Kota News: कोटा को शिक्षा नगरी के साथ-साथ चंबल के किनारे पर बसा एक खूबसूरत शहर के नाम भी जाना जाता है. चंबल नदी कोटा की जीवनदायिनी मानी जाती है. भले ही चंबल नदी का जलस्तर कभी कम ना हो हुआ हो लेकिन कोटा में भूजल की स्थिति कम होने से चिंता की लकीरें खिंचती दिखाई दे रही है. लगातार भूजल की स्थिति कम होने के चलते कई इलाकों में नलकूप, हैंडपंप सूखने लगे हैं. सबसे ज्यादा परेशानी किसानों को उठानी पड़ रही है. जहां पर बोरिंग कराने के दौरान भूजल का स्तर काफी नीचे चले जाने के चलते जल की आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है.


जलस्तर में आ रही कमी


भूजल की स्थिति को सही करने के लिए बारिश के पानी को संग्रहित करना पड़ेगा, तब जाकर ही भूजल की स्थिति में सुधार हो सकता है. लगातार भूजल की स्थिति कम होने के चलते चिंता की लकीरें खिंच गई हैं. हालांकि कई योजना के माध्यम से तालाब कुएं, जोहड़, प्राकृतिक स्त्रोत से जल संग्रहित किया जाता है, लेकिन सरकारी मॉनिटरिंग और जागरूकता की कमी के कारण इस योजना के प्रति आमजन और ग्रामीण रुझान नहीं दिखा रहे हैं. यही कारण रहा कि आमजन की लापरवाही के चलते भूजल स्तर लगातार गिरता हुआ दिखाई दे रहा है.


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ऐसे नापा जाता है भूजल का स्तर


भूजल वैज्ञानिक प्रवल अथैया ने बताया की पानी का लेवल एक वर्ष में दो बार नापा जाता है. बारिश से पहले और बारिश के बाद पानी का लेवल मापा जाता है. बारिश के बाद आमतौर पर पानी के लेवल में कुछ बढ़ोतरी होती है. लगातार गिरता भूजल स्तर चिंता की बात है. इसके लिए अब वाटर सिक्योरिटी प्लान पर काम करना होगा. वाटर सिक्योरिटी प्लान में खेती के तरीकों में बदलाव, कम पानी से ज्यादा खेती और बारिश के पानी के संग्रहण की योजनाओं को ग्रामीणों को बताया जा रहा है.


गर्मी में सबसे ज्यादा होती है परेशानी


कोटा क्षेत्र में भूजल स्थिति की बात की जाए तो सांगोद, इटावा, लाडपुर, बूंदी जिले के नैनवा, करवर, झालावाड़ जिले के डीग, पिडावा, बारां के शाहाबाद, अंता सहित कई ऐसे इलाके हैं जहां पर भूजल की स्थिति खराब है. भूजल की स्थिति काफी नीचे चली गई है. इन इलाकों में 10 से 15 मीटर तक भूजल की स्थिति कम देखी गई है.


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