Rajasthan: भगवान नृसिंह के जयकारों के बीच किया गया हिरण्यकश्यप के 25 फीट पुतले का वध, 125 साल पुरानी है परंपरा
Rajasthan Unique Rituals: भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप के पुतले का वध करने के बाद लोग कागज और लकड़ियां घर ले जाते हैं. मान्यता है कि लकड़ी घर के बाहर जलाने से साल भर कोई अनिष्ट नहीं होता.
Lord Narsimha Festival: अग्रवाल वैष्णव मोमीयां पंचायत द्वारा भगवान नृसिंह प्राकट्य महोत्सव का भव्य समारोह गांधी चौक रामपुरा में आयोजित किया गया. भगवान नृसिंह के स्वरूप द्वारा हिरण्यकश्यप के 25 फीट(25 feet) के पुतले का वध किया गया. इस दौरान भक्त प्रह्लाद द्वारा हाथ जोड़ने पर भगवान नृसिंह के स्वरूप का गुस्सा शांत हुआ. मान्यता के अनुसार, शाम और रात्रि की संक्रांति बेला पर भगवान नृसिंह का प्राकट्य हुआ तो पूरा गांधी चौक जयकारों से गूंज उठा. जयकारों के बीच ही हिरण्यकश्यप के पुतले का वध किया गया. इसके बाद पुतले को लूटने के लिए लोगों की खासी भीड़ जमा हो गई.
हिरण्यकश्यप को प्राप्त था विचित्र वरदान
संस्था के प्रवक्ता संजय गोयल ने बताया कि राम दरबार व शिवजी, हनुमान व भक्त प्रहलाद की झांकी सजाई गई थी. इसके बाद महाआरती की गई. अतिथियों ने कहा कि भगवान नरसिंह शक्ति व पराक्रम के देवता माने जाते हैं. वहीं हरि, विष्णु के उग्र और शक्तिशाली अवतार कहे जाते हैं. उन्होंने भगवान नृसिंह से देश की खुशहाली की प्रार्थना की. हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था कि उसे नर व पशु नहीं मार सकता, न अस्त्र से न शस्त्र से मारा जा सकता है. इसलिए भगवान विष्णु ने धरती को पाप से मुक्त करने के लिए श्री नृसिंह भगवान का रूप धारण कर उसका वध किया.
125 वर्ष पुरानी हैं मान्यताएं
संस्था के अध्यक्ष कैलाश गुप्ता व सचिव चेतन मित्तल के अनुसार यह परंपरा पिछले 125 वर्षों से चली आ रही है. भगवान नृसिंह स्वरूप द्वारा हिरण्यकश्यप के पुतले का वध करने के बाद लोग पुतले के कागज व लकड़ियां अपने घर ले गए. मान्यता है कि इस लकड़ी को घर के बाहर लगाते हैं. जिससे साल भर कोई अनिष्ट नहीं होता है. इसके बाद कई माताओं ने अपने छोटे छोटे बच्चों को भगवान की गोद में विराजित किया और भगवान का आशीर्वाद दिलाया. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे रात को डरते नहीं हैं और बीमार नहीं पड़ते.
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