Makar Sankranti 2023: नया साल और उसका पहला त्योहार मकर सक्रांति, जिसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. इस दिन के बाद से देवताओं के दिन माने जाते हैं और इसी दिन में हिंदू धर्म में शादियां शुरू हो जाती हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि हर 72 साल में मकर सक्रांति एक दिन आगे खिसक जाती है. इस साल तो 14 जनवरी को ही मकर सक्रांति मनाई जाएगी, लेकिन ज्योतिषियों का मानना है कि साल 2024 में इसकी तारीख बदलने वाली है. 


एबीपी न्यूज ने जब उदयपुर के ज्योतिषी हरीश चंद्र शर्मा से बात की, तो उन्होंने यह तथ्य बताए और इसके पीछे का कारण भी बताया. जानिए क्या महत्व है मकर सक्रांति का और क्यों बदलते हैं दिन?


ज्योतिषी हरीश चंद्र शर्मा ने क्या बताया?
ज्योतिषी हरीश चंद्र शर्मा ने बताया कि उत्तरायण ही एक तरह से मकर सक्रांति है, जब शिशिर ऋतु प्रारंभ होती है. सही मायने में देखा जाए तो 21 दिसंबर को मकर सक्रांति आती है, लेकिन भारतीय पद्धति नक्षत्रों की गणना करते हैं, जिस कारण यह 14 जनवरी को मनाई जा रही है. इसी पद्धति के अनुसार 285 ईसवी तक में संक्रांति 21 दिसंबर को मनाई जाती थी. इसके बाद हर 72 साल में एक दिन आगे बढ़ता गया. 


इसका एक बड़ा उदाहरण यह भी देखें कि स्वामी विवेकानंद का जन्म मकर सक्रांति को हुआ था और उस दिन 12 जनवरी थी. तब से अब तक 2 दिन आगे बढ़ गए हैं. अब आने वाले लीप ईयर यानी साल 2024 में संक्रांति एक दिन आगे बढ़ जाएगी और फिर अगले 72 साल तक 15 जनवरी तक मनाई जाएगी. 


यह है मकर सक्रांति का महत्व
ज्योतिषी हरीश चंद्र शर्मा ने बताया कि मकर सक्रांति का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है. इस दिन से सूर्य दक्षिण से उत्तर की तरफ आता है. यह हमारे लिए उर्जा का वाहक है. इसके बाद देवताओं के दिन माने जाते हैं. इसलिए शादियां होती है जो जल झुलनी एकादशी तक होगी. उन्होंने यह भी बताया कि भीष्म पितामह ने इच्छामृत्यु की थी. उन्होंने भी उतरायण में प्राण त्यागे जो मकर सक्रांति के बाद होता है. इन्ही कारणों से इसके बाद के दिन शुभ माने जाते हैं.


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