Kota News: भारत के विभिन्न प्रदेशों और जिलों में अपनी ही परम्पराएं हैं. दीपावली (Diwali) के पांच दिवसीय महोत्सव के दौरान भी विभिन्न लोक संस्कृति और खेलों का आयोजन किया जाता है. ऐसे में कोटा (Kota) संभाग में भी गायों और भैंसों की जहां पूजा अर्चना होती है तो वहीं उनकी सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है, लेकिन जंगल में चारा खाते समय अगर कोई जानवर गाय-भैंस के बच्चे के पास आ जाए और उन्हें क्षति पहुंचाने का प्रयास करें तो गाय और भैंस किसी तरह अपने बच्चे की रक्षा करेगी. इसकी ट्रेनिंग कोटा संभाग में दी जाती है, जिसको खेखरा कहा जाता है. एक तरह से इसे खेखरा खेल या ट्रेनिंग कहा जा सकता है.


कोटा संभाग में दीपावली पर्व पर ग्रामीण अंचलों में विभिन्न परम्पराओं का निर्वहन आज भी किया जा रहा है. खेखरा यानी ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली के दूसरे दिन पालतू पशुओं को ट्रेनिंग दी जाती है कि जंगल में वे अपने बछड़े की रक्षा कर सकती है या नहीं. इस परम्परा को ही खेखरा कहते है और ग्रामीण सामूहिक रूप से इसका आयोजन करते है.


पूर्वजों की परम्परा है खेखरा खेल
ग्रामीण अपनी गाय भैंसों को बछड़े सहित एक जगह एकत्रित करते हैं और फिर उन्हें खेखरा खिलाया (ट्रेनिंग) जाता है.कोटा जिले के डाबी रोड स्थित सोटिया तलाई गांव निवासी रामदेव गुर्जर ने बताया कि दीपावली के दूसरे दिन खेखरा खेल खिलाने की पूर्वजों की परम्परा को अभी ग्रामीण क्षेत्रों में निभाया जाता है. पालतू पशु जंगल में अपने बछड़े की दूसरे जानवरों से रक्षा कर सकते है या नहीं इसके परीक्षण के तरीके की परम्परा को ही खेखरा बोलते है.


बरसों से चली आ रही है ये परंपरा
इस खेल में गांव के सभी पालतू पशु बछड़े के साथ एक जगह एकत्र किए जाते है. फिर एक लकडी के डंडे के आगे के हिस्से में बछड़े की सूखी चमड़ी को लपेटा जाता है और उसके बछड़े को पकड़कर उस लकड़ी के डंडे को गाय या भैंस के आगे किया जाता है. डंडें पर चमड़ी की गंध और अपने बछड़े को छुड़ाने के लिए गाय या भैंस प्रयास करती है या नहीं इसकी ट्रेनिंग देने वाला ही खेल खेखरा है. बरसों से यह परम्परा चली आ रही है. इस खेल में गाय या भैंस अपने बछड़े को छुड़ाने का पूरा प्रयास करती है, लोगों के पीछे भागती है और अपने बछडे को छुड़ा ले जाती है.


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