Kota News: कोटा के कंसुआ में सबसे पुराना शिव मंदिर, मूर्तिकला का अद्भुत नजारा
Kota News: कंसुआ का प्राचीन शिव मंदिर में शिवलिंग की आकृति के साथ-साथ कई देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें मूर्तिकला का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है.
Kota: शैक्षिक शहर कोटा की एक धार्मिक शहर के रूप में भी अपनी पहचान है. कोटा के कंसुआ का सबसे पुराना शिव मंदिर इसका जीता जागता उदाहरण है. यहां कण्व ऋषि की तपोस्थली का तेज है, तो दुष्यंत-शकुंतला के प्रणय से जन्मे शेरों के दांत गिनने वाले महाप्रतापी भरत का बचपन बीता है. वहीं भरत, जिनके नाम से हमारा देश पूरी दुनिया में भारत के रूप में पहचाना जाता है.
विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहे जाने वाला भारत भरत का जन्मस्थान था, जिसके बाद इसका नाम 'कंव सुवा' रखा गया, जो बाद में कंसुआ बन गया, जहां भगवान भोलेनाथ के जयकारों की आवाज गूंजती है, जबकि सावन के सोमवार को एक आज यहां भक्तों की आमद भक्त बेल के पत्ते, अक्षत, दूब, मिठाई, मौसमी फल चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहे जाने वाले भारत को जिस भरत के नाम से नामकरण मिला उस भरत की जन्मस्थली 'कण्व सुवा’है जो बाद में कंसुआ हो गया. यहां भगवान भोलेनाथ के जयकारों के स्वर तो गूंजते हैं, वहीं सावन के सोमवार पर आज यहां भक्तों का तांता लगा रहा. श्रद्धालुओं ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें बेल्वपत्र, अक्षत, दूब, मिष्ठान, मौसमी फल अर्पित कर प्रार्थना की.मंदिर के पुजारी श्याम गिरि महाराज ने बताया कि यहां भोलेनाथ के दर्शन मात्र से दुखों का नाश होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. कोटा ही नहीं देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं.
कोटा के कंसुआ का प्राचीन शिव मंदिर है भरत की स्थली और कण्व ऋषि का आश्रम
कहा जाता है कि कण्व ऋषि का आश्रम कंसुआ में था. जहां 1250 साल पहले शिवगण ने शिव मंदिर बनवाया था. उसी कण्व ऋषि के आश्रम में अप्सरा मेनका की पुत्री शकुंतला रहती थीं. जब राजकुमार दुष्यंत भारत प्रवास पर इस क्षेत्र में आए थे तो उन्हें कंसुआ के वन क्षेत्र में शकुंतला मिल गई थी. वहां उन्हें उससे प्यार हो गया. राजकुमार दुष्यंत जब वहां से जाने लगे, तो शकुंतला से शादी का वादा करके उन्हें एक संकेत के रूप में एक अंगूठी दे गए थें. एक ऋषि ने शकुंतला से क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि दुष्यंत उसे भूल जाएगा. उसके बाद शकुंतला की अंगूठी नदी में गिर गई और कुछ वर्षों के बाद जब वह दुष्यंत के साथ हस्तिनापुर गई, तो दुष्यंत ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. भरत का जन्म दुष्यंत-शकुंतला के प्रणय से हुआ था, जो कण्व ऋषि के आश्रम में पले-बढ़े थे और वह महाप्रतापी बालक शेरों के साथ खेलते थें.
शिलालेख में इसके गौरवमय अतीत के दर्शन
1250 साल पुराने मंदिर में स्थित शिलालेख इसके गौरवशाली अतीत को दर्शाते हैं. चट्टानों को काटकर बनाए गए मुख्य शिवालय में प्राचीनतम शिवलिंग के साथ भोलेनाथ अन्य दुर्लभ मूर्तियां परिसर में हैं. इसके साथ ही चतुमुर्खी शिवलिंग समेत अन्य प्राचीन शिवलिंग व अन्य देव प्रतिमाएं हैं. इस शिव मंदिर के बाहर एक प्राचीन कुंड है, जो शैव पूजा का मुख्य केंद्र है, और कुछ ही दूरी पर एक पत्थर पर बना सहस्त्र शिवलिंग है.
यह मंदिर पंचरथ गर्भगृह, अंतराल और मंडप के साथ योजना में पूर्व की ओर है. गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर स्तंभ भी अलंकृत हैं. मंदिर के प्रवेश के साथ ही दक्षिणी भाग में एक दुर्लभ शिलालेख है, जिस पर मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 795 (738 ईस्वी) में होना बताया गया है. इस शिलालेख को कूट लिपि में लिखे गए देश के सर्वश्रेष्ठ शिलालेखों में से एक माना जाता है. महान हिंदी कवि जयशंकर प्रसाद ने भी अपने नाटक चंद्रगुप्त की भूमिका में इस शिलालेख का उल्लेख किया है. इतिहासकारों के अनुसार मंदिर के निर्माण को लगभग 1250 साल बीत चुके हैं.
मूर्तिकला का अद्भुत नजारा
कभी-कभी किसी कारणवश यह मंदिर भग्न हो गया था और इसका शिखर टूट गया था. इसका पुनरुद्धार कर मूल मंदिर को वही रखकर शिखर का पुननिर्माण किया गया. इस स्थान के धार्मिक महत्व को समझते हुए चित्तौड़गढ़ के सामंत राजा धवल मौर्य ने यहां विक्रमी संवत 795 में इस मंदिर का निर्माण कराया. शिवगण एक ब्राह्मण थे और उन्होंने यहां एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कर वैदिककालीन महर्षि कण्व के आश्रम को अमरता प्रदान की.
इस मंदिर का समय-समय पर कोटा के हाडा वंश शासकों द्वारा भी जीर्णोद्धार कराया गया था. कण्व ऋषि महाभारत काल से पहले कौरव-पांडव के पूर्वज हस्तिनापुर के शासक दुष्यंत के समय के एक महान तपस्वी थे. आठवीं शताब्दी के मंदिर में है मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण, जो हमारी भारतीय स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है. यहां शिवलिंग की आकृति के साथ-साथ कई देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें मूर्तिकला का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. यहां का परिसर शिवलिंग से भरा हुआ है. ऐसा लगता है कि हर काल में प्रमुख भक्तों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की होगी. मुख्य शिवलिंग पर 999 छोटे शिवलिंग हैं.
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