Rajasthan RTH Bill Protest: राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल (Right To Health Bill) के विरोध में प्राइवेट डॉक्टरों का प्रदर्शन लगातार जारी है. डॉक्टर सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. सोमवार को डाॅक्टरों ने पूरे प्रदेश में पैदल मार्च निकाला. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के बैनर तले ब्यावर (Beawar) में भी डॉक्टरों और नर्सिंग कर्मियों ने पैदल मार्च निकाला. कई संगठन इस आंदोलन का समर्थन करते हुए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हुए.


आईएमए की ब्यावर ब्रांच के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर डॉक्टर प्रदीप शारदा ने अस्पतालों की तुलना व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से करते हुए कहा कि व्यापारी प्रतिष्ठान लगाता है, दो पैसा बनाने के लिए, दो पैसा बचाने के लिए, अपने परिवार को पढ़ाने के लिए. लेकिन यदि यह कह दिया जाए कि आप सब काम निशुल्क करिए. आपको खाना भी निशुल्क देना है, आपको कपड़ा भी निशुल्क देना है तो कोई व्यापारी नहीं दे पाएगा. सुलभ शौचालय में जाते हैं तो भी पांच रुपए देने होते हैं. सरकार फ्री की रोटी भी नहीं देती, उसके लिए भी इंदिरा रसोई में आठ रुपए देने होते हैं. तो फिर निजी अस्पतालों से फ्री में इलाज क्यों?




सरकार अपने कर्त्तव्यों-जिम्मेदारी से फेल हो गई है: डॉ. शारदा
डॉक्टर शारदा ने कहा कि ब्यावर में जितने भी प्राइवेट अस्पताल बने हैं वो 5 करोड़ से 25 करोड़ रुपए की लागत से बने हैं. उनका मासिक खर्च भी 2 से 5 लाख रुपए होता है. अगर प्राइवेट अस्पताल निशुल्क इलाज करेंगे तो यह खर्चा कहां से निकलेगा? अगर ऐसा किया तो धीरे-धीरे यह प्रतिष्ठान बंद हो जाएंगे. इनका भी हाल सरकारी अस्पतालों की तरह हो जाएगा, जहां मशीनें 20-20 साल पुरानी है. प्राइवेट अस्पतालों में हर 2-4 में नई मशीन लानी होती है. पहले सिटी स्कैन की मशीन 2 करोड़ रुपए में आती थी और आज 10 करोड़ रुपए में आती है. सोनोग्राफी की मशीन 50 लाख से 75 लाख रुपए की हो गई. ऐसे में मरीजों को निशुल्क सेवा देना संभव नहीं है. सरकार अपने कर्त्तव्यों और जिम्मेदारी से फेल हो गई है.




RTH बिल को पूरी तैयारी के बाद पास नहीं किया: IMA अध्यक्ष 
अध्यक्ष डॉक्टर सी.पी. सिंहल ने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों के भीतर किसी भी कंडीशन में मुफ्त इलाज देना संभव नहीं है. सरकार ने राइट टू हेल्थ में लिखा है कि यदि मरीज को इलाज नहीं दिया तो अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है. इस नियम से मरीज और डॉक्टर का सामंजस्य खराब होगा. कोई भी व्यापारी किसी को कोई चीज निशुल्क नहीं दे सकता है. सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को निशुल्क सेवा देने के लिए बाध्य किया है, जो स्वीकार नहीं है. वहीं सीनियर डॉक्टर प्रदीप जैन का कहना है कि सरकार ने राइट टू हेल्थ बिल को पूरी तैयारी के बाद पास नहीं किया. इस बिल में कई तरह की कमियां होने से आमजन को परेशानी होगी. सरकार को इस बिल पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि निजी अस्पतालों, डॉक्टरों और मरीजों को परेशानी नहीं हो.


RTH बिल में कई खामियां, तेज हुई वापस लेने की मांग


डॉक्टर दिलीप चौधरी के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में व्याप्त कमियां दूर करने की बजाय सरकार निजी अस्पतालों पर मुफ्त इलाज करने का फरमान थोप रही है. डॉक्टरों ने सरकार के हर फैसले का स्वागत किया है लेकिन राइट टू हेल्थ बिल में कई खामियां हैं जिसे स्वीकार नहीं कर सकते.  इसके अलावा डॉक्टर मुकेश मौर्य ने कहा कि हम भी सरकार का ही हिस्सा हैं. सरकार के ऐतिहासिक फैसलों का स्वागत करते हैं लेकिन राइट टू हेल्थ बिल को स्वीकार नहीं कर सकते. सरकार को इस बिल पर पुनर्विचार करना चाहिए और समय रहते डॉक्टरों की मांग पूरी करनी चाहिए ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके.




बता दें कि पैदल मार्च में शामिल डॉक्टर और नर्सिंग कर्मचारी स्लोगन लिखी तख्तियां हाथों में थामे चल रहे थे. वे बिल को वापस लेने की मांग करते हुए नारेबाजी कर रहे थे. प्रदर्शन में एसोसिएशन सचिव डॉक्टर आर.एस. छाबड़ा, दिलीप चौधरी, प्रदीप जैन, मुकेश मौर्य, दिलीप टांक, बी.सी. साेढ़ी, नरेंद्र आनंदानी, राजीव जैन, प्रमोद सक्सेना, मीनाक्षी टांक, श्रुति चौधरी, अंजना राठी, गुरमीत कौर समेत कई डॉक्टर, नर्सिंगकर्मी और सामाजिक संगठनों के लोग शामिल हुए.


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