Rajasthan Assembly Election Results 2023: राजस्थान ने विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में रहे, जिसमें पूर्ण बहुमत हासिल किया. राज बदला लेकिन सत्ता परिवर्तन का रिवाज नहीं बदला. इस चुनाव में सीएम गहलोत खुद चेहरा थे और राजस्थान को राजनीति में महत्वपूर्ण मानी जाने वाली मेवाड़ और वागड़ की 28 सीटों पर उनकी नजर थी. चुनाव पहले या कहे चुनावी साल में उन्होंने यहां कई ताबड़तोड़ दौरे किए. इसके बाद भी यहां से कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटें ही मिल पाई. इसमें पिछली बार की 3 सीटें भी गंवा दी. जानिए दौरों में क्या खास था.
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करे तो यहां 28 सीटों में से कांग्रेस के पास 10 सीटें थी. हर जिले से कम से कम एक सीट तो कांग्रेस के पास थी ही. वहीं बीजेपी 15 सीटों पर काबिज थी. हालही में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाले तो कांग्रेस ने अभी 7 सीटें हासिल की है. खास बात यह है कि राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ जिले में तो कांग्रेस को एक भी सीट नसीब नहीं हुई. यहां तक कि उदयपुर में 2, डूंगरपुर में 1 सीट मिली. सिर्फ बांसवाड़ा जिला ऐसा है, जहां कांग्रेस को बढ़त मिली. यहां की 5 सीटों के से कांग्रेस को 4 सीटें मिली.
हर विधानसभा तक पहुंचे थे गहलोत
गहलोत सरकार के समय उनकी चलाई गई योजनाओं के हर जिले में महंगाई राहत शिविर चलाए जा रहे थे. यह सब चुनावी साल में हुआ. वह इन शिविरों के माध्यम से मेवाड़-वागड़ की 28 विधानसभा सीटों में से लगभग सभी सीटों तक पहुंचे. कई जगह तो जनता को खुद अपनी योजनाओं के गारंटी कार्ड बांटे. यही नहीं चुनाव से कुछ हफ्तों पहले तक भी वह मेवाड़ और वागड़ में आते रहे. इसके बाद भी उनका और उनकी गारंटियों का जादू नहीं चल पाया और कांग्रेस को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा.
पीएम मोदी-सीएम यीगी के दौरों ने बिगाड़ा गहलोत का खेल?
बीजेपी सरकार आने और गहलोत की मेवाड़ वागड़ में हार के पीछे लोगों में कई कारणों पर चर्चाएं हैं. चर्चाएं हैं कि गहलोत ने लगातार यहां दौरे किए लेकिन अंतिम समय में पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Aditynath) के दौरे हावी हुए. हालाकि आदिवासी एरिया बांसवाड़ा, डूंगरपुर में मोदी और योगी का फैक्टर काम नहीं आया लेकिन मेवाड़ में बंपर जीत हुई. साथ ही राजस्थान में हुए अपराध को देखते हुए और पेपर लीक प्रकरण को ध्यान में रखते हुए लोगों ने गहलोत सरकार के खिलाफ वोट किए. इसके अलावा यह भी चर्चाएं हैं कि चुनावी साल में एक के बाद एक योजनाएं लाने पर भी लोगों को साध नहीं पाए.