Rajasthan Elections: 35 साल से BJP का गढ़ रहे प्रतापगढ़ को ढहाने वाले नेता पर कांग्रेस ने फिर जताया भरोसा, दोबारा जीत पाना संभव?
Rajasthan Elections 2023: प्रतापगढ़ जिला इन दिनों चर्चा में है. कांग्रेस ने अपनी सूची में प्रतापगढ़ के जिलाध्यक्ष को दोबारा कमान सौंपी है. बीजेपी अंतर्कलह को दूर करने के प्रयास में जुटी हुई है.
Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियां हर एक सीट का गणित लेकर बैठी हुई हैं. मेवाड़ की एक ऐसी सीट है, जिसकी भारी चर्चाएं हो रही हैं. बीजेपी-कांग्रेस दोनों पार्टियां इसका बड़ा कारण है. बीजेपी के 35 साल के गढ़ को पिछले चुनाव में ध्वस्त करने वाले विधायकों पर कांग्रेस ने दोबारा भरोसा किया.
वहीं बीजेपी में पिछले 3 साल से चल रही खींचतान को दूर करना चुनौती बन गया है. खास बात यह है कि प्रतापगढ़ जिले में दो विधानसभा क्षेत्र हैं- प्रतापगढ़ शहर और दूसरा धरियावद. यहां दोनों ही सीटें कांग्रेस के हाथ में हैं. धरियावद उपचुनाव में भी कांग्रेस ने विजय प्राप्त की थी. जानते हैं क्या चल रहा है जिले की राजनीति में-
प्रदेश में एकमात्र जिला जहां कांग्रेस ने दोबारा पाई कमान
विकास की दृष्टि से देखा जाए तो प्रतापगढ़ अन्य जिलों की तुलना में पिछड़ा हुआ है. लेकिन यहां की विधानसभा सीट हमेशा से राजस्थान में चर्चा में रही है. क्योंकि यह बेबाक छवि वाले नंदलाल मीणा 5 बार विधायक रहे हैं. पिछली बार बीजेपी को 35 साल राज करने के बाद हार का सामना करना पड़ा था. यहां नंदलाल मीणा ने राजनीति से संन्यास लेकर अपने बेटे हेमंत को टिकट दिलाया, जिन्हें हराकर यहां रामलाल मीणा विधायक बने. दिलचस्प बात यह है की कांग्रेस जिलाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह राणावत ने ही बीजेपी से बागी हुए रामलाल मीणा को टिकट दिलाया था और रामलाल विजय हुए. ऐसे में भानुप्रताप सिंह का पार्टी में कद बढ़ा.
राजस्थान में कांग्रेस में 25 जिलाध्यक्षों की सूची जारी की थी. एक मात्र प्रतापगढ़ जिला ऐसा है जहां कांग्रेस ने बदलाव नहीं किया. भानुप्रतापा का सम्मान करते हुए फिर से जिलाध्यक्ष की कमान सोपी. पार्टी चाहती है कि जिले की दोनो ही सीटें फिर से भाजपा में ना खिसके.
बीजेपी की कलह पड़ रही भारी, जिलाध्यक्ष नियुक्ति का इंतजार
बीजेपी की बात करें तो चर्चाएं हैं कि पिछले चुनाव के बाद वर्ष 2018 से चुनाव में उठापटक चल रही है. वर्ष 2018 तो बीजेपी में जिलाध्यक्ष की कमान धनराज शर्मा के पास थी लेकिन वर्ष 2019 में उन्होंने पार्टी जिलाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. यहीं से अंतर्कलह ज्यादा बढ़ गया. इसके बाद ओबीसी से आने वाले गोपाल कुमावत को जिलाध्यक्ष बनाया था. खींचतान इतनी बढ़ी कि पंचायत समिति, जिला परिषद में भाजपा चुनाव हारी.
यहां तक ही धरियावद विधानसभा चुनाव भी हर गई. ऐसे में अब चुनाव से पहले भाजपा जिलाध्यक्ष के नियुक्ति की सभी कार्यकर्ता राह देख रहे हैं. अब भाजपा अपने बनाए गढ़ की फिर से हथियाने के लिए क्या करेगी, किसे टिकट देगी सभी कार्यकर्ताओं में चर्चाएं चल रही है.