Kota News: राजस्थान स्थित कोटा मेडिकल कॉलेज के न्यूरो सर्जरी विभाग लगातार एक के बाद एक सफल ऑपरेशन कर कीर्तिमान बना रहा है. मरीजों का एक पैसा भी नहीं लग रहा और प्राइवेट अस्पतालों से भी बेहतर सुविधाएं यहां दी जा रही हैं. एक बार फिर एक बच्ची का दुर्लभ ऑपरेशन कर उसका जीवन बचाया गया है. कोटा मेडिकल कॉलेज के न्यूरो सर्जरी विभाग में एक जटिल व दुर्लभ ऑपरेशन किया गया है. न्यूरो सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. एस. एन. गौतम ने बताया कि एक बच्ची के सिर से 350 ग्राम की गांठ को सफलता पूर्वक निकाला गया है.


डॉ. गौतम ने बताया कि डीसीएम निवासी दस माह के बच्चे को शिशु रोग विशेषज्ञ द्वारा न्यूरोसर्जरी विभाग ओपीडी में रेफर किया गया था. मरीज के सिर के पीछे हिस्से में बराबर गिठान थी, जो सिर के साथ एक और सिर की तरह दिखता था. इस बीमारी को ओक्सीपीटल एनकेफेलोसील कहते हैं. बच्चा बहुत छोटा था साथ ही उसका सिर भी काफी बड़ा था, लेकिन सांस की नली का रास्ता छोटे बच्चे जैसा ही था. सिर की गांठ काफी बड़ी थी. उन्होंने कहा कि ऐसे केस बहुत दुर्लभ होते हैं. पांच हजार लाइव बर्थ में एक केस रिपोर्ट होता है.


बेहोशी की दवा से कार्डियक अरेस्ट का था रिस्क
इस मामले में डॉ. एसएन गौतम ने बताया कि जन्मजात हृदय रोग के कारण मरीजों में बेहोशी की दवा के प्रभाव से कार्डियक अरेस्ट का रिस्क बहुत ज्यादा होता है. इसके लिए हमने मरीज की धड़कन और ब्लड प्रेशर की लगातार कार्डियक मॉनिटरिंग कर मरीज को मैनेज किया. ऐसे मरीजों का ऑपरेशन प्रोन पोजिशन में किया जाता है, जिसके कारण मरीज के फेफड़ों पेट एवं आंखों पर दबाव बढ़ जाता है. इससे कृतिम सांस देने में परेशानी आती है. मरीज का ऑपरेशन के दौरान टेंम्प्रेचर मेंटेन रखा गया, जिसके लिए लगातार टेंपरेचर मॉनिटरिंग की गई क्योंकि इन मरीजों में हाइपोथर्मिया का रिस्क रहता है.


डॉक्टरों ने ऑपरेशन को लेकर क्या कहा?
ऑपरेश प्रक्रिया को लेकर डॉ. एसएन गौतम ने बताया कि मरीज को ऑपरेशन के बाद दर्द ना हो इसका पूरा ध्यान रखा गया. मरीज को सिर की गठान व लार्ज साइज की वजह से इंट्राक्रेनियल प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ था, जिसको कम करने के लिए पहले वीपी शंट किया गया. जिसमें सिर से पेट तक नली डालकर प्रेशर कम किया गया. फिर मरीज को उल्टा लिटा कर सिर की गठान निकालने के लिए ऑपरेशन किया गया. फिलहाल मरीज अभी पूर्णतया स्वस्थ है. ऑपरेशन में डॉ. एस एन गौतम के साथ डॉ. बनेश जैन का सहयोग रहा. निश्चेतना विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ अर्चना त्रिपाठी एवं सहायक आचार्य डॉ हंसराज चारण ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को किया. 


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