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Chambal Wildlife: चंबल में आबाद हो रही 'जल मानुष' की दुनिया, अठखेलियां देखने इकट्ठी हो रही भीड़

Kota News: चंबल अपनी मनोहर और प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए मशहूर है. यहां पर बड़ी संख्या में मछलियां, मगरमच्छ, घड़ियाल, कछुए, सारस, बतख सहित कई जलीय जीव जंतु तो पाए जाते हैं.

Kota News Today: राजस्थान में रावतभाटा से कोटा और आसपास के क्षेत्र में फैला चंबल का विहंगम प्राकृतिक दृश्य रूप लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. दूसरी तरफ यहां के जंगली पशु पक्षी और जलीय जीव जंतु भी आनंद की अनुभूति करते हैं. 

यहां के मनोरम दृश्य देखकर प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगाया जा सकता है. चंबल में अनेक प्रकार की मछलियां, मगरमच्छ, घड़ियाल, कछुए, सारस, बतख सहित कई जलीय जीव जंतु तो पाए जाते हैं. 

इन दिनों यहां ऊदबिलाव की अठखेलियां लोगों को रोमांचित कर रही हैं. वह कभी परिवार के साथ दिखाई देते हैं और कभी मछलियों का शिकार करते नजर आते हैं और जरा सी आहट से गायब भी हो जाते हैं.

'मां चर्मण्यवती आंचल में बसा रहे नई दुनिया'
रावतभाटा में सबमर्सिबल ब्रिज के पास इन दिनों ऊदबिलाव का कुनबा नजर आ रहा है. इसे जल मानुष भी कहा जाता है. नेचर प्रमोटर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हनीफ जैदी बताते हैं कि उन्होंने इतने ऊदबिलाव लंबे समय बाद देखे हैं.

 चंबल की वादियों में ऊदबिलाव की खूबसूरत दुनिया सजती जा रही है. हनीफ जैदी बताते हैं कि दुलर्भ प्राणियों की श्रेणी में शामिल जल मानुष बहुत शातिर होते हैं, उतना ही दिलेर भी है. 

बाढ़ से संघर्ष कर न केवल खुद को बल्कि अपने वजूद को भी कायम रखा है. मां चर्मण्यवती के महफूज आंचल में वह अपना आशियाना बना रहा है. नई दुनिया बसा रहा है और आए दिन वहां आखेट करता है.

ऊदबिलाव बना रहे स्थाई आशियाना
चंबल को आशियाना बनाने वाले ऊदबिलाव मां चर्मण्यवती के महफूज आंचल में फल-फूल रहे हैं. रावतभाटा में चंबल नदी पर बने सबमर्सिबल ब्रिज साइट पर ऊदबिलावों की अटखेलियां देखी जा सकती है. 

इन्हें मछलियों का शिकार करते देख वन्यजीव प्रेमी रोमांचित हो उठते हैं. सबसे ज्यादा ऊदबिलाव की संख्या कोटा चंबल में देखने को मिल रही है. 

विशेषज्ञों के मुताबिक, रावतभाटा से कोटा तक करीब 40 ऊदबिलाव परिवार के साथ रह रहे हैं. इन्हें यहां की आबोहवा इतनी पसंद आ रही है कि इन्होंने यहां स्थाई बसेरा बना लिया और लगातार प्रजनन कर वंश वृद्धि कर रहे हैं.

ऊदबिलाव बहादुर और परिवारवादी जीव 
रिसर्च स्कॉलर हर्षित बताते हैं कि ऊदबिलाव जितना बहादुर होते हैं, उतने ही परिवारवादी भी होते हैं. यह समूह में परिवार बनाकर रहते हैं.

चंबल की अपस्ट्रीम में भीतरिया कुंड से हैंगिंग ब्रिज तक और गरड़िया महादेव के आसपास के करीब 8 से अधिक ऊदबिलाव रहते हैं. 

इनकी फैमिली में 6 से 8 सदस्यों की संख्या होती है. ऊदबिलाव में से अगर कोई एक सदस्य खो जाता है तो उसे आवाज देकर ढूंढते हैं. यह विश्वास और एकता के सूत्र से बंधे होते हैं.

जब परिवार के किसी सदस्य पर कोई आंच आती है तो उससे निपटने के लिए पूरा परिवार एकजुट हो जाता है और मदद के लिए सभी एक साथ दौड़ पड़ते हैं.

मछुआरों के जाल में फंस जाते हैं ऊदबिलाव
ऊदबिलाव के संरक्षण के लिए मछली का अवैध शिकार रोकना जरूरी है. चंबल में अवैध रूप से सैकड़ों लोग मछली पकड़ते हैं और रात को जाल तक डाल देते हैं.

ऐसे में खाने की तलाश में ऊदबिलाव भी इनके जाल में फंस जाते हैं. सरकार को अवैध मतस्य आखेट रोकना चाहिए.
 
खतरा देख हमला करते हैं ऊदबिलाव
ऐसा माना जाता है यह इंसानों को देखकर हमला कर देते हैं ऐसा माना जाता है, लेकिन यह अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सजग रहता है और इसे लगता है कि कोई इनके बच्चों को मार देगा. 

इसलिए पास आने पर ये हमला कर देते हैं जैसा की दूसरे वन्यजीव करते हैं. यह जीव काफी समझदार और फुर्तीले होते हैं. 

इन इलाकों में थी बड़ी संख्या
ऊदबिलाव अच्छे तैराक होते हैं और समूह में रहकर शिकार करते हैं. नेचर प्रमोटर एएच जैदी कहते हैं कि साल 1998 में जवाहर सागर, जावरा, एकलिंगपुरा समेत कोटा बैराज से राणाप्रताप सागर तक इनकी काफी संख्या थी. 

वहीं, 70 के दशक में कुल्हाड़ी क्षेत्र चंबल में भी दिखाई देते थे. ऊदबिलाव जल और थल दोनों ही जगह पर आराम से रह लेते हैं. इनकी लंबाई करीब एक मीटर होती है. मछली इनका मुख्य आहार है.

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