Rajasthan Congress Politics: राजस्थान कांग्रेस प्रभारी का पद पिछले पांच वर्षों से चर्चा में है. वर्ष 2018 में सरकार आने के बाद से दो धड़े हो गए हैं. प्रभारी पर एक धड़ा दूसरे धड़े का करीबी होने का आरोप लगाता है. सरकार बनने के बाद से गुटबाजी चल रही है. 5 मई 2017 को अविनाश पांडेय को राजस्थान कांग्रेस प्रभारी बनाया गया लेकिन 3 साल बाद हटा दिया गया. पायलट गुट का आरोप था कि पांडेय नहीं सुनते.  इसलिए उन्हें हटना पड़ा था. 16 अगस्त 2020 को अजय माकन को नया प्रभारी बनाया गया. माकन से गहलोत गुट नाराज था. माकन ने तीन नेताओं पर कार्रवाई के लिए चिठ्ठी लिखी फिर भी कांग्रेस आलाकमान ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि माकन का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया.


पांडेय के लिए मुख्यमंत्री का ट्वीट चर्चा में था


अविनाश पांडेय के हटने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ट्वीट चर्चा में था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अविनाश पांडे को धन्यवाद करते हुए ट्वीट किया था कि, 'राजस्थान के एआईसीसी प्रभारी के रूप में बहुमूल्य समर्थन और मार्गदर्शन के लिए अविनाश पांडे को हार्दिक धन्यवाद. पार्टी संगठन और सरकार के बीच समन्वय स्थापित करने के उनके प्रयास बेहद सराहनीय रहे हैं. मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं.' उन्होंने माकन का स्वागत भी किया था. लेकिन पांडेय के लिए किये गए ट्वीट के कई मायने निकाले गए थे और दूसरा गुट पांडेय की विदाई के बाद संतुष्ट दिख रहा था.


माकन के आने से बढ़ी थी सुलह की उम्मीद


अजय माकन को राजस्थान कांग्रेस प्रभारी बनाए जाने पर दोनों गुटों में सुलह की उम्मीद बनी. लेकिन धीरे-धीरे रास्ता माकन के लिए मुश्किल होता गया. उनसे गहलोत गुट नाराज होने लगा. 25 सितंबर की घटना को नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है. माकन ने नाराजगी में अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को 8 नवंबर को चिट्ठी लिखकर प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया. संसदीय मामलों के मंत्री शांति धारीवाल, पार्टी के मुख्य सचेतक महेश जोशी और राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की थी. लेकिन तीनों पर बिना कार्रवाई के ही अजय माकन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. तो क्या यहां पर गहलोत ही आलाकमान हैं?


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राजस्थान में कांग्रेस प्रभारी पर गुटबाजी का कब तक आरोप लगता रहेगा. इस पर पार्टी अब विराम लगाना चाहती है. इसीलिए अब पंजाब से सुखजिंदर सिंह रंधावा को प्रभारी बनाया गया है. रंधावा को गुटबाजी से दूर रखने के लिए पार्टी की पूरी तैयारी है. रंधावा के लिए चुनौती भी होगी. अब यहां भी लोग यही चाहते होंगे की चुनाव से पहले स्थिति शांत रहे.