Rajasthan News: उदयपुर में हुआ मलेरिया का सफाया, 8 साल में 87 प्रतिशत घटे रोगी
Udaipur:राजस्थान के उदयपुर में मलेरिया के 8 साल में करीब 87 प्रतिशत केस घट गई है, इस साल अब तक 88 हजार जांचे हुई जिसमें सिर्फ 5 रोगी पॉजिटिव मिले हैं. 2013 में जिले में 2104 मलेरिया के रोगी मिले थे.
Udaipur News: कोई भी सरकार हर प्रकार की बीमारियों को खत्म करने या उनके बचाव के लिए लगातार प्रयास करती है. कुछ में कामयाबी मिलती है तो कुछ में नहीं. इसी प्रकार अगर आंकड़ों पर नजर डाले तो राजस्थान के एक शहर में मलेरिया का सफाया हो गया है. यहां 8 साल में करीब 87 प्रतिशत केस घट गई है. इस साल अब तक 88 हजार जांचे हुई जिसमें सिर्फ 5 रोगी पॉजिटिव मिले हैं. जबकि ऐसा समय भी था जब मलेरिया ने लोगों की जान भी ली. यह हुआ है झीलों की नगरी उदयपुर में. कहते हैं जहाँ पानी का ठहराव होता है मलेरिया का मच्छर वहीं पैदा होता है. उदयपुर में चारों तरफ पानी ही पानी है इसके बाद भी यहां कामयाबी मिली है.
आंकड़ों में आ रही है कमी
सोमवार को चिकित्सा विभाग की तरफ से विश्व मलेरिया दिवस मनाया जिसमें रैली निकालकर मलेरिया के बचाव के लिए जागरूकता दी. इसी क्रम में सीएमएचओ कार्यालय से आंकड़े जारी किए गए जिसमें बताया गया कि वर्ष 2013 में जिले में 2104 मलेरिया के रोगी मिले थे तो 2021 में 275 ही मिले. 2022 में अब तक सिर्फ 5 रोगी सामने आए हैं. 2014 से 2018 तक जहां मरीजों का आंकड़ा 1000 से ज्यादा था, वहीं 2019 के बाद 800 से नीचे हैं.
कोरोना काल के चलते 2020 में घटकर 346 तो 2021 में 275 ही रहे गए. खास बात यह है कि सैंपल की संख्याओं में कोई कमी नहीं की गई. 2013 में 381507 सैम्पल लिए गए थे तो 2021 में 382919 सेंपल लिए गए, जो लगभग बराबर ही है, लेकिन 2013 में बीमारी का दर 0.55 फीसदी थी, जो घटकर मात्र 0.07 फीसदी रह गई. इस साल अब तक 88108 जांच की गई है, जिसमें मात्र 5 मरीज मिले हैं और बीमारी की दर 0.005 रही.
लोगों को जागरूक करने के बाद मिली सफलता
डिप्टी सीएमएचओ डॉ. राघवेंद्र राय ने बताया कि मलेरिया की रोकथाम के लिए हर साल 1 अप्रैल से 14 मई तक 'मलेरिया क्रश' कार्यक्रम चलाया जाता है. 15 मई से 31 जुलाई तक कीटनाशक स्प्रे का प्रथम चरण होता है और 1 अगस्त से 15 अक्टूबर तक दूसरा चरण. ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में मई से दिसंबर तक मच्छर प्रजनन नियंत्रण कार्यक्रम चलाया जाता है. जलाशयों में गम्बूशिया मछली छोड़ी जाती है.
पोस्टर प्रतियोगिताओं और अन्य माध्यमों से लोगों को जागरूक किया जाता है. फील्ड वर्कर बुखार के रोगियों का बड़े स्तर पर ब्लड सैंपल लेते हैं. आशा सहयोगिनियों, एएनएम गेरू से दीवारों पर स्लोगन लिखते हैं. लोगों को मच्छर दानियों का उपयोग करने के लिए कहा जाता है. विभिन्न क्षेत्रों में दवाई का छिड़काव करवाने के साथ ही इसकी मॉनिटरिंग होती है.
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