Rajasthan News: विश्व की अति संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों (Critically Endangered Bird Species) में से एक गोडावण (Godavan Bird) और उसके संरक्षण की आवश्यकता के लिए जितने भी प्रयास किए जाएं वह कम हैं. इनकी वर्तमान संख्या 150 से 300 के बीच आंकी जा रही है, जो कि किसी भी प्रजाति के सफल प्रजनन और उसकी आनुवांशिक विविधता के लिए आवश्यक 'क्रिटिकल नम्बर से बहुत कम है. यही कारण है कि प्रोजेक्ट बस्टर्ड के माध्यम से इनके संरक्षण-प्रजनन के लिए राष्ट्रीय मरु उद्यान को चुना गया. योजना यह थी कि अंडों में से चूजे निकलने के बाद उन्हें सोरसन, जिला बारां (Baran) के सुरक्षित क्षेत्र में अनुकूलन के लिए छोड़ा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. अब कोटा (Kota) के पर्यावरण और पक्षी प्रेमी आंदोलन की रूपरेखा बना चुके हैं.


वर्ष 2001 में यहां थे गोडावण
हम लोग संस्था के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता ने बताया कि सोरसन में वर्ष 2001 तक गोडावन पक्षी रहा करते थे, ऐसे में यहां उन्हें बसाने में ज्यादा समस्या नहीं आएगी. इसके लिए सरकार ने बजट भी जारी कर दिया था, लेकिन क्या समस्या है जो इन्हें यहां नहीं लाया जा रहा. उन्होंने कहा कि इसके लिए अब कई संगठनों को साथ लेकर आंदोलन की रूपरेखा तय की जा रही है.  


कई प्रदेशों में पाए जाते थे गोडावन
वैज्ञानिकों ने पाया था कि यह क्षेत्र चूजों के पारिस्थितिक अनुकूलन के लिए सर्वथा उपयुक्त है, लेकिन जो भी कारण रहे हो, इस योजना को बस्ते में बंद कर के जैसलमेर जिले में ही चूजों को रखा जा रहा है. विगत 30 वर्षों के आंकड़ों को देखा जाए तो हम पाते हैं कि पश्चिमी राजस्थान के अतिरिक्त पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात के विस्तृत क्षेत्र में गोडावण पाए जाते थे. धीरे-धीरे इनके प्राकृतिक आवास घास के मैदानों पर मानवीय दबाव बढ़ता गया और गोडावन का वितरण क्षेत्र सिकुड़ कर पश्चिमी राजस्थान तक सीमित हो गया. 


वर्तमान स्थिति यह है कि अब सभी उपरोक्त राज्य सरकारें गोडावण के संरक्षण प्रजनन केन्द्र स्थापित करने में रुचि ले रही हैं, लेकिन उन्हें गोडावण के अंडे कहां से मिलेंगे, अर्थात उन सभी को जैसलमेर के वातावरण में अनुकूलित चूजे या अवयस्क गोडावण लेने पड़ेंगे. अच्छा हो कि वैज्ञानिक व नीति निर्धारक अपनी जिद छोड़ कर चूजे को अनुकूलन के लिए सोरसन में प्रस्तावित केन्द्र में जल्द से जल्द स्थापित करें. सोरसन के वातावरण में पले-बढ़े अवयस्क गोडावणों को मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के वातावरण के अनुकूल ढलने में आसानी रहेगी.


जितना महत्व बाघ का उतना ही घास का
वनों के संरक्षण में जो महत्व बाघ परियोजना का है, वहीं महत्व घास के मैदानों (चारागाह, ओरण, चरनोई की भूमि) के संरक्षण में गोडावण व बस्टर्ड समूह के अन्य पक्षियों का है. भारत में दुग्ध उत्पादन और मवेशियों की संख्या को ध्यान में रख कर सोचें तो चारागाहों का संरक्षण गोडावण और मनुष्य दोनों के लिए ही आवश्यक है. इन क्षेत्रों में भू-उपयोग परिवर्तन की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. पठारी घास के मैदानों पर अवैध खनन और अवैज्ञानिक चराई का दबाव बना रहता है. इसके लिए आवश्यक है कि स्थानीय लोगों को साथ लेकर गोडावण व उसके पर्यावरण के संरक्षण के दीर्घगामी उपाय किए जाएं. कोटा के वन्यजीव प्रेमी विगत वर्षों में सोरसन के गोडावण पालन केन्द्र के लिए राज्य सरकार से अनुरोध करते रहे हैं, लेकिन राजस्थान में अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.


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