Rajasthan Assembly Elections 2023: प्रदेश में चुनावी दंगल के बीच टिकट पाने वालों की होड लगी है, जयपुर से लेकर दिल्ली तक के चक्कर लगाए जा रहे हैं तो कुछ लोगों ने वहीं पर डेरा डाल रखा है, ऐसे में एक-एक विधानसभा सीट से कई लोगों के नाम सामने आ रहे हैं. कई प्रत्याशी तो ऐसे हैं जो या तो रिटायरमेंट के बाद चुनाव मैदान में आ रहे हैं तो कुछ ऐसे हैं जो वीआर लेकर चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे हैं. ऐसे कई नेता कोटा संभाग में भी हैं, जिन्होंने राजनीति में कदम रखा और सफल हुए. वहीं कुछ की असफलता की भी कहानी है. कोई शिक्षा विभाग से आया तो कोई दूसरे डिपार्टमेंट से आया जिन्होंने राजनीति में अपनी चाल चली. 



राजस्थान की राजनीति में ललित किशोर चतुर्वेदी का बड़ा नाम है, उन्होंने शिक्षा विभाग की नौकरी छोड़ी और राजनीति में आए और जीत भी गए. लम्बे समय तक मंत्री रहे और राजस्थान में कद्दावर नेता के रूप में उन्हें पहचाना जाता है. वह उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर थे. उन्होंने कोटा सीट से वर्ष 1977 में पहली बार जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीता था. इसके बाद में वर्ष 1980, 1985, 1990 और 1993 में भारतीय जनता पार्टी से लगातार विधायक रहे हैं. इस दौरान बीजेपी की सरकार में तीन बार कैबिनेट मंत्री भी रहे थे.

बाबूलाल वर्मा बने मंत्री 
इसके अलावा एक बार राज्यसभा सांसद भी चुने गए. साल 2003 में दीगोद विधानसभा सीट से उन्हें हार मिली, लेकिन सरकार बीजेपी की बनी थी. साल 2015 में उनका देहांत हो गया. वहीं दूसरी और  बाबूलाल वर्मा ने पहला चुनाव पंजाब नेशनल बैंक की नौकरी छोड़कर 1993 में डग विधानसभा क्षेत्र से लड़ा. यहां पर उन्होंने मदनलाल वर्मा को 1097 वोट से हराकर चुनाव जीता. इसके बाद 2003 और 2013 में केशोरायपाटन विधानसभा से वे विधायक चुने गए. साल 2008 में उन्हें केशोरायपाटन और 2018 में बारां जिले की अटरू-बारां विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा. बाबू लाल वर्मा वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे. 

सरकारी टीचर थे हीरालाल आर्य, इंजीनियर थे प्रभु लाल महावर 
शिक्षा विभाग से आए हीरालाल आर्य भी टीचर थे, उन्होंने सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति ली और राजनीति में आए और सफल भी हुए. 1977 में ही पीपल्दा विधानसभा सीट से बीजेपी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया. हीरालाल आर्य चुनावी दंगल में आए और जीत गए. इसके बाद वर्ष 1980, 1985 और 1990 में भी उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने मौका दिया और वो चुनाव जीतकर लगातार 4 बार विधायक भी बने. हालांकि साल 1993 और 1998 के चुनाव में हीरालाल आर्य को हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी से ही प्रभुलाल महावर भी इंजीनियर से विधायक बने, पीपल्दा सीट से 2003 में प्रभु लाल महावर को मौका दिया था. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व थी. यहां से लगातार साल 1993 और 1998 का चुनाव रामगोपाल बैरवा ने जीता था. ऐसे में 2003 में भारतीय जनता पार्टी ने इरीगेशन डिपार्टमेंट के असिस्टेंट इंजीनियर प्रभुलाल महावर को चुनावी मैदान में उतारा. वे महज 415 वोट से चुनाव जीते. उन्होंने रामगोपाल बैरवा को चुनाव हराया था. 

कांग्रेस के सीएल प्रेमी ने बैंक की नौकरी छोड़ा 
केशोरायपाटन सीट से विधायक रहे बाबूल लाल वर्मा के साथ ही कांग्रेस के सीएल प्रेमी भी इस सीट से विधायक रहे और वर्तमान में कांग्रेस ने उन्हें एक बार फिर प्रत्याशी बनाया है, जिनका विरोध भी हो रहा है. सीएल प्रेमी वर्ष 2008 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और वह विधायक बन गए. पार्टी ने 2013 में भी उनपर भरोसा जताया, लेकिन पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा ने उन्हें शिकस्त दे दी थी. इसके साथ ही वर्ष 2018 में उनका टिकट पार्टी ने काट दिया, लेकिन वह निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर गए जिस कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. वहीं रामपाल मेघवाल ने शिक्षा विभाग की नौकरी छोडी और चुनावी दंगल में कूद पड़े और वर्ष 2013 में चुनाव जीत गए. इसके साथ ही नगर विकास न्यास कोटा के कनिष्ठ अभियंता जोधराज मीणा भी टिकट मांग रहे हैं. तो डॉ. दुर्गा शंकर सैनी, डॉ. चन्द्रशेख सुशील भी टिकट के लिए दावेदारी पेश कर रहे हैं. इसके साथ ही आधा दर्जन नाम और हैं जो राजनीति में आना चाहते हैं और जुगत लगा रहे हैं, यदि उनका दाव ठीक बैठता है तो वह नौकरी छोड़ राजनीति में आएंगे.


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