Rajasthan Election 2023: राजस्थान की राजनीति में तीसरे दल या तीसरे मोर्चे का वजूद बेहद कमजोर रहा है. यहां, तक कि कहा जाता है सफल ही नहीं रहा. हालाँकि, यहां समय-समय पर कांग्रेस और भाजपा के ही राजनीतिक क्षत्रप अपनी ताकत दिखाते रहे हैं. मगर जनता यहां पर तीसरे मोर्चे या दल को पसंद नहीं करती है. इसका प्रमाण खुद चुनाव में दिखता रहा है. ऐसे में जब सचिन पायलट (sachin pilot) के नई पार्टी बनाये जाने की चर्चा या अफवाह उड़ी तो इसके पीछे कई बातें सामने आई.


अब सूत्रों का कहना है कि सचिन पायलट भी इसी बात को सोच रहे हैं कि यहां पर तीसरे दल को सफलता नहीं मिली है. इसलिए अभी भी कांग्रेस के साथ रहने की योजना में हैं. किरोड़ी लाल मीणा, घनश्याम तिवाड़ी, हनुमान बेनीवाल ने भी पार्टी बनाई थी लेकिन उसका परिणाम बेहद खराब रहा है. आइये जानते है राजस्थान में पार्टी बनाने की क्या है पूरी कहानी. 


36 सीटों में मात्र मिली थी तीन सीट 


राजस्थान की राजनीति में मीणा वोटर्स करीब-करीब तीन दर्जन विधान सभा सीटों पर अपना प्रभाव रखते है. इसी गुणा-गणित में आकर किरोड़ी लाल मीणा ने  राजस्थान में अपनी पार्टी बना ली थी और उन्हें जीत मिली थी मात्र तीन सीटों पर ही. दरअसल, 2008 में किरोड़ी लाल मीणा (kirodi lal meena) बीजेपी से बगावत कर पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गए थे. 'राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी' का गठन किया और 2013 के चुनाव में ताल ठोंक देने के बाद महज तीन सीट ही जीत पाए थे. बाद में उन्हें भाजपा में वापस आना पड़ा. 


घनश्याम अपनी सीट हार गए 


राजस्थान में भाजपा के दिग्गज नेता घनश्याम तिवाड़ी (ghanshyam tiwari) ने भी अपनी पार्टी बना ली थी और बाद में चुनाव हारने के बाद भाजपा में लौट आये. उन्होंने वर्ष 2018 में बगावत कर 'तिवाड़ी भारत वाहिनी पार्टी' का गठन किया और खुद की मजबूत सीट सांगानेर हार गए थे. पूरे प्रदेश में बुरा हाल रहा. तिवाड़ी बीजेपी के दिग्गज नेता और छह बार विधायक के साथ ही साथ कई बार मंत्री भी रहे हैं. इसके बाद उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया था और बाद में भाजपा में लौट आये और अब भाजपा से राज्यसभा सदस्य हैं.


बेनीवाल की पार्टी की हुई थी हार 


बीजेपी से बागवत कर हनुमान बेनीवाल (hanuman beniwal) ने राष्ट्रीय लोक तांत्रिक पार्टी का गठन किया और 2013 में बेनीवाल ने वसुंधरा राजे और राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ बागी रुख अख्तियार किया था. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 58 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए थे और उन्हें महज 3 सीटों पर ही जीत मिली थी. बाद में बीजेपी के साथ आ गए और नागौर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए. 


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