्यजीव प्रेमी भी उनका पूरा ध्यान रख रहे हैं. समय-समय पर प्रशासन को भी इनकी स्थितियों से अवगत कराकर इन्हें बचाने का प्रयास करते हैं.
98 प्रतिशत मर जाते हैं, 2 प्रतिशत रहते हैं जीवत
रिसर्च करने वाले और वन्यजीव प्रेमी हरिमोहन मीणा बताते है कि ये कोटा जिले में एक मात्र घड़ियाल की नेस्टिंग साइट है. उन्होंने बताया कि एक मादा करीब 35 से 40 अंडे देती है. लेकिन बाढ़ और पानी में बहाव के कारण 2 प्रतिशत ही बच पाते हैं. उन्होंने बताया कि चंबल घड़ियाल सेंचुरी का क्षेत्र कोटा में जवाहरसागर से कोटा बैराज और केशवरायपाटन से गढ़ी पिड़ावली धौलपुर तक है.
भारत के अलावा दुनिया में कहीं नहीं है घडियाल
हरिमोहन मीणा बताते हैं कि 75 प्रतिशत घड़ियाल चम्बल में हैं, बाकी 25 प्रतिशत में सोहन एमपी, रामगंगा यूपी और कुछ पंजाब में भी हैं, जबकी कुछ जानकारी बताते हैं कि घडियालों को नेपाल में भी देखा जाता है. कोटा के गुडला, केशवरायपाटन में बहुतायात घड़ियाल हैं. इसके अलावा पालीघाट, श्योपुर जहां चम्बल व पार्वती नदी का का मिलन होता है वहां भी घड़ियाल पाए जाते हैं. कोटा में इनकी संख्या 90 के करीब है, जबकी बरोली, महाराजपुरा में 70, धोलपुर टिगरी रिठोरा में 80 घड़ियाल होने का अनुमान है.
बरसात के पानी में ही बह जाते हैं बच्चे
घडियाल दिसम्बर जनवरी में मेटिंग करते हैं, मार्च में अंडे देते हैं और अप्रैल-मई में बच्चे बाहर आ जाते हैं, उसके बाद बरसात होने पर बच्चे छोटे होते हैं. जो बरसात के पानी से बह जाते हैं. लेकिन कहा जाता है कि ये नेचुरल प्रोसेस है. प्रकृति अपने संतुलन के लिए ये करती है. घड़ियालों के बच्चे 2 प्रतिशत ही बचते हैं, ये भी प्राकृतिक ही है. नहीं तो पूरी नदी में ही घड़ियालों का बसेरा हो जाता.
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