Rajasthan Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है. ऐसे में प्रदेश की प्रमुख दो पार्टियां हर दांव अजमा कर जनता को साधने की कोशिश में जुटी हुई हैं. इस बीच राज्य में छोटे दल भी एक नया राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो रेगिस्तान में चुनावी पिच को खराब कर सकता है. जानकारी के अनुसार, अन्य हिंदी भाषी राज्यों की अपेक्षा छोटे राजनीतिक दलों ने राजस्थान में लगभग 10-15% वोट शेयर हासिल कर लिया है, जिससे वे सरकार गठन की दौड़ में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गए हैं.


दरअसल, 2018 चुनाव में 200 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से 14 सीटों पर छोटी पार्टियों ने कब्जा कर लिया था. साथ ही 13 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की थी. वहीं इस बार बीजेपी और कांग्रेस के पूर्व सहयोगी एक साथ आकर एक नया विकल्प पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. बता दें कि, बीजेपी के पूर्व सहयोगी जाट नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस की पूर्व सहयोगी भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) एक साथ गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं 2018 के चुनावों के आंकड़े इस बात को साफ करते हैं कि, अगर यह गठन एक साथ हुआ तो कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है? 


हनुमान बेनीवाल ने क्यों तोड़ा बीजेपी से नाता?
दरअसल, 2018 के चुनाव में बसपा ने छह सीटें जीती थीं और 4% वोट हासिल किए थे और बेनीवाल की पार्टी ने 2.4% वोट के साथ तीन सीटें जीती थीं. वहीं हनुमान बेनीवाल ने कहा कि, मैं बीएसपी और बीएपी के साथ बातचीत कर रहा हूं. हम सीट बंटवारे पर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि यह महत्वपूर्ण होगा. हम अपने विश्वास पर एकजुट हैं क्योंकि, राजस्थान से कांग्रेस और बीजेपी के प्रभुत्व को खत्म करने की जरूरत है. दरअसल, इन दिनों हनुमान बेनीवाल करीब 125 विधानसभा क्षेत्रों से होते हुए 'सत्ता परिवर्तन संकल्प यात्रा' पर निकले हैं. इसका समापन 29 अक्टूबर को पार्टी के स्थापना दिवस पर एक मेगा रैली के बाद होगा. बता दें कि, कृषि कानूनों को लेकर बेनीवाल ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था. 


ये पार्टियां भी बना रही हैं विकल्प
वहीं 2018 के चुनावों के बाद से बेनीवाल ने खिंवसर विधानसभा उपचुनाव जीता है और एक उपचुनाव में दूसरे और दूसरे उपचुनाव में तीसरे स्थान पर रहे. बेनीवाल का कहना है कि, अगर वह गठबंधन नहीं कर पाए तो भी उनकी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. गौरतलब है कि, 2018 में आरएलपी ने 58 सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीन सीटें जीती थीं. साथ ही दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी और 24 सीटों पर तीसरे नंबर पर थी. वहीं बसपा की बात करें तो 2018 में बसपा ने 189 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 6 सीटें जीती थीं. इन पार्टियों के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और आप भी कुछ सीटों पर नए विकल्प प्रदान कर रही हैं.



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