Rajasthan Bal Mitra Police Station: राजस्थान (Rajasthan) में लगातार बच्चों से जुड़े अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है, चाहे वो रेप (Rape) के मामले हों, मानव तस्करी (Human Trafficking) हो या बाल श्रम (Child Labor). अब इन अपराधों पर कार्रवाई कर पुलिस लगाम लगाने में जुटी हुई है. इन मामलों में बच्चे सबसे ज्यादा परेशान होते हैं. बच्चे थाने पर जाते हैं तो उनकी मानसिकता पर गलत प्रभाव पड़ता है, वो डरते हैं, सहम जाते हैं. इसी को लेकर बाल आयोग और कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन (Kailash Satyarthi Foundation) ने पुलिस के साथ मिलकर नई पहल शुरू की है. पहल ये है कि प्रदेश के 20 पुलिस थानों के अंदर ही एक बाल मित्र थाना (Bal Mitra Police Station) होगा. यानी एक अलग कमरा होगा जिस पर बाल मित्र थाना लिखा होगा और यहां बिना वर्दी में पुलिसकर्मी बैठेंगे. बाल मित्र थाने में बच्चों से जुड़ी सभी व्यवस्थाएं होंगी जिसके लिए कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन की तरफ से सहायता बजट दिया जाएगा. इसकी शुरुआत उदयपुर से की जा रही है. 


इन्होंने दिया था सुझाव 
बता दें कि, कुछ महीने पहले बच्चों से जुड़े मुद्दे पर उदयपुर में कार्यशाला हुई थी जिसमें अपने संबोधन में उदयपुर (Udaipur) में तैनात डीएसपी चेतना भाटी (Chetna Bhati) ने ये सुझाव दिया था. उन्होंने कहा था कि महिला थाना की तर्ज पर बाल मित्र थाना बनना चाहिए जिसमें एनजीओ और बाल अधिकारिता विभाग के बड़े अधिकारी उपस्थित थे. 


बाल मित्र थाना कक्ष बनाने की कवायद शुरू
राजस्थान बाल आयोग के सदस्य शैलेन्द्र पंड्या ने बताया कि कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के सहयोग से थाने के अंदर ही बाल मित्र थाना कक्ष बनाने की कवायद शुरू की गई है. इसके लिए उदयपुर एमपी मनोज कुमार को पत्र भी दिया है और प्राथमिक रूप से मानव तस्करी विरोधी यूनिट थाने का चयन भी कर लिया है. उन्होंने आगे बताया कि उदयपुर जिले के बाद संभाग के अन्य जिलों और फिर प्रदेश में भी ऐसे थाने बनेंगे. पंड्या ने आगे बताया कि वर्तमान में हर थाने में बाल मित्र डेस्क बनाई है और एएसआई रैंक के अधिकारी को बाल मित्र अधिकारी बनाया गया है. अधिकारी बिना वर्दी के रहते हैं और बच्चों से जुड़े मामले देखते हैं. हालांकि, परेशानियां भी हैं क्योंकि ये प्रोसेस सुचारू रूप से चल नहीं पाता है.


क्यों जरूरी है बाल मित्र थाना और क्या है परेशानियां
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में प्रावधान है कि पीड़ित बच्चा थाने आएगा तो बिना वर्दी में पुलिस उनसे डील करेगी. साथ ही बाल रूप वातावरण होना चाहिए, लेकिन ये हो नहीं पाता. थाने के नाम से ही बच्चों के मन मे डर बैठ जाता है, यहां तक कि माता-पिता भी कतराने लगते हैं. बाल मित्र थाना बनने से बच्चों को उनके अंदर बाल रूप वातावरण मिलेगा. साथ ही बिना वर्दी का पुलिस स्टाफ भी बैठेगा. इसका सबके ज्यादा फायदा रेप पीड़ित किशोरियों को मिलेगा जो बेहतर वातावरण में अपनी बात रख पाएंगी. इसी प्रकार के थाने मध्य प्रदेश में भी बनाए गए हैं.


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