Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव में होने वाले हैं. आज हम आपको राजस्थान की ऐसी विधानसभा सीट के बारे में बताएंगे, जहां के लोग हर बार अपने विधायक को बदल देते हैं. इस सीट का नाम है करौली (Karauli). साल 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव में लगातार कांग्रेस (Congress) पार्टी का प्रत्याशी यहां से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचा था. साल 1962 में यहां से ब्रजेन्द्रपाल और साल 1967 में फिर ब्रजेन्द्र पाल ही कांग्रेस के टिकट पर यहां से विधानसभा पहुंचे थे.
इसके बाद साल 1985 में मोती लाल निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे. उसके बाद मोती लाल को 1990 में जनता दल ने अपना प्रत्याशी बनाया था और मोती लाल दोबारा चुनाव जीते थे. इसके अलावा अन्य किसी प्रत्याशी को करौली में लगातार विधायक बनने का मौका नहीं मिला. करौली विधानसभा की जनता हर बार अपना नया विधायक बनाती है. साल 1972 से करौली विधानसभा सीट पर जनता ने किसी भी पार्टी के प्रत्याशी को दोबारा विधायक बनने का मौका नहीं दिया है.
जनता ने किसी पर दूबारा नहीं किया विश्वास
करौली की जनता ने किसी भी पार्टी पर एक बार जिताने के बाद दूबारा उस पर विश्वास नहीं किया है. साल 1972 के विधानसभा चुनाव में करौली विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी एमके जेन्द्रपाल चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. एमके जेन्द्रपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी शिव चरण सिंह को हराया था. एमके जेन्द्रपाल को कुल 22 हजार 964 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी शिव चरण सिंह को कुल 17 हजार 947 वोट मिले थे. इसके बाद साल1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी हंसराम को बनाया था. हंसराम ने इस चुनाव जीत दर्ज की और विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे.
1985 में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने प्रत्याशी बदले
हंसराम ने इस चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी ऊधो सिंह को हराया था. हंसराम गुर्जर को कुल 15 हजार 786 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे ऊधो सिंह को कुल 12 हजार 649 वोट मिले थे. इसके बाद साल 1980 के विधानसभा चुनाव में करौली विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जनार्दन सिंह गहलोत को अपना प्रत्याशी बनाया था. जनार्दन सिंह गहलोत ने इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हंसराम को हराकर जीत दर्ज की थी. जनार्दन सिंह गहलोत को कुल 27 हजार 865 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे हंसराम को कुल 18 हजार 576 वोट मिले थे. इसके बाद साल 1985 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस पार्टी दोनों ने ही अपने प्रत्याशी बदल दिए.
साल 1990 के चुनाव में ये जीते
बीजेपी ने इस चुनाव में शिव चरण सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था. शिव चरण सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी कन्हैया को हराकर विधानसभा पहुंचे थे. शिव चरण सिंह को कुल 21 हजार 443 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया को कुल 17 हजार 841 वोट मिले थे. साल 1990 के चुनाव में बीजेपी ने शिव चरण सिंह तो कांग्रेस ने जनार्दन सिंह गहलोत को मैदान में उतारा. इसमें जनार्दन सिंह गहलोत की फिर जीत हुई और वह विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. जनार्दन सिंह गहलोत को कुल 36 हजार 569 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे शिव चरण सिंह को कुल 31 हजार 744 वोट मिले थे.
1993 में निर्दलीय प्रत्याशी की हुई जीत
इसके बाद साल 1993 के विधानसभा चुनाव में करौली की जनता ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों के प्रत्याशियों से मुंह मोड़ लिए और निर्दलीय प्रत्याशी हंसराम को विजयी बनाया. इस चुनाव में हंसराम ने कांग्रेस प्रत्याशी जनार्दन सिंह गहलोत को हराया था. हंसराम गुर्जर को कुल 34 हजार 559 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे जनार्दन सिंह गहलोत को कुल 29 हजार 346 वोट मिले थे. साल 1998 के विधानसभा चुनाव में करौली विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी नहीं बदला और जनार्दन सिंह गहलोत को ही मैदान में उतारा. वहीं बीजेपी की ओर से हंसराम गुर्जर ने ताल ठोकी. जनार्दन सिंह गहलोत ने अपनी पिछली हार का बदला लेते हुए हंसराम को हराया और विधानसभा पहुंचे.
साल 2003 जनता ने बीएसपी पर जताया भरोसा
जनार्दन सिंह गहलोत को कुल 30 हजार 637 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे हंसराम गुर्जर को कुल 18 हजार 84 वोट मिले थे. इसके बाद साल 2003 के विधानसभा चुनाव में करौली एक बार फिर जनता ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को नकार दिया. इस बार जनता ने यहां बहुजन समाज पार्टी पर अपना भरोसा जताया और उसके प्रत्याशी सुरेश मीणा को जिताकर विधानसभा में पहुँचाया. बहुजन समाज पार्टी के सुरेश मीणा ने दूसरे नंबर पर रहे बीजेपी के प्रत्याशी को कृष्ण चंद को हराया था. सुरेश कुमार मीणा को कुल 24 हजार 421 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे कृष्ण चंद को कुल 24 हजार 266 वोट मिले थे.
2008 में बीजेपी ने महिला प्रत्याशी को उतारा
इसके बाद साल 2008 के विधानसभा चुनाव में करौली विधानसभा सीट पर बीजेपी ने ने महिला प्रत्याशी रोहिणी कुमारी को मैदान में उतारा. रोहिणी कुमारी ने जीत दर्ज की. उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी दर्शन सिंह को हराया था. रोहिणी कुमारी को कुल 44 हजार 937 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे दर्शन सिंह को कुल 43 हजार 681 वोट मिले थे. इसके बाद साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी दर्शन सिंह को बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की. दर्शन सिंह ने बीजेपी की रोहिणी कुमारी को हराया था. दर्शन सिंह को कुल 52 हजार 361 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहीं रोहिणी कुमारी को कुल 35 हजार 194 वोट मिले थे.
2018 के चुनाव में फिर बीएसपी जीती
इसके बाद साल 2018 के चुनाव में करौली विधानसभा की जनता ने फिर बीएसपी के प्रत्याशी को अपना वोट देकर विधानसभा में भेजा. बीएसपी के प्रत्याशी लाखन सिंह ने इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दर्शन सिंह को हराया था. लाखन सिंह को कुल 61 हजार 163 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे दर्शन सिंह को कुल 51 हजार 601 वोट मिले थे, लेकिन लाखन सिंह ने भी अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी में विलय कर लिया था. करौली विधानसभा क्षेत्र की जनता दोबारा किसी विधायक और पार्टी को मौका नहीं देती है, ये देखने वाली बात यह होगी.
अब देखना होगा कि 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां की जनता किस के सिर पर जीत का सेहरा बांधेगी और किसे विधायक बनाकर विधानसभा में भेजेगी. पूर्वी राजस्थान के भरतपुर संभाग में साल 2018 के चुनाव में जनता ने बीजेपी का सूपड़ा साफ किया था. अब यहां का राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा, यह समय बताएगा.