Rajasthan News: जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा और इच्छाशक्ति हो तो इंसान बिना आंखों के भी कुछ भी कर लेता है. साथ ही दूसरों के लिए प्रेरणा बनकर एक चैलेंज भी खड़ा कर सकता है. ऐसा ही एक उदाहरण पेश किया हैं भीलवाड़ा के एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल ने, जो खुद अपनी आंखों से देख नहीं सकते, लेकिन वह स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना रहे हैं. उनके संघर्ष की कहानी की बात की जाए, तो पांच साल की उम्र में उनकी आंखें चली गईं और करीब 18 साल अपने परिवार से दूर रहकर उन्होंने एक सरकारी शिक्षक का मुकाम हासिल किया.
अब वह अपनी मेहनत के बलबूते सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल भी बन गए हैं. अपने जीवन के हर अध्याय में उन्होंने गिरते पड़ते संभलते हुए अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और आज वह अन्य लोगों के लिए एक मिसाल पेश कर रहे हैं, जो दिव्यांग होने पर हार मान लेते हैं. भीलवाड़ा शहर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गांधीनगर के प्रिंसिपल वसंत कुमार ने बताया कि पांच साल की उम्र में मुझे पता चला कि मेरी दोनों आंखें चली गई हैं.
आंखें न होने से कई समस्याओं का करना पड़ा सामना
इसके बाद मेरे पिताजी के किसी मित्र ने हमें हम जैसों के लिए बने एक स्कूल के बारे में बताया, क्योंकि मेरे पिताजी खुद शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े थे तो उन्होंने मुझे पढ़ाई से कभी पीछे हटने नहीं दिया और पढ़ाई करने के लिए भीलवाड़ा शहर से बाहर भेज दिया. इसके बाद 18 साल परिवार से दूर रहकर मैंने राजस्थान की अलग-अलग जगह पर अपनी पढ़ाई पूरी की और संस्कृत विषय में व्याख्याता के रूप में एक शिक्षक बन गया. इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए शुरू से लेकर अब तक पूरे जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ा. आंखें नहीं होने की वजह से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था. ऐसे में अपने आप को संभाला और कभी हार नहीं मानी.
कभी नहीं मानी हार
इसे जीवन की चुनौती समझकर लगातार आगे बढ़ता रहा. वसंत ने बताया कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी मैं यही कह कर प्रेरित करता था कि अगर मेरे जैसा एक अंधा व्यक्ति मेहनत और पढ़ाई करके हेड मास्टर बन गया है, तो आप अगर किसी भी चीज को सच्चे दिल से चाहो और मेहनत करो तो सफलता हासिल हो ही जाती है. मैं अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और अपने गुरुजनों को देना चाहता हूं, जिनकी बदौलत आज मैं एक प्रधानाचार्य के तौर पर काम कर रहा हूं.
(भीलवाड़ा से सुरेंद्र सागर की रिपोर्ट)