लुप्त हो रही हाड़ौती चित्रकला को बचाने की मुहिम, बच्चों को सिखाई जा रही पेंटिंग की बारीकियां
Kota News: राजस्थान की विशिष्ट हाड़ौती चित्र शैली कोटा से जुड़ी है. राष्ट्रीय संग्रहालय के सुधाकर शर्मा ने कहा कि बच्चे इस शैली को सीखकर इसे बचा सकते हैं.
Rajasthan News: भारत में कई तरह की चित्र शैलियां है, राजस्थान उनमें से एक अलग स्थान रखता है और राजस्थान में भी हाड़ौती संभाग की चित्र शैली अपने आप में अनमोल, अद्वितीय और अलौकिक है. हाड़ौती शैली का चित्र देखते ही कह सकते हैं कि यह कोटा से जुड़ी हुई कला है.
पेंटिंग की बारीकियां सिखा रहे आर्ट कंजरवेटर नेशनल म्यूजियम भारत सरकार नई दिल्ली सुधाकर शर्मा ने ये बात कही है. उन्होंने कहा कि बच्चे यहां सीख रहे हैं यह अच्छी बात है, उन्हें हाड़ौती की कला संस्कृति का ज्ञान होगा तो इसे बचाया जा सकता है.
राजस्थान ललित कला अकादमी एवं कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग, जयपुर द्वारा द्वारा हाडोती लघु चित्र शैली का प्रशिक्षण कला दीर्घा में दिया जा रहा है. इस प्रशिक्षण में हाड़ौती लघु चित्र शैली के सिद्धहस्त चित्रकार मोहम्मद शेख लुकमान बच्चों को हाडोती लघु चित्र शैली की बारीकियां सिखा रहे हैं. सुधाकर शर्मा ने कहा कि कोटा में भित्ती चित्र और शिकार के लिए कोटा फेमस है. बच्चों को सिखा रहे हैं कि हमारी कलम कोटा कलम क्या है. हम बता रहे हैं भारत और राजस्थान सरकार का सहयोग है जिसमें ललित कला आदमी आर्ट एंड कल्चर को बढ़ावा दे रही है उसके लिए फंडिंग भी कर रही है.
युवा ही बचा सकते हैं लुप्त होती हाड़ौती की कला
कोटा शैली में बच्चों सहित बड़े सभी को सिखाया जा रहा है. लुप्त होती कला की बारीकियां को सिखाया जा रहा है और युवा ही इस कला संस्कृति व चित्र शैली को बचा सकते हैं. शर्मा ने कहा कि जितने भी प्राचीन चित्रकार थे, वह लगभग लुप्त हो गए, क्योंकि रोजी-रोटी का अभाव रहा. इसे आज के परिपेक्ष में संरक्षण की आवश्यकता है. राजा महाराजाओं के समय में संरक्षण प्राप्त होता था, वास्तु शिल्पकारों में भी चित्रकारी का प्रावधान रहा करता था. शर्मा ने कहा कि इस तरह के आयोजन होने चाहिए ताकि आगामी पीढ़ी को हम बताएं कि हमारे कोटा शैली अपने आप में अद्भुत और काफी खूबसूरत है.
400 साल पुरानी है कोटा की लघु चित्र शैली
मो. लुकमान ने कहा कि कोटा शैली के चित्र सीखने में बच्चे इंटरेस्ट ले रहे हैं. समय लगेगा लेकिन यह अच्छी पहल है कि बच्चों में इसका रुझान है.
समन्वयक डॉ. राकेश सिंह ने बताया कि हाड़ौती संभाग की 400 साल पुरानी इस कला को जीवंत रखने, युवाओं को इस कला से जोड़ने और नए लोग आगे आए इसी उद्देश्य से प्रशिक्षण दिया जा रहा है और सार्थक परिणाम भी आ रहे हैं. करीब 50 से अधिक बच्चे और बड़े यह कला सीख रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह हमारी धरोहर है, हमें ही इसे बचाना होगा.
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