Rajasthan News: राजस्थान में मेवाड़ (Mewar) के इतिहास को कौन नहीं जानता है. यहां बप्पा रावल से लेकर कई योद्धा हुए हैं जिन्होंने ने अपनी तलवार की धार से सभी को पानी पिलाया है. इनमें भी एक ऐसे योद्धा हुए जो कभी किसी युद्ध मे नहीं हारे. यहां तक कि उनके द्वारा बनाए गए किले के अंदर तक नहीं पहुंच पाए. उन्होंने अपने किले में इतनी बड़ी दीवार बनाई जो विश्व में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी दीवार कही जाती है. वही एक मात्र शासक थे जिन्होंने मेवाड़ में कई किले बनवाए.
उनका नाम है महाराणा कुम्भा (Maharana Kumbha). वैसे तो महाराणाओं के रूप में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को सभी याद करते हैं लेकिन महाराणा प्रताप के पहले महाराणा कुम्भा थे जिनकी वीरता के आगे विदेशी आक्रांता भी नतमस्तक थे. महाराणा कुम्भा ने सन 1433 में मेवाड़ की राजगद्दी संभाली. शासक बनने के बाद उन्होंने अपने पराक्रम से न केवल आंतरिक और बाहरी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना किया बल्कि अपनी युद्धकालीन और सांस्कृतिक उपलब्धियों द्वारा मेवाड़ के गौरव को बढ़ाया.
जो भी युद्ध लड़ने आया उसे पछाड़ा
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की कक्षा 12वीं की पुस्तक भारत का इतिहास और इतिहास के व्याख्याता अनिल जोशी बताते हैं कि मेवाड़ और मालवा दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी राज्य थे. पिता मोकल के हत्यारे महपा पंवार ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के पास शरण ले रखी थी. कुम्भा ने सुल्तान को चिट्ठी लिखकर महपा की मांग की, जिसे सुल्तान द्वारा अस्वीकार कर दिया गया. इसलिए कुम्भा ने मालवा पर आक्रमण करने का फैसला किया. सन 1437 में सारंगपुर नामक स्थान पर दोनों की सेनाओं के बीच घनघोर संघर्ष हुआ जिसमें पराजित होकर महमूद भाग गया.
खिलजी से लेकर कुतुबुद्दीन तक को दी मात
शम्सखां ने गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन के साथ अपनी लड़की की शादी कर उससे मेवाड़ पर हमले के लिए सहायता मांगी. इस पर कुतुबुद्दीन मेवाड़ पर आक्रमण के लिए रवाना हुआ. सिरोही के देवड़ा शासक की प्रार्थना पर उसने अपने सेनापति मलिक शहबान को आबू विजय के लिए भेजा और खुद कुम्भलगढ़ की तरफ चला. यहीं नहीं कुतुबुद्दीन और महमूद खिलजी में संधि हुई. दोनों ने आक्रमण किया. किसी इतिहासकार का कहना है कि दोनों धन लेकर पीछे हटे और कोई कहता है कि महाराणा कुम्भा ने दोनों को हराया.
9 मंजिले और 122 फुट ऊंचे विजय स्तंभ को बनवाया
महाराणा कुम्भा के कार्यकाल में चित्तौड़ दुर्ग के भीतर नौ मंजिले और 122 फीट ऊंचे विजय स्तम्भ का निर्माण कराया गया था. महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय की याद इसे बनवाया था. इसमें हिंदू देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएं उत्कीर्ण थीं. मेवाड़ क्षेत्र में कुल 84 किले बनाए गए थे जिनमें से अकेले महाराणा कुम्भा ने 32 बनवाए थे.
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