Rajasthan Election 2023: हनुमान बेनीवाल ने खींवसर से विधायक भाई नारायण बेनीवाल का टिकट क्यों काटा, क्या हैं सियासी मायने ?
Rajasthan Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने कई सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है, लेकिन चर्चा में खींवसर सीट है.
Rajasthan Election 2023: राजस्थान के नागौर जिले की खींवसर विधानसभा सीट चर्चा में है, क्योंकि वहां से खुद अब आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल मैदान में उतर आये हैं. यह विधानसभा सीट पिछले कई वर्षों से हनुमान बेनीवाल के परिवार के पास ही है. इस बार कुछ ऐसे समीकरण बने कि बेनीवाल अब खुद मैदान में उतर आये हैं.
अब चर्चा है कि आखिर यहां से हनुमान बेनीवाल ने क्यों अपने भाई नारायण बेनीवाल का टिकट काटा है. इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. कुछ महीने पहले तक हनुमान बेनीवाल कई सीटों से चुनाव लड़ने की बात कहते थे मगर अब अचानक से सबकुछ बदल गया है. सूत्रों का कहना है कि हनुमान बेनीवाल ने रणनीति के तहत यहां से अपने को मैदान में उतारा है. यहां पर दूसरे किसी की पैठ न बन पाए.
पहले से चल रही है पकड़
दरअसल, खींसवर विधानसभा वर्ष 2008 में अस्तित्व में आई है. पहले यह सीट मुंडवा विधानसभा सीट हुआ करती थी. परिसीमन हुआ और इस सीट के समीकरण भी बदल गए. जब यह सीट मुंडवा हुआ करती थी तब हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल दो बार यहां से विधायक रहे. बेनीवाल परिवार की यह सीट पारंपरिक रही है. बेनीवाल भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत चुके हैं.
बेनीवाल के पिता ने 1977 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी. 1985 में उन्होंने लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी गए थे. वर्ष 2008 में हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी, 2013 में निर्दलीय और 2018 में अपनी पार्टी आरएलपी से चुनावी मैदान में उतरे और जीत हुई है. उसके बाद उनके भाई नारायण बेनीवाल ने यहां से उपचुनाव जीता है.
कुछ ऐसी है चर्चा
नागौर जिले के पत्रकार डीसी गौड़ का कहना है कि हनुमान बेनीवाल इस सीट को विकल्प के रूप में उपयोग करते हैं. यहां विधानसभा जीतकर लोकसभा के लिए दावेदारी बनाना चाहते है. यहां से उनके भाई को इसलिए हटाया गया है. खींवसर सीट पर शुरू से ही जाट समाज का दबदबा रहा है. इसके अलावा यहां बड़ी संख्या में दलित मतदाता भी है. ऐसे में चुनाव में जीत और हार में एक अहम भूमिका दलित मतदाताओं का भी होता है. आजाद रावण की पार्टी के साथ हनुमान ने इसलिए गठबंधन भी किया है. दलितों का वोट कहीं बंट न जाए.