(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Nagaur Mayra Ritual: 6 भाइयों ने भांजे की शादी में भरा 8 करोड़ का मायरा, सोने-चांदी और नकद के साथ जानिए क्या-क्या दिया
नागौर के ढींगसरा गांव में 6 भाईयो ने इकलौती बहन के बेटे की शादी में 8 करोड़ रुपए का मायरा भरा है. लग्जरी गाड़ियों, ट्रैक्टर और बैलगाड़ी के साथ 5 हजार लोगों का काफिला विवाह में शामिल होने पहुंंचा.
Nagaur Mayra Ritual: राजस्थान के नागौर से एक हैरतअंगेज खबर सामने आई है जहां 6 भाईयों ने मिलकर अपने बहन के बेटे (भांजे) की शादी में 8 करोड़ रुपए का मायरा भरा है. बैंड-बाजे और ट्रैक्टर में टेंट सजाकर असंख्य मोटर बाइकों के साथ जब मामा का परिवार मायरा भरने के लिए निकला तो जिसने भी यह काफिला देखा वह दंग रह गया. लग्जरी गाड़ियों, ट्रैक्टर-ट्रॉली और बैलगाड़ी के साथ इस काफिले में 5 हजार लोग शामिल हुए.
दरअसल नागौर के ढींगसरा गांव का मेहरिया परिवार सरकारी ठेके, किसानी और प्रॉपर्टी के पेशे से जुड़ा है जो मुख्य रूप से खेती करता है. इस परिवार की इकलौती बहन भंवरी देवी के बेटे सुभाष गोदारा की शादी हुई तो उसके 6 भाई अर्जुन राम मेहरिया, भागीरथ मेहरिया, उम्मेदाराम मेहरिया, हरिराम मेहरिया, मेहराम मेहरिया, प्रह्लाद मेहरिया थालियों में रकम सजाए, गहने लादे, सोने-चांदी से भरी थाल और गेंहूं से भरा ट्रैक्टर लेकर अपने भांजे की शादी में शिरकत करने पहुंचे. वहीं बहन की तरफ से भी भाई के स्वागत-सत्कार में कोई कमी नहीं थी.
मायरे में भरी ये चीजें
जिस तरह 6 भाई आलीशान मायरा लेकर पहुंचे ठीक उसी तरह से बहन ने भी उनका भव्य स्वागत किया. बता दें कि मायरा भरने की इस रस्म के दौरान पूर्व केन्द्रीय मंत्री सी.आर.चौधरी, नागौर विधायक मोहनराम चौधरी सहित जिले के आधे दर्जन से अधिक पंचायत समितियों के प्रधान और जनप्रतिनिधि मौजूद रहे. जानकारी के मुताबिक मेहरिया भाईयों ने अपने भांजे के मायरे में 2.21 करोड़ रुपए नकद, 100 बीघा खेत (4 करोड़ 42 लाख), एक किलो 125 ग्राम सोना (71 लाख रुपए), 14 किलो चांदी (9 लाख 80 हजार रुपए, एक बीघा का आवासीय प्लाट (50 लाख), विवाह समारोह में शामिल हुए मेहमानों को उपहार के रूप में चांदी के सिक्के (11 लाख 20 हजार), एक ट्रैक्टर- ट्रॉली अनाज से भरी (7 लाख) और गांव के हर परिवार को पांच सौ रुपए की ड्रेस (4 लाख) भी दी गई.
मायरे के पीछे ये है मान्यता
बता दें कि राजस्थान में मायरे की रस्म को काफी अहमियत दी जाती है. इस रस्म में बच्चों की शादी होने पर मां के मायके की तरफ से मायरा भरा जाता है. मायरे में ननिहाल की ओर से बच्चों के साथ-साथ उसके दादा-दादी, बुआ आदी के लिए कपड़े, जेवर और रुपए दिए जाते हैं. अलग-अलग जगहों पर इस रस्म को अलग-अलग नाम से जाना जाता है. कई जगहों पर इसे 'भात' के नाम से भी जाना जाता है. मायरे की रस्म के पीछे एक किस्सा है जो कि नरसी भगत से जुड़ा है. हुमांयू के शासनकाल में जन्मे नरसी पैदाइशी गूंगे और बहरे थे. लेकिन एक चमत्कार हुआ और वे बोलने-सुनने लगे. छोटी उम्र में ही उनका विवाह कराया गया लेकिन बहुत जल्द ही पत्नी की मौत हो गई. इसके बाद नरसी ने दूसरा विवाह किया.
समय बीता और नरसी की एक बेटी का विवाह हुआ. वहीं नरसी के भाई-भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया. इसके बाद नरसी सांसारिक मोह-माया का त्याग कर कृष्ण भक्ति में लग गए. समय बीता और नरसी की बेटी नानाबाई की पुत्री की शादी का वक्त आ गया. मायरा भरने के लिए नरसी को इसकी खबर दी गई लेकिन नरसी के पास अपनी नातिनत को देने के लिए कुछ न था. किसी से मदद न मिलने पर टूटी बैलगाड़ी लेकर बेटी के पास पहुंचे. कहा जाता है कि तब नरसी की भक्ति और तपस्या से खुश होकर स्वंय श्रीकृष्ण भगवान मायरा भरने गए थे.
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