Lok Sabha Election 2024: राजस्थान की नागौर लोकसभा क्षेत्र को कही जाती है जाटलैंड सीट, जानें- यहां के सियासी समीकरण
Nagaur Lok Sabha Seat: नागौर लोकसभा क्षेत्र जाट राजनीति का गढ़ माना जाता है. नागौर में जाट मतदाता सर्वाधिक हैं. उसके बाद यहां मुस्लिम, राजपूत एससी और मूल ओबीसी के मतदाता भी अच्छी-खासी तादाद में हैं.

Rajasthan Lok Sabha Election 2024: देशभर में लोकसभा-2024 (Lok Sabha Election 2024) के चुनाव की तैयारियां जोर शोर से चल रही है. राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं. उसमें से आज हम बात करेंगे नागौर (Nagaur) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की. प्रदेश में नागौर एक छोटा सा शहर है.नागौर निर्वाचन क्षेत्र में लाडनूं, जायल, डीडवाना, नागौर, खींवसर, मकराना, परबतसर और नवां कुल आठ विधानसभा सीटें आती हैं. नागौर लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था.
नागौर लोकसभा सीट प्रदेश की हॉट सीटों में शुमार रहती है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए से गठबंधन कर आरएलपी के हनुमान बेनीवाल यहां से चुनाव जीते थे. उनके सामने कांग्रेस की ज्योति मिर्धा मैदान में थीं, लेकिन इस बार ज्योति मिर्धा बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं. ऐसे में इस सीट पर इस बार काफी रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है. हालांकि हनुमान बेनीवाल ने साल 2023 के विधानसभा चुनाव में खींवसर विधानसभा से चुनाव में जीत हासिल कर विधायक बन चुके हैं.
विधानसभा चुनाव में 8 में 4 सीटें कांग्रेस को मिलीं
इस सीट से कांग्रेस, बीजेपी और अन्य दलों के दावेदारों की लंबी लिस्ट मानी जा रही है. अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी के टिकट को लेकर दावेदारों की लंबी लिस्ट है. दावेदारों का मानना है कि बीजेपी के टिकट मतलब जीत पक्की है. साल वहीं 2023 के विधानसभा चुनाव के परिणामों पर एक नजर डाले तों नागौर जिले की कुल आठ विधानसभा सीटों में से चार पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. दो सीटों पर बीजेपी और एक पर आरएलपी को जीत मिली है. एक सीट निर्दलीय के खाते में गई है.
नागौर लोकसभा सीट का यह है इतिहास
- साल 1952 में जीडी सोमानी (स्वतंत्र पार्टी)
- साल 1957 में मथुरादास माथुर (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1962 में एसके डे (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1967 में एन के सोमानी (स्वतंत्र पार्टी)
- साल 1971 में एन के सोमानी (स्वतंत्र पार्टी)
- साल 1977 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1980 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यू)
- साल 1984 में रामनिवास मृदा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1989 में रामनिवास मिर्धा (जनता दल)
- साल 1991 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1996 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1997 में भानु प्रकाश मिर्धा (भारतीय जनता पार्टी)
- साल 1998 में राम रघुनाथ चौधरी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 1999 में रामरघुनाथ चौधरी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 2004 में भंवर सिंह डांगावास (भारतीय जनता पार्टी)
- साल 2009 में ज्योति मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- साल 2014 में सीआर चौधरी (भारतीय जनता पार्टी)
- साल 2019 में हनुमान बेनीवाल (आरएलपी एनडीए गठबंधन)
नागौर जाट राजनीति का प्रमुख गढ़
नागौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र परंपरागत रूप से जाट राजनीति का प्रमुख गढ़ माना जाता है. नागौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के जातिगत समीकरण पर गौर किया जाए, तो नागौर में जाट मतदाता सर्वाधिक हैं. उसके बाद यहां मुस्लिम, राजपूत एससी और मूल ओबीसी के मतदाता भी अच्छी-खासी तादाद में हैं. नागौर लोकसभा सीट पर मिर्धा परिवार का लंबे समय तक वर्चस्व रहा है. नाथूराम मिर्धा परिवार जाट समुदाय से आता है. मिर्धा परिवार का जाट समाज में बड़ा दबदबा माना जाता है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों मिर्धा परिवार पर दावा खेल चुकी हैं.
साल 1997 में बीजेपी ने पहली बार किया प्रयोग
साल 1997 में बीजेपी ने पहली बार प्रयोग किया और मृदा परिवार के भानु प्रताप मृदा को अपने पाले में लेकर उन्हें चुनाव लड़वाया, जिससे पहली बार नागौर में बीजेपी को जीत मिली. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन छोड़कर पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा बीजेपी में शामिल हो गईं. बीजेपी ने उन्हें अपना विधानसभा में प्रत्याशी बनाया, लेकिन वो चुनाव नहीं जीत सकीं. उन्हें उन्हीं के चाचा कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा ने हरा दिया.
ऐतिहासिक रूप से भी नागौर काफी महत्वपूर्ण है. यहां की अकबरी जमा मस्जिद एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. यह मस्जिद शहर के बीचों-बीच गड़ा मोहल्ला में तालाब के पास स्थित है. नागौर विशेष रूप से हर साल लगने वाले पशु मेले के लिए काफी प्रसिद्ध है. इसके अलावायहां कई महत्वपूर्ण मंदिर और स्मारक भी हैं. जैसे नागौर किला नागौर जिला कसूरी मेथी के लिए प्रसिद्ध है.
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