Rajasthan Election: राजस्थान की इस सीट पर 30 साल रहा कांग्रेस का राज, लेकिन डेढ़ दशक से BJP रही 'अजेय', जानें सियासी समीकरण
Rajasthan Assembly Election 2023: उदयपुर की एक ऐसी विधानसभा सीट जहां से बीते 9 चुनाव में केवल दो लोग ही विधायक बने. इनमें से एक एक तो राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे. 6 बार कांग्रेस तो 3 बार BJP जीती.
Rajasthan Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव की जल्दी ही घोषणा होने वाली है. इससे पहले अभी वह दौर चल रहा है जिसमें पार्टियों द्वारा प्रत्येक सीट पर गहन चिंतन कर अपने प्रत्याशियों की सूची तैयारी की जा रही है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों तरफ से जल्द ही प्रत्याशियों की घोषणा की जा सकती है. विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के चयन का दौर चल रहा है तो इसी बीच एक ऐसी सीट की बात करते हैं जहां से 9 बार से सिर्फ दो लोग ही विधायक बने. इसमें से एक तो राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे. फर्क इतना है कि पहले लगातार 6 बार से कांग्रेस विधायक थे और अब पिछली 3 बार से बीजेपी जीत रही है. जानिए कौनसी है यह सीट और क्या हैं इसके सियासी समीकरण.
हम जिस सीट की बात कर रहे हैं वह है उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ विधानसभा सीट. कुंभलगढ़ से सबसे पहले सभी के दिमाग में किला आ जाता है, जो अरावली की पहाड़ियों के बीच विशाल रूप से खड़ा है. इसे अजय किला भी कहा जाता है. पहले कई वर्षों तक यह शब्द कांग्रेस के लिए था लेकिन पिछले 3 विधानसभा चुनाव से यह बीजेपी के लिए बना गया है. यहां के वर्तमान विधायक सुरेंद्र सिंह राठौड़ तीसरी बार के विधायक हैं. इस क्षेत्र के कद्दावर नेता राठौड़ ही हैं.
जानें कुंभलगढ़ सीट की राजनीति एक्सपर्ट से
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. कुंजन आचार्य ने बताया कि राजसमंद जिले में कुंभलगढ़ का दुर्ग अपनी एक ऐतिहासिक पहचान रखता है. वहीं, राजनीतिक दृष्टि से कुंभलगढ़ विधानसभा सीट हमेशा से एक हॉट सीट रही है. पिछले डेढ़ दशक में यह बीजेपी की स्थाई सीट के रूप में उभर कर सामने आई. कमोबेश यह भी एक संयोग ही कहा जाएगा कि यहां जिस पार्टी की जीत हुई है, उसी पार्टी की सरकार बनी. हालांकि पिछले चुनाव में यह मिथक टूट गया था.
वर्ष 1967 से 1998 तक छह बार विधायक चुने गए हीरालाल देवपुरा 1985 में मुख्यमंत्री, पांच बार मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष रहे. देवपुरा को हरा कर भाजपा के सुरेन्द्रसिंह राठौड़ ने पार्टी में अपना कद बढ़ा दिया. राठौड़ तीन बार विधायक रहे. ऐसे में उनके बराबर के कद का कोई स्थानीय नेता नहीं बन पाया. वहीं, कांग्रेस में भी यही स्थिति रही. इतने वर्षों में कोई मजबूत नेता पार्टी की ओर से मतदाताओं की पैरवी करने के लिए अपना चेहरा नहीं बन पाया.
कांग्रेस में आंतरिक द्वंद्व रहा बड़ा मुद्दा
पिछला रिकॉर्ड देखते हुए इस बार भी राठौड़ का टिकट लगभग तय माना जा सकता है, लेकिन कांग्रेस में अभी तक चेहरा तय नहीं हो पाया. पिछली बार भी आंतरिक भीतरघात एक बड़ा मुद्दा रहा था और टिकट वितरण के बाद इस बार भी कमोबेश की स्थिति बन सकती है.