Congress Crisis: राजस्थान में सचिन पायलट की रैलियों के क्या हैं सियासी मायने? 3 प्वाइंट में आसानी से समझिए
Rajasthan News: झुंझुनू के किसान सम्मेलन में तो मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और हेमाराम चौधरी ने खुलकर सचिन पायलट (Sachin Pilot) को सीएम बनाने की मांग कर दी. कई विधायकों ने भी इसका समर्थन किया.
Rajasthan Congress Crisis: साल 2022 के अंत में राजस्थान कांग्रेस में चली खींचतान के बाद चुनावी साल 2023 में पार्टी के शीर्ष नेताओं ने दावा किया कि अब पार्टी में सबकुछ ठीक है और एकजुट होकर विधानसभा चुनाव जीतकर फिर से सरकार बनाएंगे. लेकिन पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot) समय-समय पर अपनी ही सरकार को असहज करने वाला बायान दे रहे हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह पूर्व में सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) द्वारा उनपर की गई टिप्पणी के जवाब के साथ ही राज्य में अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखने की कोशिश है. पार्टी के कई विधायक और मंत्री जहां पायलट को सीएम बनाने की मांग कर चुके हैं, तो वहीं पायलट समर्थक भी उन्हें लगातार सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं. हाल ही में पेपर लीक मामले और रिटायर्ड अधिकारियों की बड़े पदों पर नियुक्ति को लेकर उन्होंने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया.
आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन
पायलट की हाल में हुई जनसभाओं में भीड़ जुटाने के काफी प्रयास किए गए. इसे आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है. इन जनसभाओं में भीड़, पायलट और उनके गुट के नेताओं के बयान से साफ पता चलता है कि अब वे पायलट को सीएम बनते देखने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते. झुंझुनू के किसान सम्मेलन में तो मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और हेमाराम चौधरी ने खुलकर पायलट को सीएम बनाने की मांग कर दी. कई विधायकों ने भी इसका समर्थन किया. अब सवाल है कि अगले चुनाव में पार्टी आलाकमान किसपर भरोसा जताता है. गहलोत के कई बार सीएम बनने में पार्टी आलाकमान के साथ उनकी नजदीकी और उनका लंबा अनुभव माना जाता है. अब देखना है कि पार्टी पायलट को कब मौका देती है.
राजस्थान की राजनीति में वर्चस्व
राजस्थान की राजनीति में लंबे समय तक अशोक गहलोत का वर्चस्व रहा है, लेकिन अब धीरे धीरे पायलट इसे तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. साफ है कि इसके पीछे उनकी सीएम बनने की मंशा है. पायलट अब लगातार किसान सम्मेलन और बेरोजगारों को संबोधित कर पार्टी के साथ ही अपने पक्ष में भी माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी पायलट काफी समय तक उनके साथ रहे. सीएम के निकम्मे वाले बयान पर पायलट ने जिस तरह से सधा हुआ और संतुलित जवाब दिया उससे भी पता चलता है कि वे खुलकर विरोध तो नहीं करेंगे, लेकिन समय आने पर जवाब देने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
गहलोत पर वार ताकि जनाधार बना रहे
पायलट अब कभी सीधे शब्दों में तो कभी तंज भरे लहजे में सीएम गहलोत पर वार करते नजर आ रहे हैं. हालांकि साथ-साथ वे यह भी कहते हैं कि पार्टी एकजुट है और हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उनके बयानों को गहलोत पर हमले की तरह ही देखा जाता है. वहीं सीएम गहलोत कोई राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं और पायलट को भी यह पता है कि सीधे तौर पर खुलकर उनका विरोध करके कुछ हासिल करना मुश्किल है. इसलिए वे कभी सरकार के साथ दिखते हैं तो कभी उसकी नीतियों की आलोजना करते नजर आते हैं. वे इसमें संतुलन बनाए रखने की भी कोशिश करते रहते हैं, ताकि पार्टी का नुकसान भी न हो और उन्हें राजनीतिक तौर पर बढ़त मिल जाए. राज्य में पायलट के जनाधार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पायलट भी अपने समर्थकों और वोटरों को साथ बनाए रखने का गुणा गणित खूब समझते हैं.