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Rajasthan: मेवाड़ की सीट पर है सीएम गहलोत की नजर, यहां बीजेपी की भी हुई जमानत जब्त, समझें पूरी चुनावी गणित
Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान के मेवाड़ की हॉट सीट वल्लभनगर विधानसभा में अभी कांग्रेस का कब्जा है. यहां अब तक सिर्फ एक बार ही बीजेपी ने जीत का स्वाद चखा है.
![Rajasthan: मेवाड़ की सीट पर है सीएम गहलोत की नजर, यहां बीजेपी की भी हुई जमानत जब्त, समझें पूरी चुनावी गणित Rajasthan election there is triangular contest in vallabhgarh seat of mewar region cm ashok gehlot ann Rajasthan: मेवाड़ की सीट पर है सीएम गहलोत की नजर, यहां बीजेपी की भी हुई जमानत जब्त, समझें पूरी चुनावी गणित](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/06/17/b0e31d376c43aaf79baec3e24198086f1687022945705490_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
(मेवाड़ के वल्लभगढ़ विधानसभा सीट पर है सीएम गहलोत की नजर)
Source : PTI
Rajasthan Elections: राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (BJP) दोनों एक-एक सीट को लेकर प्रयास में जुटी हुई है. ऐसे में राजस्थान में मेवाड़ (Mewar) की बात करें तो यहां की सबसे हॉट सीट मानी जाने वाली वल्लभनगर विधानसभा सीट हमेशा चर्चाओं में रहती है. इसके पीछे यहां होने वाला त्रिकोणीय मुकाबला है. साथ ही पिछली बार तो यहां बीजेपी के उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई थी. सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की भी नजरों में यह सीट रहती है क्योंकि उदयपुर (Udaipur) जिले की 8 विधानसभा सीट में से सिर्फ दो सीट कांग्रेस के पास हैं जिसमें से एक वल्लभनगर विधानसभा है.
वैसे तो मेवाड़ की प्रमुख उदयपुर जिले की 8 सीटों को बीजेपी का गढ़ कहा जाता है लेकिन इसमें खेरवाड़ा और वल्लभनगर विधानसभा ऐसी है जहां कमल खिल नहीं पा रहा है. यहां लंबे वक्त से कांग्रेस का राज है. वर्ष 1993 और 1998 वल्लभगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रणधीर सिंह भिंडर को मैदान में उतारा था, जहां वह दोनों बार हारे. वहीं बीजेपी ने एक बार फिर 2003 में विश्वास जताया तो भिंडर जीते और विधानसभा पहुंचे. उन्होंने दिग्गज नेता गुलाब सिंह शक्तावत को हराया था. वहीं 2008 में फिर भिंडर से खड़े हुए लेकिन शक्तावत के बेटे गजेंद्र ने भिंडर को शिकस्त दी.
अपने की काट रहे है वोट, इसलिए बीजेपी पर संकट
बीजेपी वल्लभनगर विधानसभा सीट पर पिछले तीन विधानसभा चुनाव से अपनों की वजह से शिकस्त खा रही है. बीजेपी ने 2008 तक रणधीर सिंह भिंडर को टिकट दिया, लेकिन वर्ष 2013 में टिकट काटकर गणपत लाल मेनारिया को उम्मीदवार बनाया. भिंडर बागी हुए और नई पार्टी जनता सेना बनाई. उन्हें वोटर की सहानुभूति मिली और रणधीर सिंह भिंडर विजयी हुए. वर्ष 2018 में बीजेपी ने यहां से उदयलाल डांगी को उम्मीदवार बनाया. भिंडर और डांगी के बीच बीजेपी के वोट बंटे, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और गजेंद्र सिंह शक्तावत दूसरी बार जीते. गजेंद्र सिंह शक्तावत का निधन हुआ तो यहां 2021 में चुनाव हुए. यहां चौंकाने वाली बात हुई. बीजेपी ने उदयलाल डांगी का भी टिकट काट दिया तो डांगी आरएलपी में शामिल हो गए. यहां बीजेपी के तीन तरफ से वोट बंट गए. चतुष्कोणीय मुकाबले में कांग्रेस से प्रीति गजेंद्र सिंह शक्तावत विजय हुई और बीजेपी चौथे नम्बर पर चली गई.
बीजेपी को किसी एक पर सहमति बनानी होगी
राजनीतिक विश्लेषक डॉ कुंजन आचार्य ने बताया कि वल्लभनगर विधानसभा सीट हमेशा से कभी त्रिकोणीय तो कभी चतुष्कोणीय मुकाबले में फंसी रही है. यहां पर न सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी बल्कि अन्य दलों का भी समय-समय पर प्रत्याशी विजय रहा है क्योंकि यह सीट भींडर और वल्लभनगर दो क्षेत्रों में फैली हुई है. इसलिए दो अलग-अलग क्षेत्रों के मतदाताओं का मन भी अलग-अलग प्रत्याशियों को चुनने में रुचि दिखाता रहा है. यहां के मतदाताओं ने पिछली बार बीजेपी के प्रत्याशी की जमानत तक जब्त करवा दी थी. यह बात भी तथ्यपूर्ण है कि यह सीट बीजेपी के लिए एक प्रयोगशाला की तरह रही है, जो भी यहां से जीता वह फिर पार्टी की सक्रिय भूमिका में नहीं रहा.
बीजेपी को कार्यकर्ताओं को साधने की जरूरत?
कुंजन ने बताया कि पिछले कुछ चुनावों का रुझान देखें तो पता चलता है कि कांग्रेस के सामने जितने निर्दलीय या बागी प्रत्याशी खड़े हुए, यदि सबका वोट मिला दिया जाए तो कांग्रेसी के लिए मुश्किल हो सकती थी यानी बीजेपी में कार्यकर्ताओं को साधने की जरूरत है. गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी प्रीति सिंह शक्तावत ने पिछले उपचुनाव में जीत दर्ज की थी और बहुत कम समय में उन्होंने क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ भी बना ली है. बीजेपी यदि अपने कार्यकर्ताओं में समरूपता लाकर किसी एक प्रत्याशी पर सहमति बना लें तो पिछली भूलों को सुधारने की सम्भावना बन सकती है.
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