प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में अर्जुनराम मेघवाल को नया कानून मंत्री बनाया गया है. ये जिम्मेदारी किरण रिजिजू को हटाकर दी गई है. माना जा रहा है कि बीते कुछ दिनों में जिस तरह से किरण रिजिजू और सुप्रीम कोर्ट के बीच कई मुद्दों पर मीडिया में बयानबाजी हुई है उसकी एक वजह ये भी हो सकती है. वहीं मेघवाल पहले से ही संस्कृति मंत्रालय और संसदीय मामलों के मंत्रालय में राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.


हालांकि इस फैसले के पीछे राजस्थान विधानसभा चुनाव भी हो सकता है. अर्जुन राम मेघवाल साल 2009 से बीकानेर के सांसद हैं और आईएएस अधिकारी भी रह चुके हैं. इसके साथ ही मेघवाल राजस्थान में अनुसूचित जाति (SC) से आते हैं. राजस्थान में एससी की जनसंख्या 18 फीसदी के आसपास है और कई सीटों पर ये आबादी हार-जीत तय करती है. बता दें कि राजस्थान में इस समय 59 जातियां एससी के दायरे में रखी गई हैं. 


आंकड़ों की मानें तो एससी की आबादी इस समय किसी भी जाति की तुलना में सबसे ज्यादा है जो कि 1.2 करोड़ के आसपास है. वहीं राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में 34 इस अनूसूचित जाति के लिए रिजर्व की गई हैं.


उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और राजसमुंद छोड़ दिया तो बाकी सभी जिलों में इस समुदाय के लिए एक या दो सीटें आरक्षित हैं. इनमें से गंगानगर और हनुमानगढ़ में तो एससी वोटरों की संख्या 26 फीसदी से ज्यादा है.


राजस्थान में अनुसूचित जाति में आने वाली जातियों में प्रमुख रूप से मेघवाल, बेरवा, रैगर, कोली, जाटव, खटिक, नैक, जींगर, मोची, धानुक, धोबी, धोली, महार, मेहरा, नट, बेडी, मोंगिया और सांसी शामिल हैं. इनमें से मेघवाल सबसे ज्यादा हैं जिनकी संख्या 5 फीसदी है और बाकी दूसरे नंबर पर बेरवा और रैगरों की आबादी 4-4 प्रतिशत है. बाकी जातियों की संख्या मिलाकर कुल आबादी में 5 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है. 


बात करें विधानसभा सीटों के हिसाब से आबादी की तो अजमेर दक्षिण में एससी वोटरों की संख्या 33 फीसदी है. इसके बाद हिदौंन में 29, वेर में 27.33, बयाना में 26.29, रामगंजमंडी में 24.56, बगरू में 23.61 फीसदी के करीब एससी आबादी है.  राजस्थान की 13 विधानसभा सीटों में एससी वोटरों की आबादी 20 से 23 प्रतिशत तक है.


गंगानगर में सबसे ज्यादा आबादी, वोटर रायसिंहनगर में
राजस्थान में ये आंकड़ा थोड़ा हैरान करने वाला हो सकता है. गंगानगर में एससी समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है जबकि वोटरों की संख्या रायसिंहनगर में हैं. रायसिंहनगर में 1.30 लाख वोटर हैं. इसके बाद  अनूपगढ़ में 1.26 लाख वोटर हैं. दोनों ही सीटें अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. सामान्य सीटों में करणपुर में एक लाख और सादुलशहर में 95 हजार वोटर हैं. हनुमानगढ़ की पिलीबंगा विधानसभा सीट में 1.1 लाख वोटर हैं. ये सीट भी एससी के लिए रिजर्व है.


इसके अलावा बाकी बची 30 रिजर्व सीटों में से हर विधानसभा क्षेत्र में एससी वोटर करीब 50 हजार के आसपास हैं. वहीं सामान्य सीटों में सूरतगढ़ में एससी की आबादी 86 हजार, हनुमान की सांगरिया और हनुमानगढ़ विधानसभा सीट पर 85-85 हजार आबादी है.


सामान्य सीटों में अनुसूति जाति की आबादी
राजस्थान की 52 सामान्य विधानसभा सीटों में अनूसूचित जातियों की आबादी 50-50 हजार के करीब है. इनमें से गंगानगर में 34 फीसदी, हनुमानगढ़ में 26.13 फीसदी, करौली में 23.16 फीसदी, दौसा में 21 फीसदी से थोड़ा ज्यादा और भरतपुर में 22 फीसदी के आसपास वोटर हैं.


जनजातीय क्षेत्रों में आबादी में एससी वोटों का समीकरण
राजस्थान का डूंगरपुर इलाका जनजातीय क्षेत्र में आता है. यहां पर 4.15 फीसदी वोटर हैं. इसके बाद बांसवाड़ा में 4.28 फीसदी और उदयपुर में 6.10 फीसदी के करीब है.


राजस्थान की राजनीति में जातियों की भूमिका
राजस्थान की राजनीति में कई दशकों तक अगड़ी जातियों खासकर राजपूतों का ही वर्चस्व रहा है. हालांकि कांग्रेस के मौजूदा सीएम अशोक गहलोत ओबीसी समुदाय से होने के बावजूद अपनी पैठ बनाई है.


बात करें जाति की राजनीति की तो राजपूत हमेशा से ही बीजेपी के समर्थक रहे हैं जिनकी संख्या 6 फीसदी के करीब है. वहीं जाट समुदाय परंपरागत तौर पर कांग्रेस के साथ रहा है.


जनजातीय समुदाय में मीणा बीजेपी के साथ तो काफी समय तक गुर्जर कांग्रेस का साथ देते रहे हैं. मुसलमानों का वोटबैंक कांग्रेस के ही साथ जाता रहा है.  इन सभी जातियों को मिला दें तो ये कुल वोटरों का 70 फीसदी हो जाता है.


लेकिन जातियों का ये समीकरण बाद में टूटता भी नजर आया. मार्शल जातियों में गिने जाने वाले जाट और गुर्जर समुदाय का वोट बड़ी संख्या में बीजेपी में जाने लगा.


इसकी एक वजह इस जाति से आने वाले युवाओं का सेना में नौकरी करना है और वो बीजेपी के राष्ट्रवाद से प्रभावित हुए. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी संख्या में गुर्जरों और जाटों का वोट मिला जिसकी वजह से राजस्थान में कांग्रेस का सफाया हो गया.


साल 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस के पक्ष में सचिन पायलट का फैक्टर काम कर गया. पार्टी ने उस चुनाव से पहले सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया.


सचिन ने वसुंधरा सरकार के खिलाफ जमीन पर संघर्ष शुरू कर दिया. साथ ही उनकी वजह से गुर्जरों समुदाय के वोटर भी बीजेपी से खिसकर कांग्रेस के पाले में जाने लगे. बता दें कि सचिन पायलट अपने पिता राजेश पायलट की तरह ही राजस्थान गुर्जरों के नेता माने जाते हैं. राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन भी एक बड़ा मुद्दा रहा है.


राजस्थान में गुर्जर बहुल आबादी वाली सीटें करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, भरतपुर, दौसा, कोटा, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूंदी, झुंझनू, अजमेर हैं. साल 2018 के चुनाव में बीजेपी ने 9 गुर्जर प्रत्याशी उतारे थे जिसमें कोई भी नहीं जीत पाया. जबकि कांग्रेस 12 गुर्जर नेताओं को टिकट और 7 विधानसभा पहुंचे. 


राजस्थान में ओबीसी राजनीति का भी अहम रोल
राजस्थान के मौजूदा सीएम अशोक गहलोत ओबीसी से आते हैं. 200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में बहुमत के लिए 100 सीटें चाहिए. अभी 50 विधायक ओबीसी हैं.


साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जोधपुर जोन से कांग्रेस के 15 विधायक जीतकर आए जो ओबीसी समुदाय से हैं. बीजेपी जहां पूरे देश में ओबीसी जातियों का समीकरण तैयार कर चुकी है वहीं राजस्थान में कांग्रेस के पक्ष में ओबीसी वोटरों का झुकाव अशोक गहलोत की वजह से है.


कई ओबीसी जातियां मांग रही हैं आरक्षण
सैनी, कुशवाहा, माली, मौर्य और शाक्य 12 फीसदी आरक्षण की मांग कर रही हैं. इसके साथ ही मिरासी, मांगणियार, ढाढी, लंगा, दमामी, मीर, नगारची, राणा, बायती और बारोट जातियों के लोग भी आरक्षण की मांग कर रहे हैं.


राजस्थान में जातियों का आरक्षण
राजस्थान में अभी 64 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. इसमें ओबीसी को 21, एससी को 16, एसटी को 12, गुर्जर सहित 5 जातियों को अति पिछड़ा वर्ग के तहत रिजर्वेशन दिया जा रहा है.