Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं. ऐसे में बीजेपी कांग्रेस सहित अन्य पार्टियां एक एक विधानसभा सीट को लेकर गणित बैठा रही हैं. राजनीतिक दल वहां के सियासी समीकरण, जातिगत वोट, मांगें सहित अन्य बिन्दुओं को लेकर तैयारी में जुटे हैं. इस बीच उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा जिले की एक ऐसी विधानसभा के बारे में आपको बताते हैं, जहां के समीकरण सभी विधानसभाओं से अलग दिखाई दे रहे हैं.
दरअसल, यह ऐसी सीट है जिसने अशोक गहलोत की सरकार गिरने से बचाई. साथ ही यहां की जनता का साथ निर्दलीय और बागियों के साथ ही रहता है. यह विधानसभा है बांसवाड़ा जिले की कुशलगढ़, जो राजस्थान की सबसे सुदूर पंचायत है, क्योंकि यह गुजरात बॉर्डर के पास है. आइए जानते हैं इस विधानसभा सीट के क्या सियासी समीकरण हैं.
पिछले दिनों चर्चा में आई थी ये सीट
इस विधानसभा में वर्तमान विधायक निर्दलीय प्रमिला खड़िया हैं, जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को समर्थन दिया है. यह विधानसभा हाल ही में काफी चर्चा में आई थी. दरअसल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की यहां जनसभा हुई थी. उन्होंने खुद कहा था कि रमिला खड़िया जो भी मांगेगीं उनको कभी मना कर नहीं सकता. यह आदिवासी महिला हैं. अगर यह नहीं होतीं तो आज मुख्यमंत्री के रूप में यहां खड़ा नहीं मिलता. हमारी सरकार मध्य प्रदेश में चली गई, महाराष्ट्र में चली गई, कर्नाटक में जाने वाली थी. रमिला ने बहुत हिम्मत का काम किया. एक नया पैसा किसी से स्वीकार नहीं किया. विधायक रमिला के पास पैसे लेकर बांसवाड़ा तक आ गए. पैसा गाड़ी की डिक्की में रखा. लेकिन उन्होंने लेने से मना कर दिया और भगा दिया. इतना बड़ा बहादुरी का काम इन्होंने किया है. मैं इन्हें कैसे भूल सकता हूं.
क्या हैं यहां की मांगें
राजनीति के विशेषज्ञ कहते हैं कि अधिकतर जनजातीय विधानसभा सीटों पर वहां की मांगें चुनाव का मुद्दा नहीं होती हैं. स्थानीय प्रत्याशी ही वहां की जीत हार को तय करते हैं. कुशलगढ़ विधानसभा की बात करें तो यहां यह जरूर है कि मजदूरी करने के लिए गुजरात जाना पड़ता है. वहीं विधायक रमिला खड़िया ने खुद विधानसभा में मांग उठाई थी कि 17 ग्राम पंचायत सूखाग्रस्त हैं, जहां सिंचाई की सुविधा नहीं है. माही बजाज बांध की कैनाल से इनको जोड़ने की मांग उठाई थी. इस पर सरकार की तरफ से सर्वे भी हुआ था. इसके अलावा बिजली, पानी, सड़क की तो मांग रहती ही है. यहां के वोटर की बात करें तो वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव के अनुसार 187839 वोटर्स है जो इस साल बढ़ जाएंगे.
क्या कहते हैं रानीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. कुंजन आचार्य ने बताया कि कुशलगढ़ विधानसभा सीट बांसवाड़ा जिले की सीट है जो दक्षिणी राजस्थान की सबसे सुदूर सीट मानी जाती है, जिसकी सीमा गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लगती है. हरिदेव जोशी बांसवाड़ा के कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे लेकिन बांसवाड़ा जिले की तीनों आदिवासी बाहुल्य सीटें कुशलगढ़, बागीदौरा और दानपुर में कभी कांग्रेस को विजय हासिल नहीं हो पाई. इसका प्रमुख कारण मामा बालेश्वर दयाल का प्रभाव रहा है.
बीजेपी और गैर कांग्रेसी के पास ही रहा राज
मामा बालेश्वर दयाल एक समाजवादी नेता थे जिनका आदिवासियों पर बरसों से गहरा प्रभाव रहा. आज भी उनकी पूजा के लिए गांव-गांव में मूर्तियां स्थापित है. कहा जाता है कि आदिवासी शादी करके पहली धोक और नारियल चढ़ाने के लिए मामा बालेश्वर दयाल के पास जाते थे. उनके प्रभाव के कारण ही यहां कभी समाजवादी कभी जनता दल और कभी निर्दलीय नेता ही विधायक बने. बालेश्वर दयाल के जाने के बाद यहां भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व बढा और खाता भी खुला लेकिन यह सीट प्राय: गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस के पास ही रही. देखा जाता है कि आदिवासी बहुल सीटों पर चुनावी मुद्दा कुछ नहीं होता उनके स्थानीय नेता ही आपस में चुनावी मैदान में उतरते हैं. इस क्षेत्र की मौजूदा विधायक रमिला खड़िया निर्दलीय विजयी रहीं लेकिन अभी सरकार के समर्थन में हैं.
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