Mewar Black Gold: भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के 72वें बैच के 30 प्रशिक्षु अधिकारी मेवाड़ (Mewar) के 'काले सोने' को समझने और इसका प्रशिक्षण प्राप्त करने लिए राजस्थान (Rajasthan) के चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh) में आए. इनमें महिला अधिकारी भी हैं. देश के 16 राज्यों के ये अधिकारी विभिन्न प्रदेशों में पदस्थापित हो चुके हैं. इन्होंने राजस्थान में मेवाड़ के काले सोने के नाम से प्रख्यात अफीम (Opium) की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की है. दल ने नारकोटिक्स विभाग से पट्टा मिलने से लेकर किसानों (Farmers) से खेती करने का तरीका समझा. ऑफिस की पूरी कार्यप्रणाली जानी, साथ ही समूह चर्चा भी हुई.
दल ने पूरी प्रक्रिया को समझा
ये बैच नासेन यानी नेशनल अकादमी ऑफ कस्टम इनडायरेक्ट टैक्स एंड नारकोटिक्स प्रशिक्षण के लिए निकला था. अकादमी हर साल के बैच को अफीम खेती और नारकोटिक्स विभाग की कार्यप्रणाली समझने के लिए आमतौर पर फरवरी में चित्तौड़गढ़ अवश्य भेजती है. जोकि वर्तमान में देश का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक क्षेत्र होने के साथ नीमच फैक्ट्री के भी नजदीक है. दल यहां तीनों खंड के जिला अफीम अधिकारियों के निर्देशन में चित्तौड़गढ़ के भदेसर कगांव में पहुंचे. यहां खेती के नियम, नपती से तौल तक की सभी प्रक्रियाएं जानी.
तस्करी पर नियंत्रण और रोकथाम जरूरी है
ग्रुप लीडर प्रशांत शर्मा ने कहा कि हमें गर्व हैं कि सिर्फ आईआरएस अधिकारियों को ये मौका मिलता है. नारकोटिक्स विभाग में सेवारत रहना बड़े चैलेंज का काम भी है. क्योंकि खेती के साथ तस्करी पर नियंत्रण और रोकथाम भी जरूरी है. महिला अधिकारियों ने कहा कि राजस्व में काम करने का अच्छा मौका होता है जो किसी अन्य सेवा में नहीं मिलता. हमने अफीम खेती की सीपीएस पद्धति को भी जाना.
शेयर किए अनुभव
राजस्थान निवासी प्रशिक्षु आईआरएस प्रशांत शर्मा इस दल के ग्रुप लीडर नियुक्त हुए थे. प्रशिक्षु अधिकारियों ने अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा कि अब तक अफीम खेती, तस्करी और एनडीपीएस एक्ट के बारे में पढ़ते व सुनते आए हैं. अफीम की खेती पहली बार देखी है. हर चीज को प्रेक्टिकली देखा और समझा. ये जाना कि अफीम और डोडा अलग-अलग होते हैं. दल ने कहा कि भारत में अफीम की खेती मेडिसिन यूज के लिए होती है पर इसकी तस्करी के मामले भी कई बार पढ़े हैं. यहां ट्रेनिंग के दौरान भी ये चीजें पढ़ने और सुनने में आई.
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