Rajasthan News: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान पर राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष मदन राठौड़ का बयान सामने आया है. उन्होंने सीएम योगी के बयान से सहमति जताई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि ज्ञानवापी को 'मस्जिद' कहना 'दुर्भाग्यपूर्ण' है और ज्ञानवापी स्वयं 'भगवान विश्वनाथ' का एक सच्चा स्वरूप है.


इस पर अपनी राय रखते हुए मदन राठौर ने कहा, "ज्ञानवापी के नाम से ही साफ हो जाना चाहिए. उन्होंने ऐसा बयान दिया है तो उनके पास जरूर कोई सूचना या जानकारी होगी लेकिन मैं कहूंगा कि ज्ञानवापी शब्द ही साफ करता है कि वो(विवादित स्थल) क्या है".


क्या कहा है योगी आदित्यानाथ ने?


योगी ने शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ‘समरस समाज के निर्माण में नाथपंथ का अवदान’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की, जहां उन्होंने काशी और ज्ञानवापी के पूजनीय स्थल के आध्यात्मिक महत्व पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग ज्ञानवापी को मस्जिद कहते हैं, जबकि यह स्वयं भगवान विश्वनाथ का स्वरूप है.'






मुख्यमंत्री ने पौराणिक ऋषि आदि शंकर का भी विस्तृत उल्लेख किया और काशी में भगवान विश्वनाथ के साथ शंकर की मुलाकात के बारे में एक किस्सा सुनाया, जहां देवता ने एक बहिष्कृत व्यक्ति के रूप में प्रकट होकर शंकर की अद्वैत की समझ का परीक्षण किया. किस्सा सुनाते हुए ही मुख्यमंत्री ने ज्ञानवापी को स्वयं भगवान का प्रत्यक्ष स्वरूप बताया.


क्या है ज्ञानवापी का मुद्दा?


ज्ञानवापी का मुद्दा लंबे समय से कानूनी जांच के केंद्र में रहा है, जिसमें हिंदू पक्ष का तर्क है कि ज्ञानवापी मस्जिद पहले से मौजूद मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस दावे का विरोध किया है.यही कारण है कि मुख्यमंत्री की टिप्पणी ने एक तरह का विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें विपक्षी समाजवादी पार्टी(सपा) ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री पर निशाना साधा, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अयोध्या के कुछ संतों ने उनका समर्थन किया है.


मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते हुए अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत राजू दास ने कहा, ''यह केवल दुर्भाग्यपूर्ण लोग हैं, जो ज्ञानवापी को मस्जिद कह रहे हैं. यह स्वयं विश्वनाथ हैं, और काशी विश्वनाथ का मंदिर है. यहां तक कि अगर कोई दृष्टिहीन व्यक्ति भी संरचना पर अपना हाथ रखता है, तो उसे 'सनातन' के सभी प्रतीकों की अनुभूति होगी. हम लगातार कहते रहे हैं कि यह एक मंदिर है, केवल मूर्ख लोग ही इसे मस्जिद कहते हैं.''


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