Navratri 2023: देवी दुर्गा का नौ दिवसीय पर्व नवरात्रि (Navratri) की रविवार (15 अक्टूबर) से शुरूआत हो गई. अब अगले पूरे नौ दिन तक माता की आराधना होगी.  इस दौरान भक्त व्रत रखते हुए माता का गुणगान करेंगे. यही नहीं माता के इन नौ दिनों में जागरण होंगे. माता की चौकी और भजन संध्या का आयोजन होगा. कोटा (Kota) में भी कई ऐसे मंदिर हैं, जो इतिहास को अपने में संजोए हुए हैं. इनमें से एक प्राचीन मंदिर है मां आशापुरा का. कोटा के दशहरा मैदान के पास स्थित इस मंदिर की अपनी ही महिमा है.
 
यहां के पुजारी बताते हैं कि आशापुरा माता मंदिर करीब 700 साल से भी ज्यादा पुराना है और इसकी महिमा अपरम्पार है. यहां भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं, उनकी हर मनोकामना को माता आशापुरा पूरा करती हैं. पुजारी बताते हैं कि यहां तपस्या करने वाले नाथों के समूह ने बूंदी दरबार से कहा था कि आपको तो पूजा अर्चना के लिए महल में मंदिर है, लेकिन हम पूजा अर्चना करने कहां जाएं.  उसके बाद ही बूंदी दरबार ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था.  


राजकुमार जेतसिंह ने करवाया था मंदिर निर्माण
इस मंदिर का निर्माण सन 1264 में बूंदी के राजकुमार जेतसिंह ने करवाया था. महाराव उम्मेद सिंह ने सन 1911 में मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण करवाया. इसके पीछे की कहानी भी निराली है. बताया जाता है कि लखनऊ दरबार के महाराजा लाखन सिंह को मातारानी ने सपने में दर्शन दिए थे, जिसके बाद उन्होंने गुजरात के कच्छ में आशापुरा माता मंदिर कि स्थापना करवाई और माता रानी के उसी रूप का प्रतिबिम्ब यहां उपस्थित है.


 दशहरा मेले का शुभारंभ भी माता की पूजा से होता है
कोटा में सैकड़ों साल पुरानी परम्परा चली आ रही है कि यहां के दशहरा मेले के शुभारंभ पर इस मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है. उसके बाद ही आगे के कार्यक्रमों की शुरूआत होती है. हर साल कोटा का पूर्व राज परिवार यहां पूरे विधि विधान के साथ पूजा और सभी पारम्परिक रीति रिवाजों के साथ दशहरा मेले का शुभारम्भ करते हैं. 


वहीं मान्यता है कि आशापुरा मां अशोक वृक्ष से प्रकट हुई थी, जिस कारण मंदिर को आशापाला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मां श्रद्धालुओं कि हर आशा को पूरी करती हैं, इसीलिए इस मंदिर का नाम आशापुरा मंदिर हो गया. आशापुरा माता मंदिर कोटा के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. यहां अष्टमी के दिन सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते हैं,  जिनकी संख्या लाखों तक पहुंच जाती है. इसके साथ ही यहां नौ दिनों तक माता की उपासना की जाती है. 


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