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राजीव की कुर्सी से लेकर आडवाणी के इस्तीफे तक..., राजनीति में कब-कब 'डायरी बनी डायन'

देश की राजनीति में यह पहली बार नहीं है, जब कोई नेता या पार्टी सीक्रेट डायरी और पर्चे के नाम पर सियासी बैकफुट पर गया हो. कई बड़े नेताओं की राजनीतिक करियर ही डायरी और वजह से दांव पर लग गया.

चुनावी साल में राजस्थान की सियासत को लाल डायरी ने हाईजैक कर लिया है. सीकर दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लाल डायरी का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री ने कहा कि लाल डायरी का नाम सुनकर कांग्रेस के बड़े नेताओं की हालत खराब है. इस डायरी में कांग्रेस सरकार के काले कारनामे बंद हैं. 

प्रधानमंत्री ने सीकर की रैली में दावा किया कि यह लाल डायरी कांग्रेस सरकार का डिब्बा गुल करने जा रही है. वहीं कांग्रेस के बड़े नेताओं ने लाल डायरी पर पूरी तरह से चुप्पी साध ली है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री से लाल डायरी की बजाय लाल टमाटर पर बात करने के लिए कहा है.

देश की राजनीति में यह पहली बार नहीं है, जब कोई नेता या पार्टी सीक्रेट डायरी और पर्चे के नाम पर सियासी बैकफुट पर गया हो. कई बड़े नेताओं की राजनीतिक करियर ही डायरी और वजह से दांव पर लग गया. कुछ की कुर्सी गई तो कुछ को जेल भी जाना पड़ा. 

हालांकि, डायरी की चर्चा चुनाव से पहले जितनी तेजी से होती है, उतनी ही तेजी से चुनाव बाद यह चर्चा खत्म हो जाती है . 

राजस्थान में डायरी का पूरा विवाद क्या है?
अशोक गहलोत सरकार से बर्खास्त होने के बाद राजेंद्र गुढ़ा ने लाल डायरी का विवाद छेड़ दिया. 24 जुलाई को गुढ़ा विधानसभा में लाल रंग की एक डायरी लेकर पहुंचे, जिसे सदन में पेश करना चाहते थे, लेकिन स्पीकर सीपी जोशी ने इजाजत नहीं दी. इसके बाद गुढ़ा को सदन से मार्शल आउट कर दिया गया.

इसके बाद राजेंद्र गुढ़ा ने पत्रकारों से बातचीत की. गुढ़ा के मुताबिक कांग्रेस नेता और आरटीडीसी के चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ के घर पर जब छापा पड़ा था, तो उस वक्त अशोक गहलोत ने लाल डायरी लेने उन्हें भेजा था. गुढ़ा के मुताबिक गहलोत ने डायरी जलाने का भी आदेश दिया था. 

'लाल डायरी में क्या था' के जवाब में गुढ़ा ने बताया- राज्यसभा चुनाव के दौरान विधायकों की खरीद-फरोख्त हुई थी. उसका पूरा हिसाब-किताब उस डायरी में है. साथ ही राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में हुए भ्रष्टाचार का भी काला-चिट्ठा उस डायरी में है. 

गुढ़ा के इस पूरे बयान पर धर्मेंद्र राठौड़ ने भी प्रतिक्रिया दी है. राठौड़ ने कहा कि छापे के दौरान गुढ़ा मेरे घर आए जरूर थे, लेकिन डायरी लेने नहीं. राठौड़ ने गुढ़ा को अविश्वसनीय व्यक्ति बताया है. 

अब कहानी सियासी डायरियों की...

डायरी का पन्ना दिखाकर वीपी सिंह ने पलट दी सरकार
1987 में स्वीडिश रेडियो ने बोफोर्स तोप की खरीद में हुए हेरफेर की खबर प्रकाशित की. यह सौदा 24 मार्च 1986 को भारत सरकार और स्वीडिश कंपनी एबी बोफोर्स के बीच हुआ था. स्विडिश रेडियो ने अपनी रिपोर्ट में कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर से मिली एक कथित डायरी का जिक्र किया, जिसमें लेन-देन के बारे में लिखा था.

स्विडिश रेडियो से रिपोर्ट आने के बाद भारत में सियासी बवाल मच गया. सरकार में मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी पर आरोप लगाकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस से अलग होने के बाद सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. 

सिंह ने यहां भी पत्रकारों को डायरी का एक पन्ना दिखाया और दावा किया कि इसमें स्विस बैंक का अकाउंट लिखा है, जो राजीव गांधी के नाम से है. सिंह और उनकी पार्टी ने इसे बड़ा अभियान बनाया. देशभर में सिंह ने डायरी के इस पन्ने को जनता को दिखाना शुरू कर दिया.

1989 के चुनाव में वीपी सिंह की पार्टी ने ऐलान किया कि सरकार में आने के बाद इसकी जांच की जाएगी और कार्रवाई भी होगी. सिंह का यह अभियान सफल रहा और राजीव गांधी की करारी हार हुई. नेशनल फ्रंट की ओर से वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने.

हालांकि, सिंह की सरकार डायरी के बारे में सच पता नहीं लगवा सकी, जिसके बाद राजीव बोफोर्स केस में बाइज्जत बरी हो गए. एक इंटरव्यू में राजीव गांधी के करीबी गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि डायरी में कुछ नहीं था, लेकिन हम वीपी सिंह की बात का काउंटर नहीं कर पाए. इसी वजह से कांग्रेस की यह दुर्दशा हुई.

स्वामी की डायरी ने कांग्रेस-बीजेपी की सत्ता हिला दी
1993 में जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने एक डायरी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की. स्वामी ने दावा किया कि यह डायरी हवाला कारोबारी जैन की है, जिस पर 1991 में सीबीआई ने छापे की कार्रवाई की थी. स्वामी ने दावा किया कि जैन से बीजेपी और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पैसे लिए.

यह विवाद जैसे-जैसे बढ़ा, वैसे-वैसे सियासी सरगर्मी तेज हो गई. 1996 में लालकृष्ण आडवाणी को संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा. इसके अलावा तत्कालीन नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे माधवराव सिंधिया, वीसी शुक्ला और बलराम जाखड़ को भी अपना पद छोड़ना पड़ा.

हालांकि, बाद में सभी नेता रिश्वत लेने के आरोप से बरी हो गए. जानकारों का कहना है जैन हवाला कांड ने लालकृष्ण आडवाणी की सियासी मंसूबों पर पानी फेर दिया. आडवाणी उस वक्त प्रधानमंत्री के बड़े दावेदार थे. 

अर्पिता की डायरी ने पार्थ चटर्जी की कुर्सी छिनी
2022 में ईडी की एक कार्रवाई बंगाल की सियासत में भूचाल ला दिया. शिक्षक भर्ती घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने अर्पिता मुखर्जी के घर पर छापा मारा, जहां से जांच एजेंसी को करोड़ों का कैश मिला. जांच एजेंसी से जुड़े सूत्रों ने दावा किया कि अर्पिता के घर से डायरी भी बरामद हुई है, जिसमें लेन-देन का जिक्र है.

ईडी अर्पिता के घर से सीधे पार्थ के यहां पहुंची और आगे की कार्रवाई शुरू की. डायरी में लेन-देन को आधार बनाते हुए ईडी ने पार्थ को गिरफ्तार कर लिया. ईडी की कार्रवाई के बाद पार्थ का मंत्री पद चला गया. जांच एजेंसी ने कोर्ट में दावा किया कि बंगाल में नौकरी देने के बदले पैसे लिए गए.

जांच एजेंसी ने पार्थ के 103 करोड़ रुपए की संपति जब्त की बात भी कही. पार्थ का मामला अभी कोलकाता की एक अदालत में है, जबकि पार्थ और अर्पिता जेल के सलाखों के पीछे.

सुधीर की डायरी ने खोला घोटाले के राज, शर्मा का करियर खत्म
मध्य प्रदेश में 2013 में इनकम टैक्स ने कारोबारी सुधीर शर्मा के कई ठिकानों पर एक साथ छापा मारा. विभाग को यहां से एक डायरी मिली, जिसमें मध्य प्रदेश के 2 मंत्रियों को रिश्वत देने की बात कही गई थी. रिपोर्ट सामने आने के बाद मध्य प्रदेश में सियासी भूचाल आ गया.

इसी बीच व्यापमं का मुद्दा उठने लगा, जिसकी जांच सीबीआई ने शुरू की. व्यापमं घोटाले में सुधीर शर्मा को मुख्य आरोपी बताया गया. जांच एजेंसी शर्मा से मिले सबूत के आधार पर ही कार्रवाई शरू की. सीबीआई ने मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को 2014 में गिरफ्तार कर लिया.

शर्मा की गिरफ्तारी के बाद शिवराज सिंह ने तुरंत एक्शन लिया. शर्मा पार्टी से बाहर किए गए. इसके बाद उनका राजनीतिक करियर ही खत्म हो गया. 2018 में जेल से बाहर आने के बाद उनके चुनाव लड़ने की अटकलें लगी, लेकिन बीजेपी ने टिकट नहीं दिया. 

बीजेपी से टिकट नहीं मिलने के बाद शर्मा ने खुद को भगवान शिव बताया था. एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि व्यापमं का सारा विष उन्होंने खुद पी लिया है. 2021 मे भोपाल के चिरायु अस्पताल में उनका निधन हो गया.

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