Parakram Diwas: कौन थे 'परमवीर' पीरू सिंह शेखावत? जिनके नाम पर हुआ अंडमान निकोबार का द्वीप
Parakram Diwas 2023: भारत-पाकिस्तान युद्ध में पीरू सिंह शेखावत अदम्य साहस दिखाते हुए शहीद हो गए थे. पीएम मोदी की घोषणा पर झुंझुनू जिले में लोग और परिजन गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.
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Subhas Chandra Bose Jayanti: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान निकोबार के 21 द्वीप समूहों का नामकरण परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर किया है. एक नाम राजस्थान में झुंझुनू जिले के कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत का भी है. पीरू सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पीरू सिंह अदम्य साहस दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. पीएम मोदी की घोषणा पर गांव वाले और परिजन गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. राष्ट्र की सुरक्षा में सर्वोच्च बलिदान देनेवाले पीरू सिंह को मिले सम्मान पर लोगों की आंखें नम हैं. 20 मई 1918 को झुंझुनू में जन्मे पीरू सिंह शेखावत 20 मई 1936 को 6वीं राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे.
जानिए झुंझुनू के परमवीर चक्र विजेता पीरू सिंह शेखावत की बहादुरी
1948 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया. जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी हमलावरों ने टीथवाल सेक्टर पर जोरदार जवाबी हमला बोला. किशनगंगा नदी के पार की चौकियों को खाली करने की मजबूरी आ गई. झटके के बाद भारतीय सैनिकों ने टीथवाल चौकी की स्थिति संभालने और 163 बेड़े को मजबूत करने 6वीं राजपूताना राइफल्स को उरी से तिथवाल ले जाया गया. 11 जुलाई 1948 को भारतीय सेना ने आक्रमण किया. ऑपरेशन 15 जुलाई तक अच्छी तरह से चला. टोही रिपोर्टों से पता चला कि दुश्मन ने क्षेत्र में एक उच्च सीमा चौकी पर कब्जा कर रखा है. आगे बढ़ने के लिए सीमा चौकी पर कब्जा जरूरी था. जिम्मेदारी 6वीं राजपूताना राइफल्स को सौंपी गई. 2 कंपनियां बनाकर 'सी' और 'डी' का गठन किया गया.
"डी कंपनी" को पहला लक्ष्य हासिल करना था. "डी कंपनी" का काम पूरा होने के बाद "सी कंपनी" को दूसरे ठिकाने पर कब्जा करना था. "डी कंपनी" ने 18 जुलाई को 1:00 बजे टारगेट पर हमला किया. टारगेट पर पहुंचने के लिए लगभग 1 मीटर चौड़ा रास्ता था. रास्ते के दोनों और गहरे खड्डे थे. संकरे रास्ते के सामने छिपे हुए दुश्मन के बंकर भी थे. डी कंपनी पर भारी गोलाबारी की जा रही थी. आधे घंटे में 51 जवान शहीद हो गए. लड़ाई में सीएचएम पीरू सिंह "डी कंपनी" के प्रमुख वर्ग के साथ थे. आधे से अधिक दुश्मन विनाशकारी हमले से तबाह हो गए. ग्रेनाइट के छर्रों में कपड़े फटने पर भी पीरू सिंह रुके नहीं. उन्होंने युद्ध का एक नारा दिया. "राजा रामचंद्र की जय" चिल्लाते हुए आगे बढ़ने लगे. उन्होंने दुश्मन एमएमजी के चालक दल को स्टैंड गन से खदेड़ दिया. खतरनाक गन को खामोश कर चौकी पर कब्जा कर लिया. इस समय तक सभी साथी या तो शहीद हो गए या घायल हो गए थे.
पाक कब्जे वाली खाई से बाहर निकलकर अगली चौकी में ग्रेनाइट फेंका
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत पर पहाड़ी इलाके से दुश्मन का सफाया करने की जिम्मेदारी थी. खून बहता रहा, पीरू सिंह दुश्मन की दूसरी एमएमजी चौकी पर हमला करने के लिए आगे बढ़ गए. इसी दौरान एक ग्रेनाइट उनके चेहरे पर आकर फट गया. खून ने पीरू सिंह को लगभग अंधा बना दिया. पीरू सिंह के पास मौजूद स्टैंड गन का गोला बारूद कम ही बचा था. साहस दिखाते हुए दुश्मन के कब्जे वाली खाई से बाहर निकले और दुश्मन की अगली चौकी में ग्रेनाइट फेंक दिया.
देश के दुश्मनों को मौत के घाट उतारने का जज्बा लिए सीएचएम पीरू सिंह दूसरी खाई में कूद गए. दुश्मन के दो सैनिकों को मार गिराया. तीसरे बंकर पर हमला करने के लिए जैसे ही सीएचएमपी पीरू सिंह दूसरी खाई से निकले उन्हें एक गोली सिर में लगी. घायल होकर दुश्मन की खाई में गिर गए. उस दौरान ग्रेनाइट फटने की जोरदार आवाज आई. लगा कि ग्रेनाइट ने काम कर दिया है. बुरी तरह से घायल हो चुके सीएचएम पीरू सिंह शहीद हो गये. उन्होंने अपने बाकी साथियों के लिए बहादुरी और दृढ़ साहस का अनूठा उदाहरण छोड़ दिया.
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