Rajasthan Politics: कोटा में वसुंधरा राजे गुट ठोक रहा ताल, जानिए- क्या हैं इस ताकत के मायने
Kota News: वसुंधरा राजे के जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन का ये फार्मुला नया नहीं है, इससे पहले भी राजे ने केशवराय मंदिर पर अपना जन्मदिन मनाया था. वहां भी करीब दो दर्जन से ज्यादा बीजेपी विधायक थे.
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Rajasthan News: कोटा संभाग में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जन्मदिवस की तैयारियां जोरो पर चल रही हैं. संभाग में पूर्व दो विधायक और कई नेता वसुंधरा राजे के जन्मदिवस पर अपनी ताकत दिखा रहे हैं और यहां से हजारों की संख्या में लोग सालासर धाम पहुंचने वाले हैं. इस ताकत को दिखाने के कई मायने सामने आ रहे हैं. अगर वसुंधरा राजे को एक बार फिर पार्टी ने मौका दिया तो इन नेताओं की चांदी होने वाली है. नहीं तो ये धराशाही हो जाएंगे. कोटा से ही कई बडे कद्दावर नेता आते हैं जो वसुंधरा को सीधे टक्कर देने की क्षमता रखते हैं, ऐसे में दोनों ही गुट अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं. आगामी विधानसभा की तैयारियों की यह रिहर्सल मानी जा रही है. किसी भी नेता को कोटा संभाग से नजरअंदाल करना किसी के बस में नहीं हैं. कांग्रेस हो या बीजेपी यहां राजनीति चरम पर रहती है.
17 विधानसभा, 10 पर बीजेपी, 7 पर कांग्रेस का कब्जा
वसुंधरा राजे के जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन का ये कोई नया फार्मुला नहीं है, इससे पूर्व वसुंधरा राजे ने केशवराय मंदिर पर अपना जन्मदिवस मनाया था. वहां भी राजस्थान के करीब दो दर्जन से अधिक बीजेपी विधायक मौजूद थे और कई पूर्व विधायकों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. ऐसे में वसुंधरा खेमा एक बार फिर एक्टिव मोड पर आ गया है. कोटा संभाग वसुंधरा राजे के लिए वैसे भी अहम हैं, क्योंकि यहां से विधानसभा की 17 सीटे आती हैं जिसमें से 10 बीजेपी के पास है. ये संख्या और भी बढ़ सकती है.
कहां कौन सी सीट किसके पास?
कोटा संभाग से दो संसदीय क्षेत्र आते हैं. कोटा बूंदी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो यहां 9 विधानसभा में से 5 बीजेपी और 4 कांग्रेस के पास है. जिसमें कोटा दक्षिण से बीजेपी के संदीप शर्मा, लाडपुरा से बीजेपी की कल्पना देवी, रामगंजमंडी से बीजेपी के मदन दिलावर, केशवराय पाटन से बीजेपी की चन्द्रकांता मेघवाल, बूंदी से बीजेपी के अशोक डोगरा और कोटा उत्तर से कांग्रेस के शांति धारीवाल, पीपल्दा से कांग्रेस के राम नारायण मीणा, सांगोद से कांग्रेस के भरत सिंह विधायक और हिंडोली से अशोक चांदना हैं.
वहीं झालावाड-बारां लोकसभा की विधानसभा सीटों की बात करें तो यहां 8 विधानसभा आती हैं, जिसमें तीन कांग्रेस के पास हैं और पांच बीजेपी के पास हैं. जिसमें बारां से पाना चंद मेघलवा, अंता से मंत्री प्रमोद जैन भाया, किशनगंज से कांग्रेस विधायक निर्मला सहरिया है, जबकी छबडा से एक मात्र सीट बीजेपी के पास है. यहां से प्रताप सिंह सिंघवी हैं. वहीं झालावाड जिले में चार विधानसभा आती हैं, जिसमें डग विधानसभा से बीजेपी के कालूराम, खानपुर से बीजेपी के नरेन्द्र नागर, केशवराय पाटन से वसुंधरा राजे और मनोहरथाना से बीजेपी के गोविंद रणपुरीया आते हैं. झालावाड की सभी सीटे बीजेपी के पास हैं। कोटा संभाग में कुल 17 विधानसभा में से बीजेपी के पास 10 और कांग्रेस के पास 7 विधानसभा सीट हैं.
आखिर बीजेपी का गढ़ क्यों हैं कोटा संभाग?
जनसंघ के जमाने से भगवा के गढ़ रहे हाड़ौती संभाग के चार जिले कोटा, बारां, बूंदी और झालावाड़ आते हैं. देश में जब बीजेपी नहीं थी और जनसंघ से टिकट दिए तो देश में सर्वप्रथम कोटा संभाग से ही जनसंघ से प्रत्याशी जीतकर आए. यहां संघ का अच्छा कार्य है. साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में किसान संघ और आरएएस के सहयोगी संगठनों का अच्छा काम है, जिस कारण यहां अब तक कांग्रेस को बडी सफलता नहीं मिल सकी है. 2018 से पूर्व हुए 2013 के चुनाव में तो कांग्रेस को केवल एक ही सीट मिली थी. बाकी सभी दिग्गज हार गए थे. ऐसे में एक बार फिर वसुंधरा राजे यहां ताकत दिखा रही हैं, ताकी 17 विधानसभा में जो सीटे हैं उन्हें बचाते हुए और अधिक सीटे यहां से आ सके और यह हो भी सकता है. हाड़ौती संभाग ने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और वर्तमान सरकार में नंबर दो नेता यूडीएच मिनिस्टर शांति धारीवाल, खनन एवं गोपाल मंत्री प्रमोद जैन भाया जैसे बड़े नेता दिए हैं.
गुटबाजी भी चरम पर
जहां बड़े नेता एक साथ होते हैं तो गुटबाजी भी कम नहीं होती, कांग्रेस हो या बीजेपी यहां गुटबाजी खुलकर सामने आती है. यहां तक भी आरोप लगाए गए की बीजेपी वाले कांग्रेस के लिए और कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी के लिए काम करते हैं. ओम शांति की जोड़ी यहां जग जाहिर है. ऐसे में यहां से सीएम के फेस के रूप में भी संभावनाए तराशी जा रही है. दोनो दलों में दिग्गज अपनी प्रतिष्ठा बचाने में लगे हैं. सभी नेताओं के पास अपना-अपना जनाधार भी है. दिग्गजों के पास अपने कार्यकर्ताओं की बडी फौज है जो किसी भी परिणाम को बदलने की क्षमता रखती है, ऐसे में वसुंधरा राजे का 4 मार्च को होने वाला कार्यक्रम प्रदेश में क्या संदेश देखा, क्या राजनैतिक समीकरण बदलेगा, शीर्ष नेतृत्व को शक्ति प्रदर्शन दिखाना कहां तक सफल होगा ये तो वक्त बताएगा. लेकिन कहीं ना कहीं अब चुनावी शंखनाद हो गया है, और इसकी ध्वनी भी सुनाई देने लगी है.
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