Rajasthan Election 2023: उदयपुर की इस सीट पर 1977 से 2018 तक कांग्रेस ने एक ही परिवार को दिया टिकट, क्या इस बार बदल सकता है रिवाज
Rajasthan News: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों की गणित बैठने में लगी हैं, लेकिन उदयपुर ग्रामीण सीट पर पार्टी ने ज्यादातर एक ही परिवार को टिकट दिया है.
![Rajasthan Election 2023: उदयपुर की इस सीट पर 1977 से 2018 तक कांग्रेस ने एक ही परिवार को दिया टिकट, क्या इस बार बदल सकता है रिवाज Rajasthan Assembly Elections 2023 Udaipur Rural Assembly Seat Congress gave ticket only one family from 1977 to 2018 Ann Rajasthan Election 2023: उदयपुर की इस सीट पर 1977 से 2018 तक कांग्रेस ने एक ही परिवार को दिया टिकट, क्या इस बार बदल सकता है रिवाज](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/07/08/36b62251571900ec2a9de1a1b5bcffaf1688786493355658_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव को पांच महीने रह गए हैं. चुनाव को देखते हुए कांग्रेस (Congress) हर सीट पर दावेदारों को लेकर गणित बैठाने में लगी हुई है, लेकिन एक सीट ऐसी है पार्टी जिस पर पार्टी ने 1977 से 2018 तक एक ही परिवार को टिकट दिया. वो है उदयपुर (Udaipur) ग्रामीण विधानसभा सीट, लेकिन अब चर्चाएं हो रही है कि इस रिवाज को बदला जाए और इस सीट पर किसी नए चेहरे को सामने लाया जाए.
कहने को तो यह ग्रामीण सीट है, लेकिन शहर का अधिकांश हिस्सा इसी सीट में आता है. यह जनजाति आरक्षित सीट है. अभी यहां के विधायक फूल सिंह मीणा हैं, जो भारतीय जनता पार्टी से हैं. उदयपुर ग्रामीण विधानसभा कहने को ग्रामीण है, लेकिन नगर निगम से 20 वार्ड इसी ग्रामीण क्षेत्र में आते हैं. ये सीट शहर का बड़ा हिस्सा कवर करती है. इसी कारण यहां शहर की पॉलटिक्स हमेशा हावी रहती है. यहां दो बार से बीजेपी के फूल सिंह मीणा विधायक है. इन्होंने 2013 चुनाव में सज्जन कटारा को हराया था. इसके बाद 2018 के चुनाव में सज्जन कटारा के बेटे को शिकस्त दी.
ये है यहां का मुख्य मुद्दा
यहां पानी, बिजली की शिकायत तो रहती ही है, लेकिन यहां पंचायतों का परिसीमन होना यहां का मुख्य मुद्दा है. दरअसल, इस विधानसभा में अधिकांश एरिया शहरी है जो यूआईटी पेरफेरी में आता है, जिसमें जमीन का अधिकार पंचायत के पास ना होकर यूआईटी के पास रहता है. यहां पहले भी कई बार परिसीमन का मुद्दा भी उठा, क्योंकि पंचायत जमीनों के मामले में कुछ भी निर्णय नहीं ले पाती है. इससे कई बार यहां विवाद की स्थिति भी बनी है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि जनजाति बहुल उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट 1977 में परिसीमन के बाद बनी.
जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि उसके बाद से लेकर 2018 तक यहां पर चुना गया विधायक सदैव सरकार में रहा. यानी जिस पार्टी का विधायक यहां से चुना गया सरकार उसी की बनी. हालांकि 2018 में यह मिथक टूट गया और मौजूदा विधायक फूल सिंह मीणा फिलहाल प्रतिपक्ष में हैं. सीट की खासियत यह है कि अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस की ओर से यहां से खेमराज कटारा या उनका परिवार का ही प्रत्याशी रहा है. वहीं बीजेपी लगातार यहां चेहरे बदलती रही. उन्होंने बताया कि इस सीट से नंदलाल मीणा, चुन्नीलाल गरासिया, भेरूलाल मीणा और खेमराज कटारा मंत्री बने थे.
डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि बाद में यहां से वंदना मीणा, सज्जन कटारा और फूल सिंह मीणा विधायक बने, लेकिन मंत्री पद की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए. इस सीट का नाम उदयपुर ग्रामीण है. यानी उदयपुर शहर का ग्रामीण हिस्सा, लेकिन खास बात यह है कि इस सीट में शहर के 20 वार्ड भी आते हैं. वहीं शहर के पास स्थित गिर्वा और बड़गांव पंचायत समिति के कुछ गांव भी इसमें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि ये कह सकते हैं कि नाम इसका विधानसभा ग्रामीण है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा शहर का ही है. शहर के जो 20 वार्ड हैं, वो हर चुनाव में बीजेपी के वोट ही माने जाते हैं.
दोनों पार्टियों में विरोध के स्वर
डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि वहीं गांवों में बीजेपी और कांग्रेस की बराबरी की टक्कर रहती है. उन्होंने बताया कि यहां के मौजूदा विधायक फूल सिंह दो बार से विधायक हैं, लेकिन बीजेपी में गाहे-बगाहे उनके खिलाफ भी स्वर उठते रहते हैं. इस बार भी कई नए दावेदार अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कांग्रेस में भी कटारा परिवार के कई विरोधी हैं और बदलाव की मांग करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि लेकिन दोनों ही पार्टियों में फिलहाल इन दोनों का कोई मजबूत विकल्प दिखाई नहीं पड़ रहा है.
डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि मौजूदा विधायक फूल सिंह के लिए कहा जाता है कि वो पूर्व नेता प्रतिपक्ष और असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया के खास रहे हैं. फिलहाल देखा जाए तो इस विधानसभा सीट के लिए कोई विशेष मुद्दा नहीं है. बस यहां गांव में कई पंचायतें हैं, लेकिन जमीन यूआईटी की है. यानी पंचायत के पास पावर नहीं है. पंचायतों की पैराफेरी की समस्या है. यही यहां चुनाव में मुद्दा बन सकती है.
![IOI](https://cdn.abplive.com/images/IOA-countdown.png)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![अनिल चमड़िया](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/4baddd0e52bfe72802d9f1be015c414b.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)