Rajasthan Assembly Election 2023 News: राजस्थान विधानसभा चुनाव 25 नवंबर को हुई वोटिंग के बाद अब सभी की नजरें 3 दिसंबर को आने वाले परिणाम पर टिकी हैं. हार-जीत और मतदान का आंकड़ा बूथ एजेंटों से पूछ कर प्रत्याशी अगली रणनीति बना रहे हैं. राजस्थान की सियासत में भरतपुर जिले की सात विधानसभा सीटें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. भरतपुर की कामां विधानसभा सीट के पिछले आंकड़ों के आधार पर कहा जा रहा है कि यहां पर जिस पार्टी के प्रत्याशी की जीत होती है, राजस्थान में उसी की सरकार बनती है. 


कामां विधानसभा सीट से प्रदेश की सत्ता की चाभी तय करने का ये सिलसिला साल 1998 से चलता आ रहा है. साल 1998 से यहां से जिस पार्टी का प्रत्याशी जीतता है, प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है. जैसे राजस्थान में कई वर्षों से एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार बनने का रिवाज चल रहा है, हालांकि राजस्थान में हर टर्म के बाद सत्ता बदलने का रिवाज साल 1993 से लगातार हो रहा है. ठीक उसी तरह कामां विधानसभा क्षेत्र में भी यही मैजिक है, यहां भी हर पांच साल बाद विधायक बदल जाता है. कामां सीट पर जिस पार्टी का विधायक चुना जाता है, प्रदेश में अगले पांच साल तक उसी पार्टी की सत्ता होती है. अब तक राजस्थान में विधानसभा चुनाव में ये मैजिक आंकड़ा 80 फीसदी रहा है.


कामां सीट की जीत तय करती है प्रदेश की सत्ता
साल 1998 के विधानसभा चुनाव में कामां विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी तैयब हुसैन जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, तब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी थी और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे. साल 2003 में कामां विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मदन मोहन सिंघल जीत कर विधायक बने थे, इस बार सरकार बनाने की बारी बीजेपी की थी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अगुवाई में बीजेपी ने अगले पांच साल तक प्रदेश की सत्ता चलाई. साल 2008 के विधानसभा चुनाव में कामां सीट से कांग्रेस पार्टी की प्रत्याशी जाहिदा खान जीतकर कर विधानसभा पहुंची थी और दोबारा अशोक गहलोत की अगुवाई में सरकार बनाकर कांग्रेस ने राजस्थान की सत्ता में वापसी की.


इसी तरह साल 2013 में कामां विधासभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जगत सिंह जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसी साल 2013 में कांग्रेस की अगुवाई वाली गहलोत सरकार को हटाकर बीजेपी ने राजस्थान में सरकार बनाई और वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि अगले पांच साल बाद ये समीकरण फिर से बदल गया, जब साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कामां सीट से कांग्रेस प्रत्याशी जाहिदा खान जीत कर दोबारा यहां से विधायक चुनी गई. साल 2018 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी और अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री बने. 


निर्दलीय उम्मीदवार से कांग्रेस वोट बैंक को खतरा
भरतपुर जिले की कामां विधानसभा सीट का शुमार प्रदेश की हॉट सीटों होता है. कामां विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है. साल 2018 में कामां विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी जाहिदा खान लगभग 40 हजार से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीता था. इस बार यहां से बीजेपी ने हरियाणा के मेवात की रहने वाली नौक्षम चौधरी को पार्टी प्रत्याशी बनाया है. इस बार कांग्रेस प्रत्याशी जाहिदा खान और बीजेपी प्रत्याशी नौक्षम चौधरी में कांटे की टक्कर मानी जा रही है. कामां सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मुख्तार अहमद किस्मत आजमा रहे हैं.


कामां सीट के मैजिक पर रहेगी सबकी नजरें
कामां विधानसभा सीट के वोटर्स पर मुख्तार अहमद की अच्छी पकड़ मानी जाती है. उनके निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव में उतरने पर बीजेपी-कांग्रेस के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. ऐसे में यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. मुस्लिम बाहुल्य सीट कामां में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में उतरे मुख्तार अहमद, कांग्रेस प्रत्याशी जाहिदा खान के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी नौक्षम चौधरी को इसका फायदा मिल सकता है, उनकी स्थिति भी इस बार मजबूत दिखाई दे रही है. अब सभी की नजरें 3 दिसंबर को आने वाले रिजल्ट पर टिका है. इसके अलावा कामां विधानसभा सीट की प्रदेश में सत्ता बनाने वाली अवधारणा जो साल 1998 से शुरू हुई, क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में कायम रहेगी. भरतपुर सीट पर ये मैजिक 15 विधानसभा चुनाव में से सिर्फ 3 बार फेल हुआ है.


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