Kota News Today: कोटा में अंगदान जागरुकता को लेकर बड़े स्तर पर प्रयास शुरू किया गया है. खासकर कोचिंग स्टूडेंट्स को जागरूक किया जा रहा है, जिससे वह अपने प्रोफेशन के साथ ही कोटा को छोड़कर जहां भी रहेंगे अंगदान की जागरूकता बढ़ावा देंगे. 


इसी सिलसिले में कोटा के एक कोचिंग में अंगदान जागरूकता को लेकर मोटिवेशन सेशन हुआ. इस कार्यक्रम में कोटा के जाने माने चिकित्सकों ने स्टूडेंट्स को अंगदान को लेकर जागरूक किया. चिकित्सकों का कहना है कि अंगदान एक तरह का जीवनदान है.


 इसको लेकर भारत में जागरूकता की कमी है. अगर अंगदान को लेकर जागरूकता फैलाई जाती है, तो दुनिया से जाने वाला हर एक व्यक्ति अपने पीछे कई लोगों को जिंदगी देकर जा सकता है.


ऑर्गन फैल्योर से होती है 5 लाख की मौत
कोटा मेडिकल कॉलेज की ओर से अंगदान जागरूकता अभियान के तहत दक्ष-2 कैंपस में मेडिकल प्रवेश परीक्षा- नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स में जागरूक अभियान चलाया गया. 


मेडिकल कॉलेज के सुपर स्पेशलिटी यूनिट के अधीक्षक और यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. नीलेश जैन ने बताया कि देश में हर साल 5 लाख व्यक्तियों की मौत ऑर्गन फेल्योर के कारण होती है. 


उन्होंने बताया कि इसके अलावा डेढ़ लाख से अधिक व्यक्तियों की मौत दुर्घटनाओं में होती है, जबकि सिर्फ 52 हजार ही अंग मौजूद हैं. अगर अंगदान होता है तो हजारों लोगों को नया जीवन दिया जा सकता है.


स्पेन में होते हैं सर्वाधिक अंगदान 
कोटा शहर में नेत्रदान और रक्तदान को लेकर बेहतरीन कार्य हो रहा है, यहां तत्काल लोगों को सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. इतना समृद्ध इतिहास होने के बावजूद आज दुनिया में स्पेन में सर्वाधिक अंगदान होते हैं. 


अंगदान करने के मामले में भारत सबसे अंतिम देशों में शामिल है. यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. नीलेश जैन ने कहा कि हमें जागरूकता अभियान के माध्यम से लोगों के जीवन को बचाने का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करना है.


'खराब अंग के रिप्लेस से मिलता है नया जीवन'
डॉ. विकास खंडेलिया ने बताया कि आज विज्ञान इस हद तक विकसित हो चुका है कि जरूरत पड़ने पर एक व्यक्ति का एक अंग खराब होने पर उसे रिप्लेस किया जा सकता है. जिससे उसे जीवनदान मिल जाता है. 


डॉ. खंडेलिया ने कहा कि जीवित और मृत दोनों व्यक्ति अंगदान कर सकते हैं. जरूरत के मुताबिक, जीवित व्यक्ति अपनी किडनी और लीवर का कुछ हिस्सा दान कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि हार्ट, लिवर, किडनी, पैंक्रियाज और आंखों का कॉर्निया मरने के कुछ घंटे बाद तक जिंदा रहते हैं. 


जिस इसी दौरान दौरान ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. सभी स्टूडेंट्स समाज से जुड़े हुए हैं. अपने मित्रों, परिजनों को इस बारे में बताएं, जिससे लोग रक्तदान की तरह ही अंगदान करके किसी का जीवन बचाने के लिए आगे आएं.


'डोनर के परिजनों की सहमति अहम'
डॉ. दिलीप माहेश्वरी ने बताया कि ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान किए जा सकते हैं. इसके लिए सबसे पहले डोनर का कुछ मेडिकल टेस्ट कर कंपैटिबिलिटी चेक की जाती है. सभी टेस्ट के रिजल्ट अनुकूल आने के बाद डॉक्टर अपना प्रोसेस शुरू करते हैं और डोनर की बॉडी से वह हिस्सा रिमूव कर के रिसीवर में ट्रांसप्लांट किया जाता है. 


इसके बारे में डॉ. दिलीप माहेश्वरी ने आगे बताया कि हालांकि, इसको लेकर डोनर के परिजनों की सहमति बहुत अहम होती है. अंगदान के बाद पूरे सम्मान के साथ डोनर की बॉडी उसके परिजनों को वापस सौंप दी जाती है.
 
ऑर्गन डोनेशन की क्या है प्रक्रिया?
कोई भी शख्स 'ऑर्गन डोनेशन कार्ड' भरकर अंगदान के लिए खुद को रजिस्टर कर सकता है. यह कार्ड अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में उपलब्ध होते हैं. इसके अलावा, सरकार के जरिये कई वेबसाइट बनाई गई हैं, जिसके जरिए आप ऑर्गन डोनेशन के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इसके लिए नेशनल ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑगेर्नाइजेशन की वेबसाइट पर जाकर भी ऑनलाइन पंजीकरण कर सकते हैं.  


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