Swami Vivekananda Birth Anniversary: स्वामी विवेकानंद जयंती यानी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. दुनिया में भारतीय संस्कृति को स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद का राजस्थान के अलवर से भी विशेष नाता रहा है. अलवर की तपो भूमि स्वामी विवेकानंद की साधना स्थली रही है. स्वामी विवेकानंद अलवर में दो बार आए. कई दिनों तक रुककर युवाओं और आमजन को जागरूकता का संदेश देते रहे. युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद को अलवर आज भी याद करता है. स्वामी विवेकानंद का अलवर के लोगों से विशेष लगाव रहा है.


अलवर से स्वामी विवेकानंद का रहा है नाता


दुनिया में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद पहली बार 1891 में और दूसरी बार 1897 में अलवर आये थे. पहली बार अलवर में स्वामी विवेकानन्द सरकारी अस्पताल के प्रमुख डॉ गुरचरण लश्कर के आवास पर ठहरे थे. आज मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कार्यालय चलता है. स्वामी विवेकानंद जिस कमरे में रुके थे उस स्थान पर भारत विकास परिषद अलवर के प्रयासों से नगर विकास न्यास ने स्वामी विवेकानंद की याद में एक स्मारक बनाया है. कमरे में स्वामी विवेकानंद के जीवन को प्रदर्शित छाया चित्र लगे हैं. उस छतरी को भी इसी स्मारक के अंदर रखा गया है जहां स्वामी विवेकानंद लोगों से बैठ कर बात और साधना करते थे. स्वामी विवेकानंद की जयंती पर हर साल प्रतियोगिता कराई जाती है. पेंटिंग, वाद विवाद सहित कई कार्यक्रम होते हैं. भारत विकास परिषद से जुड़े डॉ के के गुप्ता ने स्वामी विवेकानंद का अलवर से जुड़ाव होने पर गर्व जताया है. उन्होंने युवाओं को स्वामी विवेकानंद के बताए रास्तों पर चलने की नसीहत दी. 


महाराजा मंगल सिंह भी प्रवचन से थे प्रभावित


स्वामी विवेकानंद 7 फरवरी से 31 मार्च 1891 तक परिवाचक अवस्था में अलवर प्रवास पर रहे. इस दौरान उनकी दीवान रामचन्द्र की हवेली, मंगलसर रेजिमेंट के हेड क्लर्क लाला गोविंद सहाय विजयवर्गीय, पंडित शम्भूनाथ इंजीनियर सहित अन्य लोगों से घनिष्ठता हुई. स्वामी विवेकानंद मालाखेड़ा दरवाजे, अशोका टॉकीज के पास गोविंद सहाय के निवास पर भी कुछ दिन रुके थे. यहां आज भी कण कण में उनकी अमिट स्मृतियां बसी हैं. स्वामी विवेकानन्द की तरफ से भेजे गए शिष्यों को पत्र आज भी याद को ताजा करते हैं. जिस टीले पर बैठ कर स्वामी विवेकानंद प्रवचन दिया करते थे, आज उस जगह पर उनकी प्रतिमा लगी है. स्वामी विवेकानंद अलवर के कंपनीबाग में प्रवचन देते थे. उनको सुनने के लिए काफी लोग आते थे. तत्कालीन महाराजा मंगल सिंह भी उनके प्रवचनों से प्रभावित थे. 


अलवर प्रवास के बाद स्वामी विवेकानंद 1893 में अमेरिका के शिकागो गए. विश्व धर्मसभा में जाने से पहले अपने प्रथम प्रवास पर अलवर आये थे. किसी को नहीं पता था कि युवा संत असाधारण एक दिन विश्व में भारतीय धर्म की पताका लहराएगा. अलवर में प्रवास के बाद स्वामी विवेकानंद खेतड़ी पहुंचे. तत्कालीन महाराजा अजीत सिंह ने स्वामी विवेकानंद के शिकागो धर्मसभा में जाने का प्रबंध किया. शिकागो में युवा संत स्वामी विवेकानन्द के संबोधन से पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था. दूसरी बार स्वामी विवेकानंद 1897 में अलवर आये थे. तब अलवर की जनता ने उनका पूर्ण उत्साह के साथ स्वागत किया था. अलवर में लाला गोविंद सहाय विजयवर्गीय, पंडित शम्भूनाथ, डॉ गुरचरण लश्कर, मुंशी जगमोहन उनके शिष्य बने. 


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