Rajasthan News: राजस्थान को कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है. प्रदेश के कई इलाकों की आज भी कुएं और बावड़ियों से पहचान होती है. अस्तित्व बनाए रखने के लिए राजस्थान सरकार ने एक प्लान बनाया है. प्लान के तहत बावड़ियों का रिनोवेशन कर पर्यटन से जोड़ा जाएगा. हाल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट घोषणा करते हुए बावड़ियों के लिए अलग से फंड जारी किया है. अस्तित्व खो चुकी प्रदेश भर के सभी जिलों की बावड़ियों को चिह्नितत कर लिया गया है. आने वाले दिनों में फंड का इस्तेमाल करते हुए बावड़ियों का जीर्णोद्वार कर हेरिटेज लुक दिया जायेगा. 


बावड़ियों के आ रहे अच्छे दिन


बावड़ियों के लिए देश में पहचान बना चुके राजस्थान में ऐतिहासिक बावड़ियों का कायाकल्प होगा. वर्तमान में कई बावड़ियों को विकसित करने की जरूरत है. मुख्यमंत्री ने बजट घोषणा में बूंदी की अभयनाथ, नागर-सागर कुण्ड, भावल्दी, मीरा गेट, मालन मासी, शुक्ल बावड़ी, बोहरा जी का कुंड, मनोहर बावड़ी, क्लब बावड़ी, अनारकली की बावड़ी और पुलिस लाइन की बावड़ी का जीर्णोद्वार करने की घोषणा की है. इसके अलावा कोटा, दौसा, जयपुर, टोंक की भूल-भूलैया बावड़ी, हाड़ी रानी की बावड़ी, टोंक शहर की सुनहरी कोठी में भी ऐतिहासिक बावड़ियो को विकसित किया जाएगा. सभी बावड़ियों के रिनोवेशन पर 20 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे.


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धरोहर संरक्षण की सराकरी मंशा


राजस्थान के कई जिलों में आज भी कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जिनको पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर जिले को पर्यटन नगरी की पहचान दिलाई जा सकती है. राजस्थान में बड़ी तादात देशी विदेशी पर्यटकों की आती है और कुंड-बावड़ियों को देखकर विरासत की तारीफ किये बगैर नहीं रहते. पूरे प्रदेश भर में सरकार ने पर्यटन विभाग के माध्यम से सर्वे करवाकर जीण शीर्ण हो चुकी बावड़ियों के प्रस्ताव मांगे थे. प्रस्ताव मिलते ही फरवरी में सीएम अशोक गहलोत ने बावड़ियों का रिनोवेशन कर हेरिटेज लुक देने के लिए 20 करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी. बजट घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए पर्यटन विभाग ने तैयारी कर ली है.


पर्यटन विभाग के उप निदेशक मधुसूदन सिंह चारण ने बताया कि अगले सप्ताह आर्कियोलॉजी विभाग के अधिकारी राजस्थान पर आएंगे. हेरिटेज लुक देने के लिए बावड़ियों को चिह्नित किया जाएगा. उसके बाद रिनोवेशन करने का काम शुरू करवा दिया जाएगा. सरकार ने अस्तित्व खो चुकी बावड़ियों को चिह्नित करवाया है. पर्यटकों का बावड़ियों के प्रति कोई खास ध्यान नहीं है. अब पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने का काम किया जा रहा है. बाकी बावड़ियों की तरह हेरिटेज लुक देकर विश्व मानचित्र पर लाया जा सकेगा. 


भले ही वर्तमान में नदी-तालाबों से पानी की प्यास बुझाई जा रही हो लेकिन राजस्थान में प्राचीन समय से कुंड, बावडिया ही आमजन की प्यास बुझाती थी. आमजन बावड़ियों से पानी भरकर लेकर आते थे. धीरे धीरे उपेक्षा का शिकार होने से पानी का स्त्रोत घटने लगा और बावड़ियां आज सूखी हुई पड़ी हुई हैं. हालांकि कुछ बावड़ियां ऐसी भी जो बारिश के समय लबालब हो जाती है और साल भर पानी भरा रहता है.


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