Barmer News: केंद्र ने शुष्क क्षेत्रों में पानी की कमी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत निर्मित आवास के नजदीक कंक्रीट के पक्के कुण्ड का निर्माण कराने का फैसला किया है. इसके लिए केंद्र सरकार पश्चिम राजस्थान की पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणाली 'टांका' को अपनाया है. टांका एक भूमिगत कुण्ड है जो आमतौर पर गोलाकार होता है. इसका निर्माण बाड़मेर जिला और पश्चिमी राजस्थान के अन्य हिस्सों में लोगों द्वारा जुलाई और सितंबर के बीच बारिश के दौरान जल संचयन के लिए किया जाता है. 


बाड़मेर के जिलाधिकारी अरुण पुरोहित ने मीडिया से कहा, "पारंपरिक टांकों में इकट्ठा पानी मिट्टी की अपनी संरचना के कारण धीरे-धीरे दूषित हो जाता है और पूरे वर्ष तक नहीं टिक पाता है." उन्होंने कहा कि "इसलिए केंद्र ने मनरेगा (ग्रामीण) योजना के तहत इस तकनीक को अपनाया है और मिट्टी के टांका के बजाय कंक्रीट से बने जल भंडारण कुण्ड का निर्माण किया जा रहा है." जिलाधिकारी अरुण पुरोहित ने कहा कि "2016 से अब तक कुल 1,84,766 ऐसे कुण्ड बनाए गए हैं, जिनमें से 41,580 चालू वित्त वर्ष 2023-24 में बनाए गए हैं."


'तीन लाख की लागत से बनेगा टांका'
पुरोहित ने कहा कि प्रत्येक कुण्ड की क्षमता 35,000 लीटर पानी जमा करने की है और इसे तीन लाख रुपये की लागत से बनाया गया है. जिले में 2,971 गांव हैं, जिन्हें स्थानीय रूप से "ढाणी" कहा जाता है. इसके लिए संबंधित ग्राम पंचायतें कार्यान्वयन एजेंसियां हैं. बाड़मेर जिलाधिकारी ने कहा कि "जिले के दूर-दराज के गांवों में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अन्य उपाय भी अपनाए जा रहे है." उन्होंने कहा कि "इनमें जल जीवन मिशन (JJM) योजना के साथ-साथ इंदिरा गांधी नहर और नर्मदा परियोजना से पानी की आपूर्ति शामिल है.


'4.25 लाख परिवारों तक पहुंचाने का लक्ष्य'
इस योजना को लेकर जिलाधिकारी पुरोहित ने कहा, "हमने जेजेएम योजना के तहत 4.25 लाख परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है. इनमें से हम पहले ही 1.25 लाख परिवारों को शामिल कर चुके हैं." उन्होंने कहा कि जेजेएम योजना पूरी तरह लागू होने के बाद "हर घर में नल" कनेक्शन होगा और जिले के सभी घरों में जल उपलब्ध होगा.


'टांका के निर्माण से हुआ लाभ'
कुर्ला गांव के मुखिया देवराम चौधरी ने कहा कि "क्षेत्र में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है और जल स्रोत कम हैं." उन्होंने कहा कि "यह मुद्दा वर्षों से लोगों द्वारा उठाया जाता रहा है और स्थानीय प्रतिनिधियों ने अधिकारियों से प्रत्येक आवास को स्थायी भंडारण स्थान प्रदान करने का आग्रह किया है." चौधरी ने कहा, "मनरेगा के अंतर्गत टांका के निर्माण से हमें लाभ हुआ है. अब हमें सालभर पेयजल उपलब्ध है." धम्मी देवी (36) नाम की ग्रामीण ने कहा कि "इस तरह की संरचनाओं से महिलाओं को विशेष रूप से लाभ हुआ है, क्योंकि अब उन्हें जल स्रोतों से पानी लाने के लिए प्रतिदिन 4 से 5 किलोमीटर दूर नहीं जाना पड़ता है."