Rajasthan Congress MLA Resignation: बीते साल 25 सितंबर को सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) खेमे के विधायक ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंपा था. अब इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष और सचिव की मुश्किलें बढ़ गई है. इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और सचिव से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी थी. बीते शुक्रवार को हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि विधायकों के द्वारा दिये इस्तीफे को लंबे समय तक पेंडिंग रखना होर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा देना है.  


इस मामले को लेकर उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ की ओर से याचिका दयक की गई थी, जिसकी सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस शुभा मेहता ने कहा कि विधानसभा सचिव को 30 जनवरी तक यह बताना होगा कि कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफे कब दिए और स्पीकर ने उस पर क्या कार्रवाई की. इसके अलावा स्पीकर के द्वारा की गई टिप्पणियों और दस्तावेजों को पेश करने के लिए कहा गया. साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट करने के लिए कहा कि विधायकों के इस्तीफे जैसे मामलों पर फैसला लेने के लिए कितना समय लगाया जा सकता है.


हाईकोर्ट ने पूछा सवाल


इससे पहले विधानसभा सचिव ने आधी-अधूरी जानकारी के साथ हलफनामा पेश किया था, जिस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की. हाईकोर्ट ने कहा कि विधानसभा सचिव की ओर से केवल इतना बताया गया था कि विधायकों द्वारा दिए गए इस्तीफों को अस्वीकार कर दिया गया. हाईकोर्ट के अनुसार यह नहीं बताया गया कि कितने विधायकों ने कब इस्तीफे दिये और विधानसभा अध्यक्ष ने इस पर कब फैसला लिया. इन इस्तीफों पर फैसला लेने की कोई समय सीमा का उल्लेख भी हलफनामे में नहीं किया गया था. कोर्ट ने कहा कि विधायक कभी इस्तीफा दे रहे हैं, कभी वापस ले रहे हैं. ऐसे में वे एक जनप्रतिनिधि के तौर पर कैसे काम करेंगे.


राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्थल ने कहा कि एक विधायक द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद उस पर फैसला करने की कोई समय सीमा तो तय होगी. अगर इस्तीफे दिए गए हों और उन पर लम्बे समय तक फैसला नहीं हो तो होर्स ट्रेडिंग को बढावा मिलता है. हाईकोर्ट ने आगे कहा कि विधायक खुद तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे जनप्रतिनिधि रह पाएंगे या नहीं.


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