Kota Eye Donation Camp: आंखें ईश्वर की सबसे बड़ा वरदान है. इसी कड़ी में नेत्रदान को लेकर कोटा में लगातार जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है. इसका असर कुछ हद ग्राउंड जीरो पर दिखाई पड़ रहा है. लोग अपने जन्मदिवस, शादी की वर्षगांठ और उत्सवों पर नेत्रदान का संकल्प ले रहे हैं. कोटा में पिछले 11 साल से नेत्रदान पर काम हो रहा है. कोटा से शुरू किया गया काम अब बारां, बूंदी और झालावाड़ में तक पहुंच चुका है. शहर के साथ गांव के लोग भी अब नेत्रदान का महत्व समझने लगे हैं. 


संपूर्ण हाड़ौती संभाग में नेत्रदान, अंगदान और  देहदान के लिए सम्मिलित रूप से कार्य कर रही संभाग की संस्था शाइन इंडिया फाउंडेशन द्वारा, हाड़ौती संभाग में 38वें राष्ट्रीय नेत्रदान जागरूकता पखवाड़ा कार्यक्रम के तहत गांव गांव तक पहुंचाया जा रहा है. शाइन इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. कुलवंत गौड ने बताया कि वह 11 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. पहले शोक संदेश देखकर लोगों को नेत्रदान के लिए कहा जाता था, जिसमें 10 प्रतिशत लोग भी तैयार नहीं हो पाते थे. बड़े ही मुश्किल से एक-एक जोड़ी कॉर्निया एकत्रित कर अभियान को आगे बढ़ाया और अब यह स्थिति है कि लोग स्वयं ही कॉल करके कहते हैं कि नेत्रदान करवाना है. 


लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए आवेदन


डॉ. कुलवंत ने कहा कि इन 11 साल की यात्रा में 13 हजार 700 लोगों ने नेत्रदान के लिए संकल्प लिया है, इसके लिए परिवार को भी पहले से ही मोटिवेट कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह अब तक कोटा संभाग से 1800 कॉर्निया ले चुके हैं. जबकी जयपुर और अजमेर 20 साल से काम कर रहे हैं. इसके अलावा कोटा के सरकारी अस्पताल में भी दो वर्षों से काम शुरू किया गया है. संस्था ने इसको लेकर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए आवेदन किया है.


बच्चों और शिक्षकों के साथ नेत्रदान पर की चर्चा


नेत्रदान पखवाड़े के तहत जागरूकता कार्यशाला के अंतर्गत शाइन इंडिया फाउंडेशन और ईबीएसआर बीबीजे चैप्टर के कोऑर्डिनेटर डॉ. कुलवंत गौड ने राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय इंदिरा नगर, कोटा में विद्यालय के 300 से अधिक बच्चों और शिक्षकों के साथ में नेत्रदान की उपयोगिता, पात्रता और भ्रांतियों पर विस्तार से चर्चा की. 


2 से 80 वर्ष तक के लोग कर सकते हैं नेत्रदान


संस्था की ज्योति-मित्र दंत चिकित्सक डॉ अक्षी गुप्ता ने कहा कि, नेत्रदान सबसे सरल होने वाला अंगदान है, जिसमें पूरी आंख ना लेकर, सिर्फ कॉर्निया लिया जाता है. नेत्रदान 10 मिनट में पूरी हो जाने वाली, एक रक्त विहीन प्रक्रिया है. जिसमें चेहरे पर कोई विकृति नहीं आती है. 2 वर्ष से 80 वर्ष तक की उम्र के व्यक्ति नेत्रदान कर सकते हैं. मृत्यु के उपरांत दिवंगत की आंखों को पूरी तरह बंद कर, उन पर गीला रुमाल या कपड़ा रख, पंखा बंद कर देना चाहिए जिससे आंखों का कॉर्निया सुरक्षित रहे और सूखे नहीं.  


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