Kota News: कोटा (Kota) की अनोखी देवनारायण योजना (Devnarayan Yojana) के तहत एक तरफ तो गोबर सभी के लिए 'कंचन' बन रहा है. वहीं दूसरी तरफ जानवरों का यही  गोबर नगर निगम के लिए मुसीबत बन जाता है और गोबर के पहाड बन जाते हैं.  दरअसल, नगर निगम की गौशाला में चार हजार गोवंश का गोबर मुसीबत बन जाता है और गोशाला के पीछे गोबार के पहाड़ बन जाते हैं.  जो बारिश में पानी के साथ बहते हैं और बदबु भी आती है. निगम ने इससे खाद बनाने और बेचने का प्रयास किया, लेकिन अफसरों के रुचि नहीं लेने से हर योजना फेल हो गई.


एक तरफ नगर निगम की उदासीनता है तो दूसरी तरफ यूआईटी की रुची है और इसी के चलते देवनारायण योजना के तहत यूआईटी की इस योजना में पशुओं का गोबर आय का साधन बन गया है. यहां गोबर से कंप्रेस्ड बायो गैस बनाई जा रही है, जिसे पीएनजी और सीएनजी में बदलकर बेचा जा रहा है. पशुपालकों को गोबर का एक रुपए प्रति किलो भुगतान भी मिल रहा है. जिससे उनका जीवन स्तर ऊंचा हो रहा है और वह प्रतिमाह 10 हजार से अधिक की राशि केवल गोबर से कमा रहे हैं. गेल गैस और यूआईटी में 3000 किलो गोबर रोज खरीदने का एमओयू भी हुआ है. 


बसाई गई है पशुपालकों की एक कॉलोनी
इस तरह पशुपालक, यूआईटी और राजस्थान राज्य तीनों को आय हो रही है. देश की यह अनूठी योजना हैं जिसमें पशुपालकों की एक कॉलोनी बसाई गई है, जहां केवल पशुपालक ही रहते हैं और उनके जानवरों का गोबर 'कंचन' बन रहा है. यहां अपनी तरह का अनूठा और सबसे बड़ा बायो गैस प्लांट है. इसमें गुणवत्तायुक्त तरल खाद बन रही है. इसमें बनने वाली कंप्रेस्ड बायो गैस  (सीवीजी) को गेल इंडिया खरीदती है. वहीं यहां उच्च संयंत्र लगने से पशुपालकों को गोबर की दुर्गंध से भी मुक्ति मिली है. 


साथ ही हर पशुपालक को 2 से 10 हजार रुपये प्रतिमाह आय होने लगी है. 30 करोड़ रुपये लागत से बने 150 टन प्रतिदिन की क्षमता वाले प्लांट में 40-40 लाख टन के दो टैंक हैं. इनसे होकर गोबर सेडिमेंटेंशन टैंक पहुंचता है, जहां गोबर से मिट्टी और अन्य गंदगी अलग हो जाती है. यहां से गोबर 50-50 लाख लीटर के दो डाइजेस्टर में पहुंचता है. बता दें यह गोबर हर किसी के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है.


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