Rajasthan News: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले से हैरान करने वाली खबर सामने आई है. यहां सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 9 हजार से ज्यादा बच्चों की आंखों में दृष्टि दोष (Visual Imapirment) पाया गया है. यानी कम दिखने सहित कई और समस्याएं सामने आई हैं. अब सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चे कैसे इस परेशानी से ग्रसित हैं. इसका प्राथमिक और सबसे बड़ा कारण मोबाइल ही बताया जा रहा है. जानकारी के अनुसार, बच्चे काफी समय तक लगातार मोबाइल में उलझे रहते हैं, जिस वजह से इस परेशानी से जूझ रहे हैं. 


दरअसल, प्रतापगढ़ जिले के कलेक्टर इंद्रजीतसिंह यादव ने 'मिशन दृष्टि' की पहल करते हुए 20 सरकारी स्कूल के अनुभवी शिक्षक और 20 स्वास्थ्यकर्मियों की टीम बनाई है. इसी क्रम में उन्हें स्पेशल ट्रेनिंग भी दिलवाई गई. टारगेट था कि जिले भर के सरकारी स्कूल में बच्चों की आंखों की रोशनी और अन्य आंखों की समस्याओं की जांच इस की जाए. टीम ने जिले के सभी सरकारी स्कूलों में करीब डेढ़ लाख बच्चों का आई-चेकअप किया. जांच में 9 हजार से ज्यादा बच्चों में दृष्टि दोष पाया गया. जांच अभी भी जारी है, यानी ये संख्या और बढ़ सकती है. 


चिरंजीवी योजना के तहत मुफ्त इलाज
रिपोर्ट्स के अनुसार, सर्वे में 1 लाख 45 हजार 455 विद्यार्थियों में से अब तक 9399 बच्चों में दृष्टि दोष पाया गया है. इन विद्यार्थियों की अब दूसरे स्तर की जांच की जाएगी. प्रारंभिक स्तर पर की गई जांच के आधार पर दाईं आंख के 4649 और बाई आंख के 4750 विद्यार्थी दृष्टि दोष से पीड़ित हैं. इन्हें बेहतर इलाज के लिए अब दूसरे स्तर की स्क्रीनिंग कर के बेहतर उपचार करवाया जाएगा, ताकि भविष्य में इन बच्चों को परेशान न होना पड़े. सभी बच्चों का राज्य सरकार से चलाई जा रही चिरंजीवी योजना के तहत इलाज किया जाएगा. 


कोरोना के दौरान बढञ गया था स्क्रीन टाइम
कलेक्टर इंद्रजीत सिंह यादव ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए उनमें पनप रहे दृष्टि दोष को पहचान कर उसका सही समय पर इलाज किया जा सकेगा. इसलिए यह अभियान चलाया गया. उन्होंने बताया कि इसके पीछे कारण है कि कोविड के दौरान पढ़ाई से लेकर सभी काम स्क्रीन की मदद से होने लगे थे. 


स्क्रीन के इस्तेमाल से आंखों की रोशनी में प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही आंखों में ड्राइनेस भी बढ़ जाती है. शुरुआत के समय में मेडिसिन के इस्तमाल से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या और गंभीर हो जाती है. इसलिए यह अभियान शुरू किया. 


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