Rajasthan Bypoll Results 2024: राजस्थान की सात विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों में कई निष्कर्ष निकल कर आए है. इन उपचुनावों में कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी थी जिनमें से कुछ इस चुनावी परीक्षा में पास हुए तो कुछ फेल. 


दौसा सीट पर कांग्रेस की जीत
सबसे पहले बात दौसा सीट के उपचुनाव के नतीजों की बात करें तो यहां बीजेपी के जगमोहन मीणा चुनाव हार गए है. जगमोहन खुद तो चुनाव हारे ही, साथ-साथ अपने बड़े भाई और किरोड़ी लाल मीणा की राजनैतिक नैया को बीच पानी में हिचकोले खाने के लिए छोड़ गए. दरअसल इस सीट से बीजेपी की टिकट किरोड़ी लाल मीणा के दबाव में ही जगमोहन मीणा को दी गई थी. ऐसे में मान जा रहा था कि टिकट भले ही जगमोहन मीणा को मिला हो लेकिन चुनाव तो किरोड़ी लाल मीणा ही लड़ रहे है.


वाकई में था भी ऐसा ही, क्योंकि किरोड़ी लाल मीणा ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी. लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद अपने छोटे भाई जगमोहन मीणा को चुनाव नहीं जिता पाए. ऐसे में सीधे तौर पर किरोड़ी लाल मीणा की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है. उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद से पहले ही इस्तीफ़ा दे रखा है ऐसे में अब उनके इस्तीफे को लेकर भी तस्वीर साफ होगी. जगमोहन मीणा की हार करीब 23 सौ वोटों के अंतर से हुई है.


खींवसर में हनुमान बेनीवाल की पत्नी हारी
खींवसर का नतीजा भी राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा संदेश साबित हुआ. इस सीट पर हनुमान बेनीवाल जो कि नागौर से सांसद होने के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सर्वेसर्वा भी है उनकी पार्टी का अस्तित्व भी तय होना था. दरअसल इस बार हनुमान की पार्टी का एक भी विधायक नहीं था और वो खुद अकेले विधानसभा का चुनाव जीते थे. लेकिन इसके बाद वो लोकसभा का चुनाव जीते और विधायक से इस्तीफ़ा दे दिया.


ऐसे में राजस्थान में राष्ट्रीय लोक तांत्रिक पार्टी का वजूद बनाये रखने के लिए खींवसर एक मौका था. हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन कनिका बेनीवाल चुनाव हार गई और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का भविष्य खतरे में चला गया.


खास बात यह है कि हनुमान की पार्टी का भविष्य एक ऐसे शख्स रेवंत राम डागा ने ख़तरे में डाला जो कभी खुद हनुमान के ख़ास सिपहसालार थे. इस बार बीजेपी का दामन थामकर चुनाव जीते रेवंत राम डागा को हनुमान बेनीवाल की पार्टी से पहचान मिली थी लेकिन डागा ने पाला बदला और हनुमान को पटखनी दे डाली. खींवसर सीट पर बीजेपी की जीत से राज्य के चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह ख़ींवसर की मूछे और बाल भी बच गए. क्योंकि गजेंद्र सिंह ने प्रचार के दौरान ऐलान किया था कि अगर ये चुनाव बीजेपी हार गई तो वो तिरुपति जाकर मूंछ और बाल मुंडवा लेंगे. 


अमित ओला बड़े अंतर से हारे
झुंझुनू का चुनावी नतीजा कांग्रेस पार्टी और बरसों से शेखावाटी की राजनीति कर रहे ओला परिवार के लिए बेहद निराशाजनक रहा. झुंझुनू में कई दशकों से चला आ रहा ओला परिवार का एक छत्रराज आज चुनावी नतीजों के बाद खत्म हो गया. सांसद बने बृजेन्द्र ओला के बेटे अमित ओला को बीजेपी प्रत्याशी ने आसानी से हरा दिया. झुंझुनू सीट पिछले दो दशक से कांग्रेस के कब्जे में थी और बीजेपी के राजेंद्र भाम्बू ने कांग्रेस का ये मजबूत गढ़ ढहा दिया. अमित ओला का हार भी करीब 44 हज़ार वोटों के बड़े अंतर से हुई है.


देवली उनियारा सीट पर बीजेपी का कब्जा
उपचुनाव के दौरान नरेश मीणा थप्पड़ कांड से चर्चा में आई देवली उनियारा सीट भी बीजेपी ने कांग्रेस से छीन ली है. मतदान के दिन एसडीएम को थप्पड़ मारकर सुर्खियों में आए निर्दलीय नरेश मीणा बीजेपी के राजेंद्र गुर्जर से चुनाव हारकर दूसरे स्थान पर रहे लेकिन उनकी वजह से कांग्रेस की जबरदस्त हार हो गई. 


बीजेपी की शांता देवी भी जीती
इन उप चुनावों में हनुमान बेनीवाल की तरह भारत आदिवासी पार्टी यानी बाप की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. बाप ने आदिवासी बाहुल्य दो सीटों सलूम्बर और चौरासी पर अपने प्रत्याशी उतारकर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया था. डूंगरपुर की चौरासी सीट तो बाप के प्रत्याशी अनिल कटारा ने करीब पच्चीस हज़ार वोटों से जीत ली लेकिन सलूम्बर में अंतिम समय की मतगणना में बाप के प्रत्याशी जितेश कटारा के हाथ से जीत फिसल गई. बीजेपी की शांता देवी ने करीब 13 सौ वोटो से चुनाव जीत लिया.


रामगढ़ में जुबेर खान के बेटे की हार
अलवर की रामगढ़ सीट की अगर बात करें तो यहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जुबेर ख़ान ने जीत दर्ज की थी. लेकिन जुबेर खान के निधन की वजह से यहां उपचुनाव करवाना पड़ा. कांग्रेस ने जुबेर के बेटे आर्यन को टिकट देकर सहानुभूति की लहर के ज़रिए चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश की लेकिन वो असफल रही. बीजेपी के सुखवंत सिंह ने आर्यन को करीब साढ़े ग्यारह हज़ार वोटों से हरा दिया.


उपचुनाव में भी बीजेपी की बल्ले-बल्ले
बीजेपी के लिए उप चुनाव बल्ले-बल्ले वाले रहे. 7 सीटों में से बीजेपी के पास सिर्फ़ एक सीट सलूम्बर थी जबकि अब पांच सीट उसके खाते में आ चुकी है. बीजेपी को देवली-उनियारा, झुंझुनू, ख़ींवसर, रामगढ़ और सलूम्बर में जीत हासिल हुई है जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट दौसा हाथ लगी है. एक सीट चौरासी बाप पार्टी के खाते में गई है. इन उपचुनावों के नतीजों से राजस्थान में सरकार और संगठन के मुखियाओं को भी भारी फायदा हुआ है. एक साल पूरा करने जा रही भजन लाल शर्मा सरकार और नए नवेले प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ का कद भी पांच सीटों पर जीत से यकीनन बढ़ा है और केंद्रीय नेता भी उनकी इस उपलब्धि से काफी खुश होंगे.


दूसरी तरफ़ कांग्रेस जिसने इन उप चुनावों में काफ़ी कुछ गंवा दिया उनके प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को पार्टी आलाकमान को जवाब देना पड़ेगा. पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने तो अपनी चिर परिचित राजनीति के तहत खुद को इन उपचुनावों से दूर रखा लेकिन सचिन पायलट के लिए ये नतीजे मिश्रित फल देने वाले साबित हुए. सचिन दौसा की जीत से खुद को सफल साबित कर गए लेकिन उनियारा देवली की हार उनकी भी हार मानी जाएगी.


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