Rajasthan Election 2023: राजस्थान में सत्ता पक्ष कांग्रेस और विपक्ष में बीजेपी दोनों दलों के प्रभारी इन दिनों चर्चा में है. क्योकि, उनके सामने बड़ा संकट है कि चुनाव आ गया और उनका प्रभाव संगठन में बन नहीं पा रहा है. उनके सामने ही कई बार उनके दल के नेताओं ने ही विरोध भी किया है. यह स्थिति दोनों दलों में बनी है.
बड़ी बात यह रही कि बीजेपी के प्रभारी अरुण सिंह (arun singh bjp ) और कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा (sukhjinder randhawa) दोनों नेता सावर्जनिक सभाओं और रैलियों में अपने दिग्गज नेताओं को एक मंच पर नहीं बैठा पा रहे. अरुण सिंह 2020 और सुखजिंदर रंधावा 2022 में प्रभारी बने. कांग्रेस द्वारा पिछले दिनों कई सावर्जनिक बैठकें और आंदोलन किये गए, लेकिन उसमें न तो सचिन पायलट आये और न ही अशोक गहलोत. जबकि, उसमें प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष मौजूद रहे.
वहीं बीजेपी ने सतीश पूनियां के कार्यकाल में कई बड़े आंदोलन और रैलियां निकाली कुछ में राजे भी रहीं. मगर अब कल हुए सचिवालय घेराव में न तो पूनियां दिखे और न ही वसुंधरा राजे. अब यहां पर सियासी चर्चाएं तेज हो गईं है. क्या है इसके पीछे की कहानी?
कांग्रेस के मुख्यालय और राजभवन घेराव की रही चर्चा
दरअसल, राजस्थान में जब राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' आई थी तो उसी दौरान यहां पर दिसंबर के महीने में प्रभारी के रूप में पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा को जिम्मेदारी मिली. उन्होंने उस दौरान राजस्थान में कई जिलों में यात्राएं भी की. सुखजिंदर से पहले अविनाश पांडेय और अजय माकन के दौर में कुछ इस तरीके की स्थिति बनी रही.
रंधावा के आने के बाद कांग्रेस ने मार्च महीने में केंद्र सरकार की कई नीतियों के खिलाफ विरोध करने के लिए राजभवन के घेराव का एलान किया था. जिसमें सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के आने की बात बताई गई थी. मगर इनमें से कोई नहीं आया. इसके बाद जयपुर के बिरला ऑडिटोरियम में दो बड़े कार्यक्रम हुए. जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रभारी मौजूद रहे मगर सचिन पायलट नहीं आये. जबकि सचिन पायलट की नेम प्लेट लगी थी.
उसके बाद जब हॉस्पिटल रोड पर कांग्रेस प्रदेश कार्यालय पर विधायकों से एक-एक करके फीडबैक लिए जा रहे थे उस दौरान भी सचिन पायलट नहीं आये थे. ऐसे में कई बड़ी सार्वजनिक सभाओं और मीटिंगों में 'एकता' नहीं दिखी बल्कि जुटता की जगह 'गुटता' देखी गई. अब इन घटनाओं को देखने के बाद लोग प्रभारी सुखजिंदर रंधावा के 'प्रभाव' की चर्चा कर रहे है.
सचिवालय घेराव में ही अकेले पड़े अध्यक्ष और पूनियां के ऐसे रहे कार्यक्रम
वर्ष 2020 में बीजेपी ने राजस्थान के प्रभारी के तौर पर अरुण सिंह को लगाया था. कोरोना काल में यहां पर बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पूनियां रहे. उसके बाद कई सभाएं और रैलियां हुईं जिनमें भीड़ तो दिखी मगर एक जुटता पर सवाल होते रहे. अब कल सचिवालय के घेराव में बीजेपी अध्यक्ष सीपी जोशी को 'अलग थलग' पड़ने की बात सामने आ रही है. नेता प्रतिपक्ष ने भले ही अपनी भूमिका निभाई, मगर इस घेराव में न तो पूर्व सीएम वसुंधरा राजे आईं और न ही उप नेता प्रतिपक्ष सतीश पूनियां दिखे. फिर प्रभारी अरुण सिंह के 'प्रभाव' पर चर्चा तेज हो गई है.
यह सीपी जोशी के अध्यक्ष बनने के बाद उनका पहला घेराव था. थोड़ा इसके पीछे चलते हैं, जब सतीश पूनियां बीजेपी अध्यक्ष थे. उस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित सभी केंद्रीय मंत्रियों ने सीएए के समर्थन में निकली रैली में एकजुटता दिखाई थी. कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह के कार्यक्रमों में सभी एक साथ दिखे. मगर चार मार्च को जयपुर में विधान सभा घेराव के दौरान सतीश पूनियां के साथ राजे नहीं दिखी. क्योंकि, उन्होंने चूरू में अपने जन्मदिन का कार्यक्रम रखा था.
उस दौरान भी एक जुटता की जगह 'गुटता' की चर्चा हुई थी. हालांकि, सतीश पुनिया के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान उस समय के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के नेतृत्व में पार्टी के सभी विधायकों ने जयपुर में महात्मा गांधी सर्किल पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ किसान कर्ज माफी, लंबित भर्तियां सहित विभिन्न जनहित के मुद्दों को लेकर धरना दिया था. जिसमें पार्टी के सभी विधायक शामिल हुए और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी शामिल हुई थी.
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