Rajasthan News: राजस्थान में पहली बार 12 साल के बच्ची का सफल लिवर ट्रांसप्लांट (liver transplant ) हुआ है. इसे जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल के 25 डॉक्टर्स ने अंजाम दिया है. मुख्य लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ नैमिष मेहता ने इस टीम को लीड किया है. डॉ नैमिष ने बताया कि 12 वर्षीय बच्ची कोटखावदा निवासी साक्षी पिछले छह साल से पीलिया, पेट में पानी और लिवर सिरोसिस जैसी लिवर की गंभीर बीमारियों से जूझ रही थी.
बताया जा रहा है कि बच्ची का बिलरूबिन लेवल 17 तक पहुंच गया था. लिवर बायोप्सी से पता लगा कि उसे लिवर की जेनेटिक बीमारी थी. पहले उसकी बहन की 9 साल की उम्र में लिवर की बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. साक्षी का जयपुर के अलावा दिल्ली के भी कई बड़े अस्पतालों में इलाज कराया पर लाभ नहीं मिल पाया. महात्मा गांधी अस्पताल लेकर आएं जहां अंतिम समाधान के रूप में उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की राय दी गई.
एक महीने में होगा सामान्य
डॉ नैमिष का कहना है कि घरवालों ने मान तो लिया पर सबसे बड़े ऑपरेशन के जोखिम, बड़े उपचार खर्च और मैचिंग लिवर डोनर जैसी समस्या भी थी. रोगी की मां कैलाशी देवी का ब्लड ग्रुप मैच कर गया और उपयुक्त पाया गया. 18 अगस्त 2023 को लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन किया गया जिसमें 25 चिकित्सक 12 घंटे तक लगे रहे और अंत में उन्हें सफलता मिली. साक्षी और उसकी मां कैलाशी देवी दोनों के ऑपरेशन एक साथ शुरू हुए. मां के लिवर का एक हिस्सा साक्षी को लगाया गया है. दोनो का लिवर एक माह में सामान्य आकार ले लेगा.
15 दिन में दी गई छुट्टी
डॉ नैमिष ने बताया कि ऑपरेशन के दौरान खून का रिसाव भी ज्यादा हो सकता है जो कि बच्चो में जोखिम भरा होता है. बच्चों की छोटी नसों तथा रक्त वाहिनियों को बड़ी उम्र के डोनर लिवर के साथ जोड़ पाना भी बहुत मुश्किल होता है. इसके अलावा बच्चों की इम्यूनिटी पावर भी काम होती है इससे रिकवरी के दौरान संक्रमण का खतरा बना रहता है. डॉक्टर्स के सम्मिलित प्रयासों से साक्षी को मौत के मुंह से निकाल नया जीवन दिया गया.
पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका महात्मा गांधी अस्पताल के पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ रूप शर्मा ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट से पहले बच्ची को कुशल प्रबंधन के जरिए ऑपरेशन के लिए फिट किया. ऑपरेशन के बाद ब्लीडिंग तथा संक्रमण की संभावना रहती है इसके लिए नियंत्रित मात्रा में निश्चेतना, एंटी रिजेक्शन और एंटी बायोटिक दवाइयां देकर संक्रमण मुक्त रखते हुए 15 दिन बाद सामान्य होने पर छुट्टी दे दी गई.
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