Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. यहां की जनजातीय सीटें महत्वपूर्ण हैं. इसी कारण बीजेपी (BJP)और कांग्रेस (Congress) दोनों की निगाहें यहां की जनजातीय सीटों पर टिकी हुई हैं. ऐसी ही एक जनजातीय सीट की हम बात करने जा रहे हैं, वो है प्रतापगढ़ (Pratapgarh) विधानसभा सीट. यहां पिछले 25 साल से ज्यादा बीजेपी का राज रहा, लेकिन पिछले चुनाव में उसके इस गढ़ को कांग्रेस ने भेद दिया. यहां पांच चुनावों के बाद साल 2018 में कांग्रेस का विधायक बना.
प्रतापगढ़ विधानसभा एक जनजातीय (ST) आरक्षित सीट है, जो प्रतापगढ़ जिले में आती है. पिछले चुनाव के अनुसार इस विधानसभा सीट में वोटरों की संख्या 204601 है. इस जिले की सीमा मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले से लगती है. इसका संसदीय क्षेत्र चित्तौड़गढ़ है. इतना ही नहीं यह जिला पहले चित्तौड़गढ़ जिले में ही आता था. प्रतापगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पिछले पांच चुनावों से बीजेपी की जीत होती आ रही थी, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यहां परिवर्तन हुआ.
नंदलाल मीणा ने किया यहां बीजेपी को मजबूत
अब सवाल ये उठता है की 25 साल लगातार राज के बाद आखिर ये बदलाव कैसे हुआ. दरअसल, राजस्थान की राजनीति में दबंग और बेबाक नेता के रूप में जाने वाले नंदलाल मीणा यहां से लगातार 5 बार विधायक रहे. साथ ही मंत्री भी रहे. उन्होंने इस क्षेत्र में बीजेपी को इतना मजबूत कर दिया कि कोई उसे हिला नहीं पाए. इसके बाद साल 2008 में प्रतापगढ़ जिला घोषित हुआ. यह जिला नंदलाल की ही देन मानी जाती है. इतना सब कुछ होने के बाद भी पिछला चुनाव बीजेपी हार गई.
क्या है यहां की मांगे
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये रही कि स्वास्थ्य कारणों से नंदलाल ने राजनीति से सन्यास ले लिया. इसके बाद टिकट इन्हीं के बेटे हेमंत मीणा को मिला. पिता की तरह हेमंत जादू नहीं चला पाए और बीजेपी को हार मिली. प्रतापगढ़ जिला राजस्थान का सबसे पिछड़ा जिला माना जाता है. यहां सुविधाओं का अभाव है. सीएम अशोक गहलोत ने जब अपनी सरकार का अंतिम बजट जारी किया था, उस समय भी लोगों ने कई उम्मीदें जताई थी. सीएम गहलोत ने यहां सबसे बड़ी घोषण मेडिकल कॉलेज खोलने की थी. हालाकिं घोषणाएं तो और भी थीं, जैसे प्रतापगढ़ को यूआईटी और सिटी पार्क देना. वहीं अरनोद और दलोट पंचायत को नगर पालिका बनाना सहित लोगों की कुछ अन्य मांगे थीं, जो पूरी नहीं हुई. अब यह मांगे चुनाव में शोर मचाएंगी.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
राजनीतिक विश्लेषक डा. कुंजन आचार्य ने बताया कि प्रतापगढ़ विधानसभा क्षेत्र मेवाड़ की एक जनजातीय सीट है. यहां पर बरसों से भारतीय जनता पार्टी का दबदबा रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट बीजेपी से छीन ली थी. नंदलाल मीणा 80 के दशक से यहां पर जीतते रहे. उनकी छवि एक दबंग और बेबाक नेता के रूप में जानी जाती है. स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने पिछली बार विश्राम करते हुए अपने बेटे हेमंत मीणा को मैदान में उतारा था, लेकिन वह कांग्रेस प्रत्याशी से मात खा गए. प्रतापगढ़ एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी सीमा मध्य प्रदेश से लगती है. पहले यह चित्तौड़ जिले में हुआ करता था. नंदलाल मीणा के प्रयासों और जिद से ही यह जिला बन पाया.
ये सीट और नंदलाल मीणा एक दूसरे के पर्याय रहे
उन्होंने बताया कि बरसों से प्रतापगढ़ सीट और नंदलाल मीणा एक दूसरे के पर्याय रहे. वह कई बार मंत्री भी रहे. एक बार सांसद भी रहे. पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया से मतभेदों के कारण उन्हें कई बार राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा. इसी कारण उन्हें प्रतापगढ़ भेजा गया. प्रतापगढ़ जाने से पहले वो उदयपुर ग्रामीण से विधायक बने थे. पिछले चुनाव में नंदलाल मीणा का करिश्मा नहीं चल पाया. इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि उनके बेटे हेमंत मीणा अपने पिता की तरह राजनीतिक प्रतिभा से युक्त नहीं है.
डा. कुंजन आचार्य ने बताया कि इस कारण भी जनता में उनके प्रति जो प्रेम था, वो वोटों में तब्दील नहीं हो पाया. उनके सामने चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए कांग्रेस प्रत्याशी रामलाल मीणा पहली बार ही विधायक बने. ऐसा कहा जाता है कि आदिवासी सीट पर ना तो प्रमुख मुद्दे होते हैं. ना शिकवा शिकायत. इसलिए आदिवासी सीटों पर प्रत्याशी का सघन जनसंपर्क और सुख दुख में काम आने का भाव ही प्रमुख रहता है. आगामी चुनाव में भी यही तथ्य हावी रहेगा.